By Vishal Sonara 19/06/2017
लगता है भारत कभी भी जातीवादी राजनीती से मुक्त न हो पायेगा. हम मे से बहोत लोग चाहते है की हमारा भारत देश अब जातिवाद से मुक्त हो जाए और कही पर भी ये जाति जाति का खेल ना खेला जाए. पर लगता है राजनेता ये होने ही नही देगे.
भारत के लोग अब जाती के खेल से उब चुके है और ज्यादातर लोग अब भारत को जाती मुक्त समाज बनाने के पक्ष मे है. इस जातीवाद से देश के ज्यादातर लोग प्रभावीत है.
परंतु ये जातिवादी मानसिकता यही राजनितिक लोग फैलाते है
जब तक जातीओ मे भारत बंटता रहेगा ये लोग हम पर ऐसे ही राज करते रहेंगे.
भारतीय जनता पार्टी ने बिहार के गवर्नर रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाने की घोषणा से लोगो ने इस उम्मीद से अपना समर्थन कीया की चलो जातीवादी मानसीकता से उनका चयन नही कीया गया.
पर यहा पे खेल कुछ और ही था. उत्तरप्रदेश के अनुसूचित जाती के राम नाथ कोविन्द कोरी या कोली जाति से है. पर बीजेपी के गुजरात के भावनगर पश्चीम से एमएलए जीतेन्द्र सवजी भाइ वनाणी उर्फे जीतु वनाणी ने जातीवादी कार्ड खेल ही दीया. अपने ओफीशीयल फेसबुक पेज से एमएलए जी ने उनको लीख दीया "अखील भारतीय कोळी समाज के प्रमुख और ओबीसी समाज के वरिष्ट नेता".
उत्तरप्रदेश मे कोरी या कोली जाती अनुसुचीत जाते मे है और गुजरात के कोळी ओबीसी मे है ये सब को पता है. इस मे जाती देखना जरुरी भी नही था फीर भी जीतु वनाणी ने ओबीसी कार्ड खेलने के लीये बाकायदा लीख ही दीया. इस से ये बात स्पष्ट हो जाती है की नेताजी को गुजरात के अगामी चुनाव मे कोळी समाज के वोट का लाभ लेने के लीये ये सब करना पड रहा है.
वहाँ दिल्ली और पुरे भारत मे भाजपा उन्ही को दलित बताकर दलित कार्ड खेलनेमे व्यस्त है!!!
"एक तीर से दो नीशान" वाली पोलीसी यहा पे साफ दीख रही है.
सुत्रो की माने तो ये नीतिश कुमार का आईडीया था की रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपती बनाया जाये पर इन के नाम पर अनुसुचीत जाती और ओबीसी की राजनीती करने का आइडीया किस का है ये समज में नही आ रहा है.
भाजपा अपने चुनावी प्रचार और मीडिया मे बडे जोरो से बोलती है की हम जाती की राजनीती नही कर रहे पर उनके आचार अपने विचारो से क्यो नही मेल खा रहे है ये लोग समजने मे विफल है.