By Social Media Desk
जब पुस्तक प्रेमी ने एक पुस्तक जलाया
आज 25 दिसंबर है न...
जी हाँ मैं बाबासाहब अम्बेडकर और मनुस्मृति की ही बात कर रहा हूँ
ब्राह्मणवाद के खिलाफ एक बहुत ही बड़ा क्रांतिकारी कदम जो इतिहास में दर्ज हो चूका है |
महाड महासंघर्ष का हिस्सा बनी हुई इस क्रांतिकारी घटना से कुछ ऐसी बाते भी जुडी हुई है जिसे आज के दिन याद करना जरूरी है |
इस दिन के अवसर पर.....
मुस्लिम सज्जन फत्ते खान को याद करना जरुरी है क्योंकि मनुवादियोने तो भरसक प्रयास किया था की मनुस्मृति दहन के इस क्रांतिकारी कार्यक्रम के लिए कोई मैदान ही न मिले; ऐसे में फ़तेह खान ने अपनी निजी जमीन Free of Cost दी थी |
मनुवादीयो ने इस बात का भी ध्यान रखा था की वहां पर पानी, खाना और यहाँ तक की वहां तक पहुँचने के लिए कोई वाहन भी न मिले |
इसीलिए तो....
स्वयं बाबासाहब को मुंबई से पदमावती नामक बोट से वाया धरमतार आने की बजाय दसगाँव पोर्ट से आना पड़ा था और वह भी 5 किलोमीटर तो चलना पड़ा था | क्योंकि कोई भी वाहन चालक मनुवादियों के विरोध के चलते ले जाने के लिए तैयार न था |
कार्यकर्ता ओको पानी और खाना साथ लेकर आने के लिए कहा गया था |
कार्यकर्ताओ को शपथ दिलाई गई थी की....
1. मैं चातुर्वर्ण में विश्वास नहीं रखूंगा ।
2. मैं जाति आधारित भेदभाव को नहीं मानूंगा ।
3. मैं अश्पृश्यता को हिंदुत्ववादी अभिशाप मानूंगा और उसे ख़तम करने का हर संभव प्रयास करूँगा ।
4. मैं असमानता का विरोध करूँगा और खान-पान के किसीभी प्रतिबन्ध का पालन नहीं करूँगा ।
5. मैं इस बात को भलीभांति मानूंगा की अछूतों को भी मंदिर प्रवेश, जलसंसाधन, पाठशाला एवं अन्य सुविधाओ का समान अधिकार है |
बाबासाहब ने अपना ऐतिहासिक भाषण देते हुए...
इस मीटिंग की तुलना 24 जनवरी 1749 के दिन फ्रांस में मिली किंग 16th लुइ की मीटिंग के साथ की थी; जहाँ पर समानता की एक ऐसी ज्योत जली थी की जिसमे राजा रानी समेत कई सामंत जलकर खाक हो गए थे | और उसके बाद 15 साल तक फ्रांस में गृहयुद्ध चलता रहा |
इस फ्रेंच क्रांति ने न केवल फ्रांस के लिए सुख समृद्धि की नींव डाली बल्कि समूचे यूरोप में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया |
बाबासाहब ने यह भी कहा था की केवल मनुस्मृति को जलाने मात्र से ब्राह्मण्य ख़तम नहीं होगा; हमें हमारे अन्दर जो ब्राह्मण्य ग्रस्त व्यक्ति है उसको भी जलाना होगा ।
यह भी कहा था की....
अश्पृश्यता को ख़तम करना है तो हमें अंतर्भोज एवं अंतरजातीय विवाह को मान्यता देनी होगी |
उन्होंने उच्चवर्णीयो को हिदायत देते हुए कहा था की.....
वे इस सामाजिक क्रांति को रोकने की कोशिश न करे, न्याय के सिद्धांत के आधार पर उसे शांतिपूर्ण तरीके से आकार लेने दे; अगर वे चाहते हे की भविष्य में सशस्त्र संघर्ष न हो |
25 दिसंबर 1927 के दिन रात 9 बजे
बापुसाहिब सहस्त्रबुध्धे और अन्य 5-6 अछूत संतो के करकमलो से मनुस्मृति का दहन किया गया |
उस वक्त के प्रचार माध्यमो ने बाबासाहब को भीमासुर नाम से नवाजा था |
मगर बाबासाहब को इस बात की जरा से भी परवाह नहीं थी क्योंकि
वे समता, स्वतंत्रता, बंधुता एवं न्याय के आन्दोलन को आगे ले जाने के लिए अपनी जान के किम्मत पर भी प्रतिबध्ध थे |
मनुस्मृति दहन दिन के इस ऐतिहासिक अवसर पर सामाजिक क्रांति की ढेर सारी मंगल कामनाए