वो रामायण की चोपाईया, हनुमान चालीसा, गायत्री मंत्र, गीतापाठ, शिवस्त्रोतम, हजारो व्रत कथाये, सोलह संस्कार विधिया, भगवद कथाये, पुराण कथाये.. आदि आदि साहित्य कंठस्थ करके बैठे है.. आप किसी भी मुर्ख दीखते पंडित को किसी भी वक्त अचानक इस सिलेबस में से कोई सवाल पूछकर देखे, जवाब परफेक्ट ही देगा.. वो जवाब दे शकता है क्योंकि वो सब उनके पूर्वजो ने उनके हित के लिए लिखा हुआ है.. और वो लोग अपने पूर्वजो को बेपनाह चाहते है.. उनके लिए गर्व लेते है..
आप में से कितनो को धम्मपद, त्रिपिटक, जातक कथाये, बुद्ध और उनका धम्म, कबीर साहित्य, रैदास साहित्य, तुकाराम के अभंगो, पेरियार की सच्ची रामायण, बाबासाहेब की २२ प्रतिज्ञाए, उनके २२ वोल्यूम, भाषण, आदि साहित्य का सिलेबस याद है?? अगर आपको इसमें से कुछ भी याद रखने की इच्छा ही नही है तो फिर वो आपसे श्रेष्ठ है.. और जो श्रेष्ठ होता है वही शासन करता है.. आप उन्हें उनकी जात को श्रेष्ठ कहने से रोक नहीं शकते!!
--विजय मकवाणा
(अनुवादक : कुंदन कुमार)
(अनुवादक : कुंदन कुमार)
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