September 20, 2017

गांधी और उनका आमरण अनशन

By Vishal Sonara || 20 Sep 2017 

#TodayInHistory
#GandhiAndHisFast
20/09/1932
अंग्रेज़ों ने सन 1930 से 1932 में लंडन में तीन गोलमेज़ कान्फ्रेंसें की थी, जीसमें अन्य अल्प संख्यकों के साथ साथ दलितों को भी भारत के भावी संविधान के निर्माण में अपना मत  अलग से रखने के अधिकार को मान्यता मिली.
इन गोलमेज़ परीषदोंमें डॉ. भीमराव आंबेडकर तथा राव बहादुर आर. श्रीनिवासन द्वारा अछूतों के प्रभावकारी प्रतिनिधित्व एवं हो रहे भेदभाव पर असरकारक प्रस्तुति के कारण 17 अगस्त, 1932 को ब्रिटिश सरकार द्वारा घोषित ‘कमिनुअल अवार्ड’ में अछूतों को पृथक निर्वाचन का स्वतन्त्र राजनीतिक अधिकार मिला. इस अवार्ड से दलितों को आरक्षित सीटों पर पृथक निर्वाचन द्वारा अपने प्रतिनिधि स्वयं चुनने का अधिकार मिला. ये अधिकार मिलने से अछूतों के ही वोट से अछूतों के प्रतिनिधि चुनकर संसदों मे जाये इस तरह का अधीकार दिया गया. इसके कारन आज जो समाज के दलाल समाज को अपने हिसाब से बेच दिया करते हैं ऐसा नहीं हो रहा होता. भारत के इतिहास में अछूतों को पहली वार राजनैतिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हुआ जो उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकता था. इतिहासमें तब तक ये अधिकार किसी महात्मा या भगवान ने देने की बात भी नहीं की है. जो अंग्रेजो ने दिया उसका भी विरोध करने तथाकथीत महात्मा जी उठ खडे हुए.
उक्त अवार्ड द्वारा दलितों को गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट,1919 में अल्प संख्यकों के रूप में मिली मान्यता के आधार पर अन्य अल्प संख्यकों – मुसलमानों, सिक्खों, ऐंग्लो इंडियन्झ तथा कुछ अन्य के साथ साथ पृथक निर्वाचन के रूप में प्रांतीय विधायकाओं एवं केन्द्रीय एसेम्बली हेतु अपने प्रतिनिधि स्वयं चुनने का अधिकार अछूतों को भी मिला तथा उन सभी के लिए सीटों की संख्या निश्चित की गयी. 
गाँधी जी ने उक्त अवार्ड की घोषणा होने पर यरवदा (पूना) जेल में 18 अगस्त, 1932 को दलितों को मिले पृथक निर्वाचन के अधिकार के विरोध में 20 सितम्बर, 1932 से आमरण अनशन करने की घोषणा कर दी. गाँधी जी का मत था कि इससे अछूत हिन्दू समाज से अलग हो जायेंगे जिससे हिन्दू समाज व हिन्दू धर्म विघटित हो जायेगा.
गांधी जी की ये बात अगर पोजिटिव भी ले तो आज भी कहा हिन्दू समाज विघटित नहीं है?? आज जो अछूतों के साथ सौहार्द से रहने का नाटक कर रहे हैं वह गैरमौजूदगी में नफरत की बात ही करता है. मैं ये नहीं कहता सब ऐसे हैं पर ज्यादातर लोगों की मानसिकता आज भी वैसी ही है. जो वोट लेने के लिए आज आप के सामने नतमस्तक है वह कल आपके ही खिलाफ षडयंत्र कर रहे होते हैं. खुद आरक्षित प्रतिनिधि बोल देते हैं कि मै कहा आपके वोट से चुनकर आया हूँ. ये सब परिस्थितियों से हमारा नुकसान ना हो इसलिए ही बाबा साहबने अंग्रेजो से ये अधीकार दिलवाया था.
पर महात्मा जी को ये मंजूर न था. उन्होंने ये अधिकार छीनने के लिए अपना हिंसक हथियार "आमरण अनशन" इसके विरोध में उपयोग किया. 
यह याद रहे कि उन्होंने मुसलमानों, सिक्खों व ऐंग्लो- इंडियनज को मिले उसी अधिकार का कोई विरोध नहीं किया था, सिर्फ अनुसूचित जाति के अधिकार का ही विरोध किया. 
- विशाल सोनारा


(SS : "Gandhi and His fast" , Dr. Babasaheb Ambedkar Writings & Speeches Vol. 5, Page No 329)
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