होगे राम तुम !
खाए होंगे दिखावे के लिए
शबरी के बेर भी तुमने
बैठे होगे ढोंग स्वांग रच
बहुजन हिताय सुखाय का
केवट की नाव मे भी तुम
झूठे आदर्शो की सरंचना लिए
बने होगे पतितपावन भी तुम
पर याद रख ओ ! मनुवादी राम
अयोध्या नरेश सीताराम !
मैं ! शम्भूक नहीं हूँ
तेरे निरर्थक तर्कों के आगे
हार मान चढ़ा दिया जाऊं सूली
तेरे दम्भ भरे झूठे शास्त्रों से
मान हार मारा जाऊं अकारण
मैं वो निरीह निर्बल अस्पृश्य
शभूक नहीं हूँ
तेरे धोखे छलकपट में आ
बिखर जाऊं मैं वो दुर्बल नहीं हूँ
मैं आज का शम्भूक हूँ
जो ललकार रहा तुझको
आ कर ले शास्त्रार्थ !
परख ले योग्यता को
देख खड़ा साक्षात
तेरे षड्यंत्रों कुचक्रों से
न होऊंगा देख ! आहत
तेरी वाकपटुता से अब
न होऊंगा तंित हताहत
देख बांध ली मुट्ठी मैंने
उठा लिए हथियार
और तेरी हर प्रवंचना
को देख रहा ललकार
मर्द है तो अब कर के दिखा मर्दन
मैं कर दूँगा हर चाल तेरी अवचेतन
अब मैं लूंगा तुझसे प्रतिकार
ये अंतिम होगा मेरा वार
होगे हताहत सरेआम तुम
आये गए ओ राम तुम !
-PD
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