By Kundan Kumar
लाहौर जातपांत तोडक मंडल १९३६ के वार्षिक सम्मलेन की अध्यक्षता करने के लिए बाबासाहब डॉ आम्बेडकर को आमंत्रित किया गया था, उसके लिए बाबासाहब डॉ भीमराव आम्बेडकर ने भाषण तैयार किया था.. सम्मलेन रद किये जाने की वजह से यह भाषण पढ़ा नहीं जा सका, लेकिन यह एक बहोत ही महत्वपूर्ण और वैचारिक दस्तावेज है, जो जातिभेद का नाश करने के लिए और स्वतंत्रता समानता बंधुता से परिपूर्ण समाज की रचना में बहोत ही सहायक हो शकता है..
लाहौर जातपांत तोडक मंडल १९३६ के वार्षिक सम्मलेन की अध्यक्षता करने के लिए बाबासाहब डॉ आम्बेडकर को आमंत्रित किया गया था, उसके लिए बाबासाहब डॉ भीमराव आम्बेडकर ने भाषण तैयार किया था.. सम्मलेन रद किये जाने की वजह से यह भाषण पढ़ा नहीं जा सका, लेकिन यह एक बहोत ही महत्वपूर्ण और वैचारिक दस्तावेज है, जो जातिभेद का नाश करने के लिए और स्वतंत्रता समानता बंधुता से परिपूर्ण समाज की रचना में बहोत ही सहायक हो शकता है..
बाबासाहब लिखते है की, “इतिहास सामान्यतः इस प्रस्ताव को बल देता है की, राजनितिक क्रांतिया हमेशा सामाजिक और धार्मिक क्रांतियो के बाद हुई है..” इस बात के समर्थन में बाबासाहब ने कुछ द्रष्टान्त दिए है, जो की विश्व में बहोत हि मशहूर है..
१) लूथर द्वारा आरम्भ किया गया धार्मिक सुधर यूरोप के लोगो की राजनितिक मुक्ति का अग्रदूत था..
२) इंग्लेंड में प्युरिटनवाद के कारण राजनितिक स्वतंत्रता की स्थापना हुए.. प्युरिटनवाद ने नए विश्व की स्थापना की.. प्युरिटनवाद ने ही अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम को जीता.. प्युरिटनवाद एक धार्मिक आन्दोलन था..
३) अरबो के राजनितिक सत्ता बनने से पहले वे पैगम्बर मुहम्मद साहब द्वारा आरम्भ सम्पूर्ण धार्मिक क्रांति से गुजरे थे..
यहाँ तक की भारतीय इतिहास भी इसी निष्कर्ष का समर्थन करता है..
४) चन्द्रगुप्त द्वारा संचालित राजनितिक क्रांति से पहले गौतम बुद्ध की धार्मिक और सामाजिक क्रांति हुई थी..
५) शिवाजी के नेतृत्व में राजनितिक क्रांति भी महारास्ट्र के संतो द्वारा किए गए धार्मिक और सामाजिक सुधारो के बाद ही हुई थी..
६) सीखो की राजनितिक क्रांति से पहले गुरु नानक द्वारा की धार्मिक और सामाजिक क्रांति हुई थी..
इन उदाहारण से यह बात प्रकट होती है की, “जनता के राजनीतिक विस्तार के लिए मन और चेतना की मुक्ति आवश्यक व् प्रारंभिक है..”
यह बात बाबासाहब ने १९३६ में लिखी थी, और यह ग्रन्थ आज “ANNIHILATION OF CASTE” यानि “जातिभेद का बिजनाश” के नाम से प्रसिद्ध है.. अपने पुरे जीवनकाल में बाबासाहब ने इस जातिभेद का नाश कर एक समतामूलक समाज की रचना के लिए कार्य किया.. २ वर्ष ११ महीने और १८ दिवस के अथाग परिश्रम के बाद बाबासाहब ने विश्व का सबसे बड़ा लोकशाही बंधारण लिखा, जिसमे इस जातिविहीन राष्ट्र की संकल्पना समाविष्ट की उन्होंने..
१९५६ में बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद उनका ये कारवां कुछ रुक सा गया था, जिसे बहुजन नायक मान्यवर साहब कांशीराम ने आगे बढाया.. मैने ऐसा कई लोगो से सुना है की, बहुजन नायक मान्यवर साहब कांशीराम ने अपने पुरे जीवन काल में “जातिभेद का बिजनाश” पुस्तक का अध्ययन कई बार किया था, और जब पहली बार उनके एक साथी ने उन्हें यह किताब दी थी तब, एक ही रात में उन्होंने इस किताब को सात से आठ बार पढ़ा था..
इसी ग्रन्थ को पढ़कर बहुजन नायक मान्यवर साहब कांशीराम ने, अपने साथियों के साथ मिलकर १९७८ में बामसेफ (BAMCHEF - All India Backward and Minority Communities Employee’s Federation) की स्थापना की, जो की एक सम्पूर्ण बिनराजकीय संगठन था, जिसके तहत उन्होंने गैरराजनीतिक और सामाजिक जड़े मजबूत करने का कार्य किया.. उसके बाद उन्होंने DS4 (दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) और १९८४ में बसपा (बहुजन समाज पार्टी) की स्थापना की, जो की एक राजकीय संगठन था, और आज भारत देश की तीसरे नम्बर की सबसे बड़ी राजकीय पार्टी है..
बामसेफ के माध्यम से बुद्ध, फुले, बिरसा, शाहू, आम्बेडकर, कांशीराम की मानवतावादी बहुजन विचारधारा के माध्यम से सामाजिक जड़ें मजबूत करने के बाद ही, साहब कांशीराम ने राजनीती में कदम रखा, और बसपा से माध्यम से बहुजनो को सत्ता तक पहुँचाया, जिसके लिए बाबासाहब कहा करते थे की, “जाओ और जाकर, अपने घर की दीवारों पर लिख दो की, मुझे इस देश की शासक जमात बनना है..”, “Political Power is the Master Key..”
साहब कांशीराम कहते थे की, “जिस समाज की गैरराजनीतिक जड़े मजबूत नहीं होती, वो समाज राजनीती में कभी सफल नहीं हो शकता..” एक तरफ से देखा जाये तो यह बाबासाहब के कथन, “राजनितिक क्रांतिया हमेशा सामाजिक और धार्मिक क्रांतियो के बाद हुई है..” का पूर्ण समर्थन करता है..
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