October 07, 2017

अगर मै गलत हूं... तो फिर कौन सही..????

By Vishal Sonara || 07 Oct 2017 09:34 PM


गुजरात की बाहोश पुलिस ने मूंछ कांड की एक घटना को गलत साबित कर दिया है. और उस मे फरियाद  करने वाले 17 साल के लडके ने पुलिस के सामने कबुल कर लिया है कि ये सब उसने पब्लिसिटी के लिये किया है. पुलिस के काम की हम सराहना करते है. और इसी प्रकार की बाहोशी पिछले साल की  घटना उनाकांड , थानगढ (2012 मे) मे तीन बच्चो को पुलिस ने ही मार दिया था उस प्रकार के केसीस मे दिखायें ऐसी अरज है. 
वो तो छोड़िए पिछले हप्ते की हि घटना मे आणंद ज़िले के भादरणीया गांव मे गरबा देखने गये दलित लडके को पीट पीट कर मार देने वाली घटना मे भी उसने खुद अपने को पीटवाया था ऐसी बात तो नही है ना वह तो जरुर चेक करीयेगा. 

अब बात करते है उस घटना की जो मीडिया मे उछाला जा रहा है की मूंछ कांड पुरा गलत है. 

पुरी घटना इस प्रकार है जीसे गुजरात के जातिवादीयो का मूंछ कांड कहा गया है. 

25 सितंबर को गुजरात की राजघानी गांधीनगर के लिंबोदरा गांव में मूंछ रखने के मामले में एक दलित युवक की पिटाई कर दी गई.  उस दिन राजपूत समुदाय के कुछ सदस्यों ने पीयूष परमार (24) की कथित तौर पर पिटाई का आरोप लगाया था. 
इस के बाद मे पुरे देश मे से दलित समाज के युवाओ को इस व्यवस्था पर गुस्सा दिख रहा था.  इस घटना के बाद एक और घटना को मीडिया ने आश्चर्यजनक महत्व दिया और पहले वाली घटना को थोडा डीम कर के इस दुसरी घटना जो की पहली घटना के ठीक चार दिन बाद 29 तारिख को घटी थी. 
मीडिया मे आने लगा दलित को ब्लेड से मारा, चाकु मार दिया , बेरहमी से ये किया वो किया न जाने क्या क्या प्लोट लोगो के सामने रखे गये. 

दलितो को ये सब सुन सुन कर ज्यादा तकलिफ हो रही थी. 
इसी बिच दशहरा (30 अक्टुबर) पर रात मे गरबा देखने गये एक युवक कि पीट पीट कर हत्या कर दि गई ऐसी खबरे आने लगी. 

ये तीनों घटना ने मीडिया और अलग अलग माध्यमो के जरिये पुरे देश के दलित समाज के दिमाग मे एक तुफान खड़ा कर दिया था.  गुजरात का दलित समाज अपने आप को असुरक्षीत महसुस करने लगा. इसी असुरक्षा की भावना मे सारे देश के दलित गुजरात के दलितो के साथ आकर खडे रहने लगे. सोशल मीडिया से एक दुसरे को जोडने लगे और एक बडा आंदोलन खडा हो गया जिसे तीन हैशटेग के जरिये ट्वीटर पर हम देख सकते है #RightToMoustache #MrDalit और #DalitWithMustache .

इस प्रकार दलितो के पास तीन रोशपुर्ण घटनाए थी जो उन के जहन मे कांटे की तरह चुभती थी. और कई घटनाए और भी है पर वो भुतकालीन है. 
- 25 सितंबर को मूंछो के लीए पियुश परमार को पीटने वाली घटना
- 29 सितंबर की ब्लेड / छुरी वाली घटना
- दशहरा (30 अक्टुबर) मे गरबा देखने गये युवक को मार डालने की घटना

पुरानी घटनाएं भी जब तक न्याय न मीले भुली तो नही ही जा सकती. और इस देश का भी अजीब रेकॉर्ड है दलितो की ज्यादातर घटनाओ मे न्याय मीलता ही नही है. चाहे हत्याकांड ही क्यों न हो. 

पर हाल मे इन तीन घटनाओ के कारण गुस्सा सोशल मीडिया पर केंपेईन के माध्यम से शांतीपुर्ण तरीके से हो रहा था. और ये विरोध मे देश विदेश मे से भी कई लोग जुडे थे. बहोत आंतर राष्ट्रीय न्युस चैनलो ने भी इन सभी घटनाओ की बहोत नींदा की. 

अब पुलिस का काम देखते है. 
तीन मे से एक उपर की और एक नीचे की इस प्रकार दो घटनाओ पर मौन रख कर काम कीया उन्होने, बाहोश है तो बाहोशी से ही काम किया होगा ये मान लेते है. पर बीच वाली घटना की जीस पर (पुलीस की ही तरह) बाहोश मीडिया ने भी बहोत डराया था दलितो को इस घटना का केस सोल्व कर दिया...!!!!

इस घटना का संज्ञान देश मे तो चलो ठीक है विदेशो मे भी लीया जाना चाहिये. इतने कम समय मे इतनी बडी कामीयाबी. 29 सितंबर की उस घटना को पुलीस ने गलस साबीत कर के कुछेक रेकोर्ड तो तोड ही दिये होगे. अब थानगढ, आणंद, उना और भी कई घटनाओ की बारी हो ऐसी हम सब की मांग है. 


पुलीस के इस काम को ट्रीब्युट देती हुई भारत देश की जातिवादि मीडिया ने शुरु कर दिया मूंछ कांड जुठ था, फरेब था,  सुर्खीओ मे आने के लिए किया गया था. पर मीडिया को इस घटना को छोड कर बाकी की दोनो घटना भी जुठी लगने लगी है क्या?? उस पर तो कवरेज मानो कही से ब्लोक ही कर दिया हो. सब जगह से जातिवादी सोच वाले लोगो को भी अब सवाल उठाने का मौका मील गया. उन के सवाल कुछ अंश तक वाजीब भी है ये हम मानते है. पर वो सीर्फ और सीर्फ दुसरी घटना तक ही सीमीत है.   25 सितंबर और दशहरा वाली घटना को भी मानो वह गलत ही मान रही है इस प्रकार की जातिवादी रीपोर्टींग कर रहे है कुछ लोग. 

मीडिया तो छोडो जातिवादी लोगों को मानो कुछ बडा खजाना हाथ आ गया हो इस प्रकार सोशल मीडिया पर लग गये है.  एक केस गलत साबीत हुआ तो सब गलत ये मान नेऔर मनवाने लगे, अरे वो गरबा देखने गए युवक का  खुन हो गया वो भी गलत कैसे साबीत करोगे मनोरोगीओ??? जातीवाद के चलते और दलितो के प्रती ध्रुणा मन मे होते हुए लोग इस प्रकार कि बाते कर रहे है. इस को भीमराव आंबेड्कर ने मनोरोग कहा है. और ये देश इस प्रकार के मनोरोगीओ से भरा पडा है. और ये इस प्रकार का रोग है की समजाने या हकिकत को सामने लाने से नही मीटेगा. इस के लीए भीमराव आंबेडकर जैसे मनोवैग्यानीक की जरुरत है इन लोगो को. 

दलित युवाओ ने इस मूंछ केंपेईन को चलाया और मे भी इस का हिस्सा रहा हु. तीन मे से एक घटना के चलते मे अपनी गलती ना होते हुए भी स्वीकार कर रहा हु की मै गलत हु. पर अब हमे ये भी जवाब चाहीये " तो फिर कौन सही है" ???? जातिवाद कर रहे हैं वो?  या मूंछ से विरोध कर रहे हैं वो?? 

जो लोग समजदार है उनके लिए ये बात है बाकी के लोगो को उनकी मानसीकता मुबारक हो. 

આ અત્યાચારનું શું?

By Raju Solanki  || 07 October 2017 


અમદાવાદના રાજપુર ગોમતીપુર વિસ્તારમાં મગન કુંભારની ચાલી, ખાડાવાળી ચાલી અને કુંડાવાળી ચાલી કે પછી નરોડા રોડ પર અશોક મિલની ચાલી અને કલેક્ટરની ચાલી કે પછી અસારવામાં અનાજ ગોડાઉનના છાપરા અને કડીયાની ચાલી કે પછી ઓઢવમાં સોનીની ચાલી અને જનતાનગર કે પછી વાડજમાં રામાપીરનો ટેકરો અને ગાંધીનગરનો ટેકરો, આવી હજારો ચાલીઓ અને સેંકડો ટેકરાઓમાં દર વર્ષે જન્મતા છ લાખ બાળકોના લલાટે લખાયેલું છે કે તમારે મોટા થઇને તમારા ઘરની બાજુની પેલી ગંધાતી સરકારી સ્કુલોમાં ભણવાનું છે,
જ્યાં તમારે તમારી જિંદગીના બહુમૂલ્ય વર્ષો રીતસર વેડફવાના છે,
જ્યાં કહેવાતા ભણતર પછી તમે ઢબૂ પૈસાના ઢ થઇને બહાર નીકળવાના છો અને માંડ માંડ આઠમુ-દસમુ ભણ્યા પછી તમે કમરતોડ ખાડા ખોદવામાં, સાયકલ લઇને કુરીયર સર્વિસમાં ઢસરડા કરવામાં, સીક્યુરિટીના કપડાં પહેરી મૉલમાં સીસોટીઓ મારવામા અને સલામો ઠોકવામાં તમારી બાકીની જિંદગી પૂરી કરવાના છો.
દર વર્ષે છ લાખ બાળકોના ભવિષ્યમાં ઓપરેશન બ્લેકબોર્ડના નામે અંધારુ કરનારાઓના કોઈ છાજિયા લેવાતા નથી. દર વર્ષે છ લાખ બાળકોને મૂછો વગરના નમાલા બનાવનારી શિક્ષણ વ્યવસ્થા સામે કોઈનું લોહી ઉકળતું નથી. શરમની વાત છે.
દર વર્ષે છ લાખ બાળકોના નાગરિક તરીકેના અધિકારો છીનવાઈ જાય એને તેને કોઈ અત્ચાચાર પણ ગણતું નથી. ક્યાંક કોકને ટપલી પડી કે કોકને કોઈ ગાળ બોલ્યું કે કોકને કોઈએ છરી મારી તો મીડીયામાં કાગારોળ થઈ જાય છે. અહીં છ લાખ બાળકોને જિંદગીભર ટપલીઓ ખાતા કરી દેનારા શિક્ષણ અંગે એક શબ્દ ઉચ્ચારાતો નથી.
કમાલ છે. તમારા બધાની સંવેદનશીલતા.
ધન્ય છે તમારી ચળવળો.
ધન્ય છે તમારા આંદોલનો.
ધન્ય છે તમારી કર્મશીલતા
ધન્ય છે તમારી નેતાગીરીઓ.