सिर्फ सूचनार्थ।
विक्रम संवत का सबसे प्राचीन प्रमाण हमें धिनिकी गुजरात अभिलेख में विक्रम संवत 794 का मिलता है। इसके पहले भारत के किसी भी राजा ने किसी भी अभिलेख में विक्रम संवत का प्रयोग नहीं किया है।
सूचना समाप्त।
(29 April,2017)
विक्रम संवत एक जादुई तिलिस्म है ।
विक्रम संवत की स्थापना 57 ई . पू . में हुई थी । ऐसा कहा जाता है ।
भारत के ज्ञात इतिहास में पूर्व मध्यकाल से पहले किसी भी राजा ने किसी भी अभिलेख में विक्रम संवत का प्रयोग नहीं किया है ।
राजा की बात छोड़िए , भारत का कोई ज्योतिषी भी किसी किताब में विक्रम संवत का प्रयोग नहीं किया है ।
पूर्व मध्यकाल से पहले कोई 600 साल तक न जाने कहाँ था विक्रम संवत ?(8 May ,2016)
इसलिए 57 ई पू के विक्रमादित्य इसके संस्थापक नहीं थे । बाद में चलकर चंद्रगुप्त द्वितीय ने इसे अपने नाम कर लिए ।इतिहासकार इसीलिए भ्रम में हैं कि आखिर कौन विक्रमादित्य विक्रम संवत के संस्थापक हैं ।
आप चंद्रगुप्त द्वितीय के नौ - रत्नों की लाख दुहाई दें , मगर उन पर एक लोकतांत्रिक विक्रम संवत को राजतंत्र के खूँखार औजारों से चोरी करने का गंभीर मामला तो बनता ही है ।
(8 May ,2016)
ये कौन - सी काल की गणना - प्रणाली है, जबकि आप से पहले के कई राजाओं ने शक संवत , विक्रम संवत में काल की गणना की है ।
आपकी वैज्ञानिकता पर यह प्रश्न चिन्ह है ।
(14 March ,2016)
वह इसलिए कि गुप्त राजाओं को मालवों से रंजिश थी ।
( संदर्भ : भारतीय पुरालिपि , डाॅ राजबली पांडेय , पृष्ठ 190 - 91 )
(30 December ,2015)
विक्रम संवत का सबसे प्राचीन प्रमाण हमें धिनिकी गुजरात अभिलेख में विक्रम संवत 794 का मिलता है। इसके पहले भारत के किसी भी राजा ने किसी भी अभिलेख में विक्रम संवत का प्रयोग नहीं किया है।
सूचना समाप्त।
(29 April,2017)
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विक्रम संवत एक जादुई तिलिस्म है ।
विक्रम संवत की स्थापना 57 ई . पू . में हुई थी । ऐसा कहा जाता है ।
भारत के ज्ञात इतिहास में पूर्व मध्यकाल से पहले किसी भी राजा ने किसी भी अभिलेख में विक्रम संवत का प्रयोग नहीं किया है ।
राजा की बात छोड़िए , भारत का कोई ज्योतिषी भी किसी किताब में विक्रम संवत का प्रयोग नहीं किया है ।
पूर्व मध्यकाल से पहले कोई 600 साल तक न जाने कहाँ था विक्रम संवत ?(8 May ,2016)
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भारत में 14 विक्रमादित्य हुए । मालव संवत को हड़पकर चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने विक्रम संवत को अपने नाम किए ।
जिस विक्रमादित्य के समय में यह संवत स्थापित हुआ , उस समय में इसका नाम मालव संवत रखा गया था ।कारण कि मालव गणराज्य ने शकों को पराजित किया था । विक्रमादित्य सहायक थे ।इसलिए 57 ई पू के विक्रमादित्य इसके संस्थापक नहीं थे । बाद में चलकर चंद्रगुप्त द्वितीय ने इसे अपने नाम कर लिए ।इतिहासकार इसीलिए भ्रम में हैं कि आखिर कौन विक्रमादित्य विक्रम संवत के संस्थापक हैं ।
आप चंद्रगुप्त द्वितीय के नौ - रत्नों की लाख दुहाई दें , मगर उन पर एक लोकतांत्रिक विक्रम संवत को राजतंत्र के खूँखार औजारों से चोरी करने का गंभीर मामला तो बनता ही है ।
(8 May ,2016)
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आर्य तो प्रजाति है और भट्ट तो जाति है , आपका नाम क्या था आर्य भट्ट ?
आप कैसे गणितज्ञ थे कि आपको वैज्ञानिक तरीके से अपनी जन्म - तिथि भी जोड़ने नहीं आ रहा है ? आप कैसे जान गए कि जब मैं 23 साल का था , तब कलियुग के 3600 साल बीत गए थे ? कलियुग भी कभी था क्या ?ये कौन - सी काल की गणना - प्रणाली है, जबकि आप से पहले के कई राजाओं ने शक संवत , विक्रम संवत में काल की गणना की है ।
आपकी वैज्ञानिकता पर यह प्रश्न चिन्ह है ।
(14 March ,2016)
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विक्रम संवत तो लूट का माल है । गुप्तकाल से पहले विक्रम संवत जैसा नाम का कोई संवत भारत में नहीं था ।
गुप्तकाल से पहले विक्रम संवत को मालव संवत ( 57 ई पू ) कहा जाता था। मालव संवत का नाम बदलकर विक्रम संवत किया जाना गुप्त राजाओं की देन है ।वह इसलिए कि गुप्त राजाओं को मालवों से रंजिश थी ।
( संदर्भ : भारतीय पुरालिपि , डाॅ राजबली पांडेय , पृष्ठ 190 - 91 )
(30 December ,2015)
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( लेखक भाषा वैज्ञानिक और इतीहास विद है.)
(संपादन : विशाल सोनारा)
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