By Vishal Sonara || 25 July 2017 at 22:48
डो आंबेडकर ने अपने जीवन मे अनगिनत पुस्तकों का अध्ययन कीया था और अनगिनत पुस्तकें लीखी भी हैं. उन्होने सामाजिक बदलाव से जुड़े हर एक सिद्धांत को समजा और जाना था. उन की ईस पढाई और रिसर्च का निचोड हमारा संविधान दे ही रहा है. डो. आंबेडकर ने अपनी किताब "बुद्धा और कार्ल मार्क्स" मे मार्क्सवाद के बारे मे भी लीखा है जो कि हम सभी ने पढी है और अगर आप ने ना पढी हो तो आपको जल्द ही पढ लेनी चाहीये. क्योंकि मार्क्स वाद को बारीकी से जानने के लीये वह कीताब बहोत महत्व रखती है.
कार्ल मार्कस के सिद्धांतों के बारे मे उन्होने "एनहीलेशन ओफ कास्ट" मे ये बाते लीखी है.
(ओरीजनली उन्होंने ये भाषण जात पात तोडक मंडल की सभा मे देने के लिये लिखा था पर बाद मे वह वहां पर दे नही सके थे तो उस को किताब के स्वरुप में हमारे सामने रखा है.)सर्वहारा वर्ग को जागृत करने के लिये और आर्थिक क्रांति लाने के लिए कार्ल मार्क्स ने कहा, "आप के पास गुलामी की झंझीरो के अलावा खोने के लीये कुछ नही है."
लेकिन जिस धुर्त तरीके से विभिन्न जातियों में सामाजिक और धार्मिक अधिकार वितरित किए जाते हैं, जिनमें से कुछेक जातियों को अधिक और कुछ को कम अधिकार होते हैं, ये हालात कार्ल मार्क्स की उपरोक्त बात को को जाति व्यवस्था के खिलाफ हिंदुओं को जाग्रुत करने के लिए काफी बेकार बना देती है।
डो. भीमराव आंबेडकर ने कार्ल मार्क्स की थ्योरी का बहोत बारीकी से अध्ययन करने के बाद ये बात कही थी. मार्क्स के सिद्धांत सिर्फ दो वर्गो के ईर्द गीर्द हि धुमते दीख रहे है. मार्क्स के अनुसार समाज के शोषक ओर शोषित - ये दो वर्ग सदा ही आपस मे संघर्षरत रहे हैं और इनमें समझोता कभी संभव नहीं है. उन को भारत मे प्रवर्तमान जाती प्रथा का कोइ संग्यान ही नही था. भारत मे हजारों जातियां हैं हर एक उंची जाती अपने से नीची हर जाति का शोषण करता है. जैसे जैसे ये नीचे की तरफ जाता है शोषण काफी बढता रहता है. मार्क्स अपने हिसाब से बिल्कुल सही थे पर हिंदू धर्म की बहुखंडीय शोषित व्यवस्था में उन के सिद्धांतों को फिट बैठाना सिद्धांतों से बेइमानी हैं. क्योंकि मार्क्स ने अपने भौगोलीक और राजनैतीक संदर्भ मे ये सारे सिद्धांतों को गढा लीखा था इस लीये मार्क्स के लीये वहा पर स्थापीत दो वर्गो की बात महत्वपुर्ण थी. वे सदैव ही पुंजीवाद के विरोध मे थे पर भारत में पुंजीवाद और जातिवाद दोनो अलग बात है. जातिवाद के जरीये पुंजीपती बने बैठे लोगो को समजना कार्ल मार्क्स के सिध्धांतो से कभी संभव नही है ये बात बाबा साहब ने बार बार कही है. हा अगर जातिवाद खत्म हो जाता है तब ये बात फिट जरुर बैठती है. मार्क्सवादियों को भारत में मार्क्सवाद को मजबूत बनाना है तो पहले जीतोड मेहनत करके देश से जातिवाद को मिटाना होगा. तभी कोई बात बन सकती है. ये करने से जातिवाद से ग्रसित 85% से भी ज्यादा हिन्दूओं का साथ निसंदेह ही पहले हांसिल कर लेंगे.
कार्ल मार्क्स की थीयरी को भारत के संदर्भ मे समजना मतलब की आसाम के चाय के बागानों की खेती पध्धती को कच्छ के सफैद रण मे नमक के उत्पादन के लीये इस्तेमाल करना.
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