June 04, 2017

खूब लड़ी मर्दानी, वो तो सही मायने में वीरांगना झलकारीबाई थी

वो ईतीहास ही नही जो देश के एक बडे तबक्के के लोगो का प्रतीनीधीत्व ना करता हो.
सभी बहुजन समाज बंधुओ को परम विरांगना झलकारीबाई कोली के बलीदान दीन की स्मृती कराते हुए झलकारीबाई को सादर नमन.
बिना नारी शक्ति के त्याग के कोई देश महान नहीं बन पाता और ही बिना नारी की जागरूकता समता और समानता के ध्येय स्थापित होते.

1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम और बाद के स्वतन्त्रता आन्दोलनों में देश के अनेक वीरों और वीरांगनाओं ने अपनी कुर्बानी दी. किन्तु बहुत से ऐसे वीर और वीरांगनाये है जिनका नाम इतिहास में दर्ज नहीं हो सका. किन्तु उन्हें लोक मान्यता इतनी अधिक मिली कि उनकी शहादत बहुत दिनों तक गुमनाम नहीं रह सकी. अपने शासक झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के प्राण बचाने के लिए स्वयं बलिदान हो जाने वाली वीरांगना झलकारी बाई ऐसी ही एक अमर शहीद वीरांगना हैं, जिनके योगदान को जानकार लोग बहुत दिन बाद रेखांकित कर पाये.
आज भारत से लेकर विश्व तक के इतिहास में दबे-कुचले गरीब लोग ऐसे मिल जाएंगे जिन्होंने विपरीत क्रूर परिस्थितियों में भी मनुष्य की आज़ादी से लेकर देश की आज़ादी तक के लिए अपने सुख सुविधाओ व् प्राणो की परवाह ना करते हुए समता, बंधुत्व और न्याय की मानवीय लौ को जगाए रखा. ऐसी ही महान विभूतियो में एक नाम वीरांगना झलकारी बाई का भी है.
अपनी मातृभूमि झांसी की रक्षा के लिए झलकारी बाई के दिये गये बलिदान को तब के इतिहासकार भले ही अपने स्वार्णिम पृष्टों में समेट सके हों किन्तु झांसी के लोक इतिहासकारों, कवियों एवं लेखकों ने वीरांगना झलकारी बाई के स्वतंत्रता संग्राम में दिये गये योगदान को श्रद्धा के साथ स्वीकार किया.
देशप्रेम और रानी लक्ष्मीबाई से दोस्ती की अद्भुत मिसाल वीरांगना झलकारी बाई भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की बलिवेदी पर कुर्बान होनेवाली और भारत की संपूर्ण आज़ादी के सपने को पूरा करने के लिए प्राणो का बलिदान करनेवाली वीरांगना झलकारीबाई का नाम अब इतिहास के काले पन्नों से निकलकर पूर्ण चाँद की तरह चारो ओर अपनी आभा बिखेरने लगा है.
झलकारीबाई सदोवा और जमुना देवी की बेटी थी. उनके पिता कोरी जाती के बुनकर समुदाय से थेउनका जन्म 22 नवम्बर 1830 को झाँसी के नजदीक भोजला ग्राम में एक सामान्य कोरी परिवार में हुआ था..  उनकी माता के मृत्यु के बाद, जब वह किशोर थी, तब उनके पिता ने उन्हें एक बेटे की तरह बड़ा किया. बचपन से ही वह घुड़सवारी और हथियार चलाने में माहिर थी. लेकिन उस समय की सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए, झलकारीबाई प्रारंभिक शिक्षा नही ले सकी. लेकिन एक योद्धा की तरह झलकारीबाई ने काफी प्रशिक्षण प्राप्त किया था. वीरता और साहस तो झलकारी में बचपन से विद्यमान था. झलकारीबाई को रानी लक्ष्मीबाई के समान माना जाता है. उन्होंने एक तोपची सैनिक पूरण सिंह से विवाह किया था, जो रानी लक्ष्मीबाई के ही तोपखाने की रखवाली किया करते थे. . प्रारम्भ में झलकारी बाई विशुद्ध घेरलू महिला थी किन्तु सैनिक पति का उस पर बड़ा प्रभाव पड़ा. धीरेधीरे उसने अपने पति से सारी सैन्य विद्याएं सीख ली और एक कुशल सैनिक बन गयी. पुराण सिंह ने ही झलकारीबाई को रानी लक्ष्मीबाई से मिलवाया था. बाद में झलकारी बाई भी रानी लक्ष्मीबाई की सेना में शामिल हो गयी थी. सेना में शामिल होने के बाद झलकारीबाई ने युद्ध से सम्बंधित अभ्यास ग्रहण किया और एक कुशल सैनिक बनी.
झाँसीकी रानी लक्ष्मीबाईकी नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गादल की सेनापति थीं.वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं. अपने अंतिम समय में भी रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अंग्रेज़ों के हाथों पकड़ी गयीं. उन्होंने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झाँसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत वीरता से लड़ते हुए ब्रिटिश सेना के कई हमलों को विफल किया था. झांसी के अनेक राजनैतिक घटनाक्रमों के बाद जब रानी लक्ष्मीबाई का अग्रेंजों के विरूद्ध निर्णायक युद्ध हुआ उस समय रानी की ही सेना का एक विश्वासघाती दूल्हा जी अग्रेंजी सेना से मिल गया था और झांसी के किले का ओरछा गेट का फाटक खोल दिया. उसी गेट से अंग्रेजी सेना झांसी के किले में कब्जा करने के लिए घुस पड़ी थी. उस समय रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजों की सेना से घिरता हुआ देख महिला सेना की सेनापति वीरांगना झलकारी बाई ने बलिदान और राष्ट्रभक्ति की अदभुत मिशाल पेश की थी. यदि उनके साथ विश्वासघात किया हुआ होता तो झांसी का किल्ला ब्रिटिश सेना के लिए प्राय: अभेद्य था. बुंदेलखंड के एक-एक इंसान के जहन में झलकारीबाई की वीरता के किस्से बसे हुए थे. एक ना एक दिन उनका नाम और वीरता के किस्से दुनिया के सामने प्रकट होने ही थे. झलकारी बाईकी गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है.

 15 साल की उम्र में बाघ के हमला करने पर उसका डटकर सामना किया और उसे मौत के घाट उतार दिया. यही नही उन्होंने अपनी बहादुरी से गाँव वालो को डाकुओ के आतंक से भी बचाया.


इसमें संदेह नहीं की वर्चस्ववादी लोगो लिखे गए इतिहास में बार-बार उनकी अपनी जाती-वर्ग के लोगो की विद्वत्ता, बहादुरी और हिम्मत भरे कारनामो का ही जबरन बखान पढ़ने को मिलता है. पर यह बात भी सत्य है किसी प्रतिभा, क्षमता को दबाया नहीं जा सकता.
जातीय पूर्वाग्रहों के चलते भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई से दोस्ती के वचन निभाने की खातिर अपने प्राण न्यौछावर करने वाली साहस वीरता स्वाभिमान और उत्साह की अनोखी मिसाल वीरांगना झलकारीबाई की किर्ती इतिहास के क्रूर पृष्ठों में अनेक वर्षो तक कैद रही. पर ऐसा कब तक संभव था???
आज तक हमे स्कुल मे यही सीखाया गया है की अंग्रेजो के सामने लडते हुए जांसी की रानी लक्ष्मीबाई शहीद हो गई पर अंग्रेज ईतिहाश कार यह लीखते ही की जांसी की रानी ने खुद को बचाने के लीये अंग्रेज सेना से लडने के लीये अपनी हमशकल विरांगना जलकारी बाई को अंग्रेज सेना के सामने लडाई के लीये भेजा था और जलकारी बाई ने अंग्रेज सेना को जोरदार टक्कर देते हुए शहीद हुई थी और अंग्रेज सेना को गुमराह कीया था पर मनुवादी प्रशासन बहुजन समाज (SC ST OBC) मे आती जातीयो का सच्चा ईतिहाश सामने नही आने नही दे रहा है इस बात का ये जीता जागता सबुत है.
झलकारी बाई की शक्ल रानी लक्ष्मीबाई से मिलती थी ही उसी सूझ बुझ और रण कौशल का परिचय देते हुए वह स्वयं रानी लक्ष्मीबाई बन गयी और असली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को सकुशल बाहर निकाल दिया और अंग्रेजी सेना से स्वयं संघर्ष करती रही और शहीद हो गई. बाद में दूल्हा जी के बताने पर पता चला कि यह रानी लक्ष्मीबाई नहीं बल्कि महिला सेना की सेनापति झलकारी बाई है जो अंग्रेजी सेना को धोखा देने के लिए रानी लक्ष्मीबाई बन कर लड़ रही है.

अंग्रेजो से लड़ते हुए 04 अप्रैल 1857 को झलकारीबाई शहीद हुयी. 

जाकर रण में ललकारी थी, वह झांशी की झलकारी थी .
गोरों को लडना सिखा गयी, रानी बन जौहर दिखा गयी ..
है इतिहास में झलक रहीं, वह भारत की सन्नारी थी .
झलकारीबाई तुम झलको, हर नारी के आभा में ..
जागरण ज्योति सी दमक उठो, भारत की इस प्रत्याभा में .
ऐसे पथ पर चलनेवाली, ललनाओं को कैसा विराम .
बलिदान और राष्ट्रभक्ति की अदभुत मिसाल वीरांगना झलकारीबाई ....
बुंन्देलो हारबोलो ने दिखलादी थी......
जुट कहानीको जलकारी रंनमे जुंजी..
पर गाया लक्ष्मीबाई राणी को....
रणचंडी बनकर जो अंग्रेजो पर किलकारी थी...
जुट बोलते है लक्ष्मी थी..

वह लक्ष्मी नही जलकारी थी...