August 30, 2017

Poem : हम आएंगे



राम ..जब भी ..
तुम होगे संकट में ..
गुजरोगे  वेदनाओं से ..
मदद को हाथ हम ही बढ़ाएंगे ..
तेरे हर कष्ट निवारण हेतु ..
पुल तो हम ही बनायेंगे .....
बन केवट कभी करा देंगे ..
तुझे कष्टों की सरिता पार ..
बन शबरी कभी करेंगे ..
तुझ पर प्यार हम निस्सार ...
क्योंकि युगों से यही तो ..
होता आया है ......
इन्ही निर्बलों शोषितों ने ..
सदा सबल का साथ निभाया है ...
पर क्या तुम दे पाए ...कभी हमारा  साथ ?
किया तुमने हर बार प्रतिघात ...
दे धर्म की दुहाई  बनाया हर युग में .....
 हमें शम्भूक .......
हमारी  हर वेदना पर तुम बने रहे मूक ..
तुम पाते रहे ख्याति ले कर हमारा सहारा ..
छीन लिया षड्यंत्रों से तुमने सारा हक़ हमारा ....
पर देख तेरी व्यवस्था को देने ललकार 
सहस्त्र बहुजन खड़े आज तैयार 
तेरे जुल्मों से न डरे बहके अब तक 
तेरी हर वेदना यंत्रणा से उबर जायेंगे 
 सम्भल जा अब न समझना 
की थमने तेरा हाथ सुन ओ 
मौकापरस्त राम ! हम आएंगे 
-PD

Poem :- मनुवादी हथकंडे



प्रचार के लिए
देखो ये मनुवादी 
क्या क्या हथकंडे 
अपनाते हैं ,,
देते हैं सजा 
शम्भुक को ..
वही राम .....
जा शबरी के 
बेर खाते  हैं ,,
चढ़ते हैं नाव 
केवट की ,,
उतरने को 
नदी पार ..
हो जाते हैं 
वहीँ देखो 
लेने को 
वानरों की 
मदद तैयार 
खेलते हैं ..
द्रोणाचार्य ,,
जाति का दांव 
ले गुरु दक्षिणा 
देते एकलव्य को घाव 
कभी वाल्मीकि से 
रामायण रचवाते 
और लोकप्रियता की 
पायदान पर तुलसी को चढ़ाते 
कर खुद ही बंटवारा 
देते एकता का नारा 
देते झूठे भुलावे 
बस वादों के बहकावे 
जन जन को लड़वाते 
भाषणों से उकसाते 
युगों से अपने कहे अनुसार 
हमको चलाते हैं 
उलझा हमको 
खुद के अतित्व में 
सीढ़ी  सफलता का 
ये चढ़ जाते हैं ...
-PD

भारत के इसाईयो को बाबासाहब की सलाह

Translated By Kundan Kumar
जनवरी 1938 में सोलापुर में, ईसाइयों से बात करते हुए डॉ बाबासाहेब अंबेडकर ने घोषणा की थी कि तुलनात्मक धर्म के अपने अध्ययन से वे यह कह सकते हैं कि केवल दो व्यक्तित्व उन्हें मुग्ध/आकर्षित/मोहित करने में सक्षम है - बुद्ध और इशु.. यहां डॉ अंबेडकर के भाषण के कुछ अंश हैं..
भारतीय इसाईओ को शोलापुर में दिए भाषण का अंश, जो 05/02/1938 को “जनता” में प्रकाशित हुआ, और “ज्ञानोदय” में दोबारा प्रकाशित हुआ -

दुनिया में उपलब्ध धर्मों और व्यक्तित्वों से, मैं केवल दो- बुद्ध और इशु को धर्मान्तरण के लिए उचित मानता हूं.. मेरे और मेरे अनुयायियों के लिए, हम एक एसा धर्म चाहते हैं, जो पुरुषों में समानता की स्वतंत्रता को सिखाये, और शिखाये की एक मनुष्य को दुसरे मनुष्यों पुरुषों और भगवान के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, कैसे एक बच्चे को पिता के साथ व्यवहार करना चाहिए, आदि..

मिशनरी लोको को लगता है की, उनका काम ख़त्म हो गया जब वो अश्पृश्य मै से इसाई में परिवर्तित हो गए.. वे अपने राजनीतिक अधिकारों की देखभाल नहीं करते हैं.. मै इसे इसाईयो में सबसे बड़ी खामी मानता हु, क्योंकि आज तक वो लोग राजनीती में शामिल नहीं हुए है.. किसी भी समुदाय के लिए, राजनितिक समर्थन के बिना टिक पाना बहोत ही मुश्किल है.. हम, अस्पृश्य, हालांकि अज्ञानी और अशिक्षित हैं, हम आंदोलन में हैं.. यही कारण है कि विधानसभा में हमारे पास 15 सीटें हैं.. विद्यार्थियो को शिष्य्वृति मिल रही है, सरकारी छात्रालय है, लेकिन इसाई विध्यार्थियो के मामलो में एसा नहीं है.. एक अश्पृश्य विद्यार्थी जिसे शिष्य्वृति मिलती है, अगर वो धर्म परिवर्तन करता है तो उसकी शिष्य्वृति बंध हो जाती है, हालाँकि उसकी आर्थिक स्थिति समान ही रहती है.. अगर आप लोग राजनीती में होते तो, इन चीजो का विरोध हो शकता..

“आपका समाज शिक्षित है.. सेंकडो लडको और लडकियों ने मेट्रिक पास किया है.. अशिक्षित अछूतों से विपरीत, वो लोग इस अन्याय के खिलाफ संगठित नहीं हो पाए है.. अगर कोई लड़की नर्ष या कोई लड़का शिक्षक बनता है, वो अपने निजी मामलो में फंश जाते है, वो सामाजिक मामलो में लिप्त नहीं होते.. यहां तक कि क्लर्क और अधिकारी भी अपने काम में व्यस्त हैं और वह सामाजिक अन्यायों की उपेक्षा करते है.. आपका समाज बहोत ही शिक्षित है, लेकिन आप में से कितने जिल्ला न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट है?? में आपको बताना चाहता हु की, ये सब आपकी राजनितिक उपेक्षा की वजह से है, क्योंकि वहा प्र आपके अधिकारों के लिए बोलने वाला कोई नहीं है..” [Ganjare vol. III. p.142]


Note: Translation of Original Article "Dr. Babasaheb Ambedkar's advice to Christians of India, which they have ignored". I have tried my best to translate this into Hindi, however, there may be some differences, so for the better understanding on this topic, original article by the author in English is final.

Poem : होगे राम तुम !



होगे राम तुम !
खाए होंगे दिखावे के लिए 
शबरी के बेर भी तुमने 
बैठे होगे ढोंग स्वांग रच 
बहुजन हिताय सुखाय का 
केवट की नाव  मे भी तुम 
झूठे आदर्शो की सरंचना लिए 
बने होगे पतितपावन भी तुम 
पर याद रख ओ ! मनुवादी राम 
अयोध्या नरेश सीताराम !
मैं ! शम्भूक नहीं हूँ  
तेरे निरर्थक तर्कों के आगे 
हार मान चढ़ा दिया जाऊं सूली 
तेरे दम्भ भरे झूठे शास्त्रों से 
मान हार मारा जाऊं अकारण 
मैं वो निरीह निर्बल अस्पृश्य 
शभूक नहीं हूँ 
तेरे धोखे छलकपट में आ 
बिखर जाऊं मैं वो दुर्बल नहीं हूँ 
मैं आज का शम्भूक हूँ 
जो ललकार रहा तुझको 
आ कर ले शास्त्रार्थ !
परख ले योग्यता को 
देख खड़ा साक्षात 
तेरे षड्यंत्रों  कुचक्रों से 
न होऊंगा देख ! आहत 
तेरी वाकपटुता से अब 
न होऊंगा तंित हताहत 
देख बांध ली मुट्ठी मैंने 
उठा लिए हथियार 
और तेरी हर प्रवंचना 
को देख रहा ललकार 
मर्द है तो अब कर के दिखा मर्दन 
मैं कर दूँगा हर चाल तेरी अवचेतन 
अब मैं लूंगा तुझसे प्रतिकार 
ये अंतिम होगा मेरा वार 
होगे हताहत सरेआम तुम 
आये गए ओ राम तुम !
-PD