June 26, 2017

धर्म का भय क्यों?

By Sanjay Patel Bauddha

डॉक्टर बी आर अंबेडकर ने अपनी पुस्तक "जाति-प्रथा का विध्वंस" में लिखा है कि धर्म और कानून दो अलग-अलग चीज होते हैं।
प्रत्येक धर्म के कुछ सिद्धांत होते हैं। ये सभी मनुष्यों पर समान रूप से लागू होते हैं। धर्म में किसी खास व्यक्ति या समूह के लिए कुछ पाबंदी हो या दूसरे समूह के लिए कुछ छूट हो ऐसा नहीं होता।
कानून या नियम मनुष्य के जीवन को नियंत्रित करने के लिए बनाए जाते हैं। जैसे किसी देश का संविधान या स्कूलों के नियम। स्कूलों में कुछ खास नियम होते हैं- समय पर आने का, पढ़ने का, छुट्टी का, अध्यापकों के साथ व्यवहार करने का आदि।
कानून या नियमों को बदला जा सकता है। जैसे जनहित में संविधान में संशोधन किया जा सकता है। जिसका कोई बुरा नहीं मानता।
लेकिन धर्मों के सिद्धांतों में कोई परिवर्तन नहीं करता है और ना ही करना चाहता है क्योंकि वह सोचता है कि धर्म के सिद्धांत ईश्वर के बनाए हुए हैं, या ईश्वर के दूत के बनाए हुए हैं।
हिंदू धर्म में वास्तव में सिद्धांत नहीं है, वे कानून ही है जैसे कि ब्राम्हण को किस तरह व्यवहार करना चाहिए, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्रों को किस तरह से व्यवहार करना चाहिए। उनके अलग-अलग अधिकार बताये गए हैं। लेकिन इन कानूनों को धर्म का रूप दिया हुआ है जिससे लोग उसको सुधारने की हिम्मत ना करें।
दूसरी बात है कि हिंदू धर्म में ब्राम्हण को सम्मानित माना जाता है और भू-देवता माना जाता है। जैसा वह चाहता है वैसा ही किया जाता है। वह कभी नहीं चाहेगा कि हिंदू धर्म में सुधार हो क्योंकि उसमें उसका बहुत फायदा है। मंदिरों में बिना मेहनत के गाढ़ी कमाई होती है। लोगों की जन्म, मृत्यु, शादी में मुफ्त में खाने को मिलता है। ब्राह्मण ऐसा अधिकार क्यों छोड़ना चाहेगा?
इन कारणों के होते हुए हिंदू धर्म में सुधार संभव नहीं है। यदि जनता को समझ में आ जाए कि हिंदू धर्म की असमानतावादी व्यवस्था धर्म का सिद्धांत नहीं बल्कि शोषण का कानून है तो वे उस को बदलने में कोई संकोच नहीं करेंगे।
वह केवल श्रद्धा के नाम पर रुका हुआ है और अपना शोषण करवाता रहता है। ज्ञान प्राप्त होते ही वह बिना किसी की डरे इस सड़े-गले कानून को मानने से मना कर देगा और वर्ण व्यवस्था से मुक्त हो जाएगा।
इस प्रकार से मनुष्य का डर केवल अज्ञान के कारण है।

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ડો. આંબેડકર મહા મહેનતે ઉચ્ચ અભ્યાસ પામી શક્યા તેની પાછળ તેમનું દ્રઢ મનોબળ અને સંધર્ષ કરવાની વૃત્તિએ મુખ્ય ભાગ ભજવ્યો હતો.

By Jigar Shyamlan

મનોવિજ્ઞાન એવું સ્વિકારે છે કે બાળપણના આઘાતજનક અને હતાશાપ્રેરક બનાવ વ્યક્તિના માનસપટ પર કાયમી છાપ છોડી જાય છે. ભારત અને અમેરિકામાં આ બાબતે કરવામાં આવેલ કેટલાક સંશોધનોમાં એ વાત સાબિત થઇ છે કે પદદ્લિત સમુદાયના સભ્યોનો પોતાની જાત વિશેનો નીચો ખ્યાલ માનસ પર ઉંડી અસર કરે છે. આ અસર વ્યક્તિમાં નામ, ચહેરા કે અસ્તિત્વવિહીનતાની માનસિક લાગણી પેદા કરે છે.
ડો. આંબેડકર પણ આવી જ અશ્પૃશ્ય પૈકીની એક ગણાતી મહાર જાતિમાં જન્મ્યા હતા. ડો. આંબેડકરનું સમગ્ર જીવન અન્યાય, હતાશા, અપમાન અને અવમાનનાથી ભરેલુ રહ્યું હતુ.
ડો. આંબેડકર બાળપણમાં જ્યારે શાળામાં દાખલ થયા ત્યારથી જ પોતે અષ્પૃશ્ય છે એ વાતના કડવા અનુભવો થવા લાગ્યા હતા. શાળામાં તેમને અન્ય હિન્દુ વિધાર્થીઓથી સાવ અલગ બેસવાની ફરજ પાડવામાં આવતી હતી. પોતે વર્ગમાં અન્ય વિધાર્થીઓની સરખામણીમાં હોંશિયાર હોવા છતાં શિક્ષકો તરફથી સદા અપમાનિત થયા હતા. શાળામાં મૂકેલ પાણીના સાર્વજનિક માટલાને અડકી શકાતુ ન હતુ. જ્યાં સુધી પટાવાળો આવીને પોતાના હાથે નળ ખુલ્લો ન કરે ત્યાં સુધી તરસ્યા બેસી રહેવું પડતું હતું. પટાવાળાના હાથે નળ ખુલ્લો કરાયા બાદ નળને સ્પર્શ ન થાય તે વાતનું ધ્યાન રાખતા ખોબો ધરીને પાણી પીવું પડતુ હતુ. જ્યારે પટાવાળો રજા પર હોય કે બહાર ગયો હોય ત્યારે આખો દિવસ પાણી પીધા વગર તરસ્યા જ રહેવું પડતુ અને શાળા છૂટે કે પોતાના ઘેર જઇને તરસ છિપાવવી પડતી.
આટલા કડવા અપમાન છતા ડો. આંબેડકર મહા મહેનતે ઉચ્ચ અભ્યાસ પામી શક્યા તેની પાછળ દ્રઢ મનોબળ અને સંધર્ષ કરવાની વૃત્તિએ મુખ્ય ભાગ ભજવ્યો હતો.
- જિગર શ્યામલન


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शाहू महाराज जयंती अवसर पर उन्हें विनम्र अभिवादन।

राजर्षि छत्रपती शाहूजी महाराज के कोल्हापुर संस्थान में ब्राम्हणवाद को नियंत्रण करनेवाले निर्णय
१) १९०१ में कोल्हापुर संस्थान में अछूतों कि जनगणना और १९०२ में मराठा,ओबीसी, अस्पृश्य इन सभी लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था
२) १९०१ शुद्र-अतिशुद्रो के लिए छात्रावास का प्रावधान
३) कोल्हापुर संस्थान के सभी गाँव में स्कूल खोलने के लिए १ लाख रूपये का प्रावधान और स्कूलें खोलने का आदेश
४) ८ सितम्बर १९१३ कोल्हापुर संस्थान में सखती से अनिवार्य शिक्षा का आदेश
५) १९१७ को विधवा कानून बनाने का आदेश
६) ३ अगस्त १९१८ NT/DNT/VJNT को पुलिस स्टेशन में हाजीर रहने की प्रथा को खत्म कर दिया।
७) ६ सितम्बर १९१९ सार्वजनिक जगह पर जैसे कुँवे,अस्पताल, धर्मशाला,सरकारी आवास पर अस्पृश्यता को नकार कर सबके लिए खुली छूट दिया।
८)१९१९ आतंरजाती विवाह को मान्यता दी
९)३ मई १९२० बंधुवा मजदूरी की प्रथा बंद करवायी। और ज्यो लोग यैसा करते है,उनपर कानूनी कारवाई की जायेगी यह निर्णय हुवा
१०) २ अगस्त १९१९ महिलाओं को तलाख लेने का स्वेच्छा से अधिकार दिया।
११) १७ जनवरी १९२० को देवदासी प्रथा को खत्म कर दिया।
१२) १९२० ब्राम्हणो का जन्म दो बार होता है,एक जन्म से और जनऊ संस्कार से होता है । इस प्रथा को पाबंदी लगायी! और सभी ब्राह्मण हो या शुद्र-अतिशुद्रो का जन्म एकबार ही होता है। यह आदेश दिया गया था।
१३) राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले के समाज संघटना के लिए जगह-जगह मकान उपलब्ध करवाया।
शाहू महाराज जयंती अवसर पर उन्हें विनम्र अभिवादन।