By Veeru Ji || 25 July 2017 at 15:00
फूलन देवी को समर्पित प्रथम कविता
लुट रही थी लाज कंही फूलन की खेत में।
तडप-तडप ऐडियां भी गड गईं थी रेत में।
चीखती थी जौर से और गिरती थी खेत में।
भूखी ही तडप रही दाना न पेट में
भूखे दरिंदों ने ले लिया चपेट में ।
जौरों से चीख रही चोट लगे पेट में
छीन लिये कपडे और घुमा दिया गांव में।
शर्म बाली बेडियां भी टूट गई पांव में।
भर रहै थे सब दरिंदे बारी बारी वांह में।
ढूब रही थी फूलन जैसे छेद नाव में
टूट गई फूलन जो खिल रही थी बाग में
सूख गये आंसू भी बदले की आग में
लेकर बंदूक वो भी निकल पडी गांव में।
कर कर के नंगे फिर मारती थी गांव में...
फूलन देवी पर दूसरी कविता
लूटकर लाज जब उसे नंगा घुमाया था।
उस बक्त उसे बचाने कोई कृष्ण नहीं आया था
तप रही थी धूप न ही बादलों का साया था
बैहसी दरिंदों ने नंगा घुमाया था।
देख रहै लोग मगर कोई नही आया था
किस से उम्मीद करे,कोई नही साया था
मर गई शरम वंही ऐक कसम खाया था
बदले की भावना से खून ऊतर आया था
उस दिन से फूलन में तेज नया आया था
लेने को बदला हत्यार फिर उठाया था
मार के दरिंदों को बदला चुकाया था।
नारी शक्ती को सच कर दिखाया था
उस दिन से फूलन का परचम लहराया था
ईज्जत से जीने का दौर नया आया था...
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