January 05, 2018

काठीयावाड , वोकर करार और भीमा कोरेगांव

By Vijay Makwana  || 1 August 2017 at 23:25



काठीयावाड , वोकर करार और भीमा कोरेगांव

19 दिसंबर 1803 को चीतळ , जेतपुर, मेंदरडा और कुंडला के काठी दरबारो ने अंग्रेजी हुकुमत के कर्नल वोकर को पत्र लीख कर सौराष्ट्र मे गायकवाडी-पेश्वाओ से वो लोग कैसे तंग आ चुके है वो बताया और उनसे अनुरोध किया की वे सौराष्ट्र को अंग्रेजी हुकुमत के हाथो मे लेकर उनको पेश्वाओ के राज से छुडाए. उस के बाद 30 दिसंबर 1803 के रोज जोडिया के दरबार और फिर मोरबी के राजवी जयोजी जाडेजा ने , ध्रोळ-खीरसरा के दरबार ने और 26 मई 1807 को लाठी के राजवी सुरसींहजी तख्त सींहजी गोहील (कलापी) ने पत्र लिख कर अंग्रेजो से मदद की गुहार लगाई थी. उसके प्रत्युत्तर मे मुंबई सरकार ने कहा की, "सौराष्ट्र के तालुकदार अगर अंग्रेजी शाशन की शरण मे आने के लिए नीवेदन कर रहे है,  वो हमारे लिए हकारात्मक होते हुए भी उस की ठीक तरीके से जांच कर ले, और ब्रीटीश सरकार को अगर कोइ राज्य बीना कुछ खामीयाजा भुगते मिल रहा हो तो वह खुशी की बात है."

और उसी साल सन 1807 को सौराष्ट्र मे अंग्रेज हुकुमत की स्थापना हुई. काठीयावाड और अंग्रेजो के बीच वोकर करार थया.



अब दलितो की बात करते है, भीमा कोरेगांव का युद्ध अंग्रेज सल्तनत को और मजबुत करती है. कैसे? 500 महार योद्धा 28000 पेश्वाओ को शर्मजनक पराजय देते है वो घट्ना पेश्वा के दिमाग मे डर बिठा देती है. और ठीक पांच महीने बाद पेश्वा अंग्रेस सल्तनत के शरण मे आ जाता है. सन1818 तक पेश्वा का लश्कर गायकवाडी लश्कर के साथ मीलकर जुनागढ, जामनगर, भावनगर के पास से लगान वसुलते थे. पेश्वाओ ने पराजय स्वीकार कर लिया था अब सिर्फ गायकवाड फौज के  उपर ही लश्करी कार्यवाही करनी बची थी. 1818 मे पेश्वाओ के सामने लडी थी वो महार बटालीयन को 1820 मे बेटल ओफ काठीयावाड से जाना जाता युद्ध लडने के लिए काठीयावाड बुलाया गया. 1821 का साल पुरा होते होते पुरे गुजरात पर अंग्रेजो का कबजा स्थापीत हो चुका था. और ये सब वो विर महार योद्धाओ की वजह से था जो अपने आत्म सम्मन के लिए लड रहे थे. जीन योद्धाओ की कदर और मानव होने का हक भी उन पेश्वाओ ने नही दिया थी.



सोर्स : -
गुजराती पुस्तक સૌરાષ્ટ્ર નો ઇતિહાસ (1807-1947) लेखक एस वी जानी, सौराष्ट्र युनीवर्सीटी के इतिहास विभाग के मुख्य प्रोफेसर.



- कर्नल वोकर ने मोरबी के पास "घुंटु" गांव मे अपना प्रथम दरबार लगाया, उस मे 21 रजवाडे हाजीर रहे और बाकी के लोगो ने प्रशंसापत्र लीखे.

- 1818 अंग्रेजो के सामने पेश्वाओ की पराजय हुई और पेश्वाई का अंत हुआ.



-कर्नल वोकर को मुंबई सरकार की मंजुरी मीली


- अन्य पत्रो का उल्लेख


- महार रेजीमेंट 1826 तक बेटल ओफ काठीयावाड लडी थी. उस युद्द मे वो काठीओ, दरबारो, गायकवाड, नवाब और जाफराबाद के हबसीओ से लडे थे.