By Sanjay Patel Bauddha || 11 August 2017 at 23:19
कई लोगों का प्रश्न है कि सभी बौद्ध लोग भगवान या ईश्वर को नहीं मानते तो फिर बुद्ध को भगवान क्यों कहते है ?
सबसे पहले भगवान शब्द का प्रयोग ही बुद्ध के लिए हुआ था, बुद्ध की फिलोसोफी को काउंटर करने के लिए बुद्धिज़्म के कई सारे शब्द हिन्दू शास्त्रों में प्रयोग किये गए और आज लोग यह समझ रहे है कि यह शब्द तो हिन्दू का है लेकिन वास्तव में बुद्धिज़्म में उसका अर्थ अलग है ।
आइए भगवान का बुद्ध के लिए क्या अर्थ है वह समझते है ...
पालि का भगवान अथवा भगवतं दो शब्दों से बना है – भग + वान,
पालि में भग मायने होता है – भंग करना , तोडना , भाग करना उपलब्धि को बांटना आदि और वान् का अर्थ है धारण्कर्ता , तृष्णा आदि । यानि जिसने तृष्णाओं को भंग कर दिया हो वह भगवान्।
पालि ग्रंथों मे बुद्ध के लिये प्रयुक्त भगवान् अथवा भगवा शब्द को परिभाषित करने के बहुत से उदाहरण है :
‘भग्गरागोति भगवा ’ : जिसने राग भग्न किया कर लिया वह भगवान
‘भग्ग्दोसोति भगवा ’ : जिसने द्धेष भग्न किया हो वह भगवान
‘भग्गमोहोति भगवा , भग्गमानोति भगवा , भग्ग किलेसोति भगवा , भवानं अंतकरोति भगवा म भग्गकण्ड्कोति भगवा ’..: जिसने मोह भंग कर लिया , अभिमान नष्ट कर लिया , क्लेष भग्न कर लिया , भव संस्कारों का अंत कर लिया , कंटक भग्न कर लिये वह भगवान्।
‘भग्गमोहोति भगवा’: मोह भग्न कर लिया , इस अर्थ में भगवान।
‘भग्गमानोति भगवा’ : अभिमान नष्ट कर लिया , इस अर्थ में भगवान ।
‘भग्गदिट्ठीति भगवा’ : दार्शिनिक मान्याताओं को भग्न कर लिया , इस अर्थ में भगवान् ।
‘भग्गकण्डकोति भगवा’: कंटक भग्न किया , इस अर्थ में भगवान ।
‘भग्गकिलेसोति भगवा’: क्लेश , काषाय भग्न कर लिये , इस अर्थ में भगवान ।
‘भजि विभजि पविभजि धम्म्रतन्तिभगवा’ : भजि यानी जिसने धर्म रत्न का भजन किया , यानी सेवन , इस माने भगवान ।
ऐसे न जाने कितने उदाहरण हैं जिसमॆ भगवान शब्द का अर्थ संस्कृत के शाब्दिक अर्थ से बिल्कुल अलग दिखता है ।
पालि में एक सुत्त है :
इतिपि सो भगवा , अरहं , सम्मासम्बुद्धो,
विज्जाचरणसम्पन्नो सुगुतो लोकविदू ,
अनुत्तरो पुरिस सम्म सारथी सत्था देवमनुस्सानं , बुद्धो भगवति ॥
ऐसे जो अहर्त है , सम्यक् सम्बुद्ध हैं , संपूर्ण जागृत हैं , लोभ , द्धेष और मोह से मुक्त ऐसे भगवन् हैं , सर्वज्ञ हैं , ज्ञान और आचरण में परिपूर्ण हैं , सुगति प्राप्त हैं , वर्तमान और भूत भविष्य को जानने वाले हैं , यथावादी तथाकारी , जैसा कहते हैं वैसा करते हैं , ऐसे आचरण वाले हैं , आदमी को लोभ , द्धेष और मोह से छुडाने वाले अप्रतिम सारथी हैं , देवता और मनुष्यों के सास्ता हैं , गुरु हैं , उपदेशक हैं , ऐसे मनुष्यों मे अनुपम श्रेष्ठतम भगवान् बुद्ध हैं ।