May 23, 2017

सत्य को जानो सही लगे वही मानो, ऐसा तथागत बुध्ध ने कहा है : संजय पटेल

सदियों पहले जब टीवी-सिनेमा का आविष्कार नहीं हुआ था तब जो निठल्ले और निकम्मे लोग थे, जिन्हें काम करके खाना पसंद नहीं था और बैठे बैठे रोटियां खाते थे ऐसे निठल्ले लोगों ने अपने टाइम पास और मनोरंजन के लिए कहानिया लिखी जिसमे बन्दर उड़ता हो, पशु का सर और बदन मनुष्य का, फल खाने से बच्चे पैदा हो, अंगुली पे पहाड़ खड़ा कर लेना, समंदर के अंदर से पृथ्वी को बहार निकलना और न जाने क्या-क्या !
जैसी की आज के बच्चे कार्टून देखते है टॉम एंड जेरी, छोटा भीम, डोरेमोन, जंगल बुक..... 
आज के टेक्नॉलॉजि के ज़माने में जहां आम आदमी के पास भी मोबाइल जैसा आविष्कार अपने हाथो में होता है फिर भी हम जो हमारी आँखों के सामने कार्टून दीखता है उसे सच नहीं मानते और बच्चों को भी सिखाते है की ऐसा कुछ होता नहीं यह सिर्फ कार्टून है।
तो मेरा यही सवाल है की हमें जो आँखों के सामने दीखता है ऐसे कार्टून को हम सत्य नहीं मानते तो फिर सदियो पहले ऐसी कार्टून की कहानियां लिखी गई उसे हम सनातन सत्य मानकर क्यों मुर्ख बन रहे है ?
जो सूर्य पृथ्वी से 92,935,700 miles जितना दूर है और पृथ्वी से 109 गुना बड़ा है भला उसे कोई कैसे मुँह में उगल सकता है ?.. मेरी तो सोच और समझ के बहार है यह... अगर सूर्य को मुँह में लेना हो तो उसे सूर्य से बड़ा अपना कद करना पड़ेगा मान भी लो को उसने सूर्य से बड़ा अपना कद किया तो फिर इतने बड़े सूर्य को मुंह में लेकर वह पृथ्वी पर वापिस कैसे आ सकता है ?
क्या यह कहानी आपको डोरेमोन या छोटा भीम या फिर टॉम एंड जेरी जैसी नहीं लगती !? 
जरा अपने दिमाग पे जोर डालना...
आज के कार्टून की देखी हुई कहानिया और सदियों पुरानी लिखी हुई कार्टून की कहानियो पे अपने दिमाग से सोचना... कौन फिरकी ले रहा है और आपका रॉंग नंबर किसने लगवाया है सब मालूम हो जायेगा...
सत्य को जानो सही लगे वही मानो... ऐसा तथागत बुध्ध ने कहा है। 
मुर्ख व्यक्ति सही क्या है और गलत क्या है उसका फैसला नहिं कर सकता। क्या हम मुर्ख है की कोई कुछ भी कहे और हम मान ले? एकबार जरूर सोचना की कोई हमको मुर्ख तो नहिं बना रहा।
- संजय पटेल

























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દબંગ જાતિ એટલે કઈ જાતિ ? : સંજય પટેલ

તમે ક્યારેય એવું સાંભળ્યું કે કોઈ સ્ત્રીએ પુરુષ પર બળાત્કાર કર્યો કે પછી પાંચ-છ સ્ત્રીઓએ એક પુરુષ પર સામુહિક બળાત્કાર કર્યો !
સ્વાભાવિક છે કે આનો જવાબ 'ના' જ હશે... 
હમેંશા પુરુષો જ સ્ત્રીઓ પર બળાત્કાર કરતા આવ્યા છે અને આ પુરુષો કોણ છે તમે ઓળખો છો ?
મીડિયાવાળા કે છાપા વાળા તેમને દબંગ જાતિના કહેતા હોય છે આ દબંગ જાતિ એટલે કઈ જાતિ ?
તો જાણો...
જો તમે એવું માનતા હોય કે આ સૃષ્ટિની રચના બ્રહ્મા એ કરી છે (હું નથી માનતો) તો આ સૃષ્ટિ પર સૌથી પેલો બળાત્કાર બ્રહ્મા એ કર્યો હતો પોતાની જ દીકરી સરસ્વતી પર. (સરસ્વતી પુરાણ માં આવું લખેલું છે)
વિષ્ણુ અને ઇન્દ્રે પણ બળાત્કાર કરેલ છે એવા ઉલ્લેખ હિન્દૂ ધર્મ શાસ્ત્રો માં આવે છે.
તો આ દબંગ જાતિ આમની જ વંશજ છે.
જેમના પૂર્વજો એ વિશ્વમાં સૌથી પેલા બળાત્કાર કર્યા હોય અને એ પણ પોતાની જ દીકરી પર તેમના વંશજો સુધરે ખરા !?
રહી વાત સ્ત્રીઓની તો સ્ત્રી તો આ દેશની મૂળનિવાસી છે... મુળનિવાસીઓ ના લોહી કે સંસ્કાર માં આવા નીચ કામો આવે જ નઈ !
સ્ત્રીઓ માટે અમને સન્માન છે અને હંમેશા રહેશે...
સ્ત્રીઓ ને ગુલામીમાંથી આઝાદ કરાવનાર એવા નારીમુક્તિદાતા ડૉ. ભીમરાવ આંબેડકરને કોટી કોટી વંદન...
- સંજય પટેલ



















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डर, आस्था या अंधश्रद्धा ? - संजय पटेल

"डर" शब्द है तो बहुत छोटा लेकिन अगर इसे परिभाषित करे तो कह सकते है कि यह जीवन भर साये की तरह हमारे साथ चलता है और यह हमारी इच्छाशक्ति पर निर्भर रहता है कि हम इसे अपने से कितना दूर रह सकते है l डर कई प्रकार के होते है लेकिन मैं जिस डर की बात कर रहा हूँ वह है ईश्वर का डर l बहुत से लोग न चाहते हुए भी इस वजह से पूजा-पाठ नहीं छोड़ते कि कही उनका अनिष्ट न हो जाये पर क्या यह सच है ?
दूसरी बात हम अपनी किस्मत बदलने के चक्कर में मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाते रहते है लेकिन अगर मंदिर जाने से ही किस्मत बदल जाती तो आज मंदिरों की सीढ़ियों पर बैठने वाले भिखारियों की किस्मत पहले बदल जाती क्योकि वे भगवान के सबसे नज़दीक रहते है l आप ने यह भी देखा होगा कि मंदिर में चढ़ावे के सामान को देवी-देवताओं की मूर्ति तक पहुंचाने में 5 से 10 रुपये वह पर खड़े लोग वसूल लेते है l न देने पर हो सकता है आपको अपना चढ़ावा ठीक से न चढ़ा पायें l जाने अनजाने हम किसी और की तिजोरियां भरते जा रहे है यानि जो सदियों से हमें गुलाम बनाकर रखा और बाबा साहेब डा० अम्बेडकर जी ने हमें अपने संघर्ष से आज़ाद कराया l यह हमारी अज्ञानता का परिचय ही है कि हम यह नहीं समझ पाते कि जब वे लोग मंदिर में खड़े होकर पाप कर रहे है और कोई डर नहीं तो फिर हम घर में बैठ कर ईश्वर से क्यों डरते है l
इसके विपरीत अगर हम बौद्ध धम्म की बात करे तो वहां इस डर नाम की चीज़ नहीं मिलेगी क्योंकि बौद्ध धम्म आत्मा-परमात्मा को नहीं मानता l बौद्ध धम्म कहता है कि स्वयं की शक्ति पर विश्वास रखो और गौतम बुद्ध ने कभी अपने को ईश्वर की रूप में नहीं परिभाषित किया बल्कि उन्होंने अपने आपको मार्गदाता बताया और कहा कि मेरे बताये हुए रास्ते पर चलते है तो आप खुद का और समाज का हित कर सकते है इसी लिए युगपुरुष बाबा साहेब ने सभी धर्मों में बौद्ध धम्म को श्रेष्ठ माना और बौद्ध धम्म की दीक्षा ली l
प्यारे मित्रों हम सभी को जागरूक बनना पड़ेगा और लोगों को भी जागरूक करना होगा तभी हम देश में फैले पाखण्ड को मिटा सकते है l
- संजय पटेल