July 21, 2018

"लाल सलाम" भी अब "राम नाम की नाव" पर सवार हो चुका है

By Vishal Sonara 

हाल हि मे खबरें आई थीं की केरल की कम्युनिस्ट सरकार अपने राज्य मे रामायण महीना मनाने जा रही है और बहोत जोरो से उसकी तैयारियां चालु है. अब छवि बदलने की कोशिश में है ये लोग, वो अब बोलने वाले है की कार्ल मार्क्स जो भी कह कर गए पर अब तो हमें भी भगवान पर विश्वास है...!!!
बहोत से लोग ये खबर सुनकर आचंबीत हो गए और अपनी प्रतिक्रिया देने लगे. 
इसी कम्युनीस्टो ने पीछले दिनो अछुतो को मंदिर मे पुजारी बनाकर पेश किया था. बाद मे उन्ही अछुत पुजारीयों पर हमले भी हुए थे वो बात लोग भुल जाते है. अगर धर्म अफिम है तो फिर क्यो अफिम पीलाई जा रही है ये बात लोग पुछते तक नही है इनलोगो को...

कुछ जागरुक लोगो का कहना था की कम्युनिस्ट लोग तो धर्म मे मानते नही है फिर ये सब क्या है. पर उन्हे असली बात पता ही नही है. कम्युनिस्ट लोग अपने धर्म को कभी भी नफरत नही करते. सब दिखावे की बाते है. कम्युनिस्ट लीडर्स के लाल कपडो के नीचे की जनेउ अकसर दीख ही जाती है. वामपंथियों का कहना है की अब लोगों के बीच 'असली राम' और 'असली रामायण' को लाया जाएगा. संध ने गलत व्यख्या कि है. आज तक संघ बता रहा था अंग्रेजो और मुगलो ने गलत व्यख्या कि है अब ये लाल सलाम वाले लोग भी "राम नाम की नाव" पर सवार हो चुके है और बताएगे की पिछला वाला सब गलत था अब हम सुनाते है सही क्या है...!!!! बस लोगो को सब अपने हिसाब से कथा कहानीयां सुनाई जाएगी और देश मे बढ रही गरीबी बेरोज़गारी की बात कोई नही करेगा.

और भारत की जनता भावनाओं मे बहकर ईन सब बदमाशीयों को चुपचाप सहन करती रहेगी. क्यों की 85% भारतीय जनता का कोई प्रतिनिधित्व नही है, और जो है उस प्रतिनिधित्व को खुद उन्होने ही खत्म सा कर दिया है. लोगो को अपने अदली मुद्दो पर जागृत होना पडेगा तभी कुछ परिवर्तन आएगा.

कुछ लोगो को ये सब नया लग रहा है पर बाबा साहब और रामासामी पेरीयार ने तो बहोत पहले हि ये सब कह दिया था. आंबेडकर और पेरीयार की विचारधारा को ठीक से जानने वाले ये पूरी बदमाशी पहले से ही पहचानते है. जब तक लोग असली बहुजन नायको को पढना नही शुरु करेगे तब तक ये सब ऐसे ही भारत कि जनता को उल्लु बनाते रहेगे. एक जाएगा दुसरा उसी विचारो को लेकर नई पटकी पढाने आ जाएगा, जनता वहीं की वहीं रहेगी...

- विशाल सोनारा


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Sacred Games (Netflix) : अतापी-वतापी का दृष्टांत

By Vishal Sonara 



धर्मो का खेल समजाने के लिए Netflix की वेब सीरीज Sacred Games में हिन्दू मीथोलोजी में से एक बहोत बढीया दृष्टांत दिया गया है. 

फिल्म मे एक पात्र है "गुरुजी" नाम का एक पात्र अपने शीष्यो को प्रवचन दे रहा होता है. जो इस प्रकार है...
अतापी और वतापी दो दैत्य थे. अतापी किसी भी भटके हुए राहगीर को, बड़े प्रेम से अपने घर बुलाता. "आप आइये मेरे घर, शायद आपको भूख लगी है. मैं स्वादिष्ट भोजन ग्रहण कराऊंगा." राहगीर खुशी-खुशी आ जाते और इतने में इधर वतापी अपनी मायावी शक्तियों, राक्षशी शक्तियों का प्रयोग कर बकरे का रूप धारण कर लेता. अतिथि उस स्वादिष्ट बकरे का भोजन करके प्रसन्नचित हो जाता. और इतने में अतापी आवाज लगाता, " वतापी... वतापी!!!! बाहर आओ." और अचानक अतिथि का पेट फटता और एक मांस का लोथड़ा बाहर आ जाता. और राहगीर परलोक... और फिर दोनों भाई अतापी और वतापी खुशी के मारे झूम उठते, नाच उठते.
धर्मों का रूप यही है. राहगीर को प्रेम से घर बुलाओ, आदर समीत भोजन ग्रहण कराओ, फिर उसकी आत्मा पे कब्जा कर लो. यहूदी-मुसलमान, मुसलमान- ईसाई, हिन्दू-मुसलमान... सब... अतापी-वतापी है.


इस दृष्टांत से समजाने का प्रयास किया गया है की किस प्रकार धर्मो का उपयोग करके आम इंसान को अपने वश मे किया जाता है. जैसे " यहूदी-मुसलमान, मुसलमान- ईसाई, हिन्दू-मुसलमान". एक अतापी बन जाता है और दुसरा वतापी, फिर अतापी आम इंसान को बडे प्रेम से बुलाता है और वतापी नाम का खाना परोस देता है. बाद मे वतापी उस के पेट मे पहुंच जाने के बाद अतापी और वतापी मीलकर उस आम इंसान के आत्मा पर कब्जा कर लेते है. ये सब बाते चाहे कितनी भी पुरानी हो जाए पर राजनिती के लिए हंमेशा ही प्रासंगिक रहेगी.

- विशाल सोनारा
(Note : इस सीरीज मे बहोत ज्यादा न्युडीटी, गालियां और हिंसाचार है. देखना चाहते हो वह अपनी सुजबुझ से ही देखे.)


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