By News Desk
राज्यसभा में बहन मायावती ने मंगलवार (18 July,2017) को सहारनपुर हिंसा का मुद्दा उठाया. उन्होंने सहारनपुर की पुरी घटना को केंद्र की साजिश बताया. और दलितो के साथ हो रहे भेदभाव के मुद्दे को संसद मे उठाना चाहा. पर दलित और पीछडा विरोधी बहरी सरकार को इस से कोइ फर्क नही पडता था. सहारनपुर जैसी संवेदनशील घटना पर भी सरकार का ये रुख बेहद नीराशाजनक है.
अभी वह अपनी बात रख ही रही थीं कि उपसभापति पी जे कुरियन ने घंटी बजाकर उन्हें बात जल्दी खत्म करने का इशारा दिया. इस पर मायावती नाराज हो गईं. उन्होंने कहा कि उन्हें बोलने से क्यों रोका जा रहा है??? और बाद मे उपसभापति और बहन मायावती की बहस हो गई. बाद मे मायावती जी ने कहा कि अगर उन्हें बोलने से रोका जाएगा तो वह राज्यसभा से इस्तीफा दे देंगी.
इसके बाद राज्यसभा विपक्ष के द्वारा सरकार पर दलित-विरोधी होने के नारे लगने शुरू हो गए. कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा, 'अगर सरकार को बहुमत दलितों, किसानों और अल्पसंख्यकों की लिंचिंग के लिए मिला है तो हम इस सरकार के साथ नहीं. दलित, किसान और अल्पसंख्यकों की लिंचिंग हो रही है.'
हंगामे के बीच बहन मायावती गुस्से में सदन से उठकर बाहर चल दीं. विपक्ष के नेताओं ने भी उनका समर्थन करते हुए सदन से वॉकआउट कर दिया.
सदन के बाहर मीडिया से बीतचीत में मायावती ने कहा कि वह राज्यसभा में समाज के कमजोर वर्ग के बारे में बात करना चाहती थीं, लेकिन उन्हें ऐसा करने से रोका जा रहा है. बाद मे उन्होंने कहा, 'लानत है...अगर मैं अपने समाज की बात सदन में नहीं रख सकती तो मुझे सदन में रहने का अधिकार नहीं है. यही वजह है कि मैंने राज्यसभा से इस्तीफा देना का फैसला किया है. मेरी बात नहीं सुनी जा रही है...मुझे बोलने नहीं दिया जा रहा है.'
मायावती ने कहा कि दलितों और छोटे तबकों के लोगों पर लगातार अत्याचार हो रहा है. सहारनपुर में दलितों का बड़े पैमाने पर उत्पीड़न हुआ. गुजरात के ऊना में दलितों पर अत्याचार हुआ. मुझे शब्बीरपुर में हेलीकॉप्टर से जाने की इजाजत नहीं दी गई. सड़क के रास्ते जाना पड़ा. जब मैं गांव पहुंची तो डीएम और एसपी गायब थे. मैंने वहां कोई ऐसी बात नहीं कही जिससे समुदायों के बीच लड़ाई हो जाए. यूपी में अभी भी महाजंगलराज और महागुंडाराज है. हमें पीड़ितों की मदद के लिए भी प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ी.
उना मामले मे जीस तरह बहन मायावती के द्वारा मुद्दा उठाये जाने पर सरकार को राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीस तरह नालेशी का सामना करना पडा वह देख कर बौखलाये हुए सत्ता पक्ष ने उन की आवाज को दबाने का ये ही रास्ता चुना.
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