August 26, 2017

बाबासाहब और बौद्ध धम्म..

By Kundan Kumar


बाबासाहब आम्बेडकर सिर्फ एक महान विचारक ही नही, बल्कि कार्य करने वाले भी थे। उन्होंने सोचा कि उनके चारो और क्या हो रहा है और उनके पास थे उन सभी संसाधनों और ऊर्जा से हस्तक्षेप भी किया। उनका दिमाग ना तो इतिहास में फंसा था या फिर ना तो भविष्य में आने वाले परिणामो के बारे में चिंतित था, क्योंकि उनकी खोज थी मुक्ति के लिए, स्वतंत्रता के लिए, प्रत्येक व्यक्ति के उच्च संभावना की प्राप्ति के लिए और प्रत्येक समाज के लिए जो अमानवीय संस्थानों में दबा हुआ है।

इसलिए, निर्वाण के लिए उनका मार्ग एक दर्शनशास्त्र से निर्देशित किया गया, जिसमे मुक्त प्रकृति है। एक विचारधारा जिसने बाबासाहब को निर्देशित किया, वो बुद्धिस्ट विचारधारा थी। वह बहुत पढ़े लिखे व्यक्ति थे और गहरी सच्चाई को समझने और उसे पचाने वाला दिमाग था उनके पास।

उन्होंने बुद्धिसम का मार्ग क्यो चुना, यह सिर्फ एक व्यक्तिगत ही नही बल्कि सामाजिक दर्शनशास्त्र है?? यह एक बहोत ही गहरा सवाल है लेकिन उसे समझने के लिए कुछ पृष्ठभूमि की जरूरत है।

1) भारत का इतिहास और कुछ नही, बौद्ध धम्म और ब्राह्मणवाद के बीच संघर्ष का इतिहास है।
भारतीय इतिहास का गहन अभ्यास इस तथ्य को सामने लाएगा की, दो विश्वदृष्टि भारत मे आपस मे टकराई : एक बौद्धिस्ट का मानवीय और मुक्तिपूर्ण वैश्विक नजरिया और दूसरा ब्राह्मणों का अमानवीय और सीमित वैश्विक नजरिया। भारतीय इतिहास के दर्शनशास्त्र में, इन दो विश्वदृष्टि में निरंतर वार्ता है। बाबासाहब आम्बेडकर भारतीय इतिहास के विद्यार्थी थे और उन्होंने क्रांति और प्रतिक्रांति की प्रक्रिया को देखा। इसलिए, बौद्ध धम्म में , वो ब्राह्मणवाद के आलोचक थे।

2) पूर्ण क्रांति के रूप में बौद्ध धम्म
बुद्धिसम में, बाबासाहब ने सम्पूर्ण परिवर्तन के तरीकों को देखा : स्व और समाज के लिए। बौद्ध धम्म समाज और व्यक्तिओ के नवनिर्माण के लिए एक पूर्ण रास्ता प्रदान करता है।

3) बौद्ध धम्म, भारत के अछुतो और पिछड़ों का विश्वास था।
बहोत सारे अभ्यासों से, यह बात और ज्यादा साफ हो रही है, लेकिन बाबासाहब द्वारा लिखी गई एक उल्लेखनीय पुस्तक "अछूत को थे?", अपने आप मे एक ऐतिहासिक कार्य है।

4) बौद्ध धम्म वैश्विक है।
बौद्ध धम्म पवित्र पुस्तके या पवित्र भूगोल पे आधारित नही है। वह तो बुद्ध के द्वारा खोजे गए तरीके और नियम है।

5) बौद्ध धम्म पहला जन आंदोलन था, जो महिलाओं की मुक्ति की मांग करता था।
बुद्ध ने अपने संगठित संघ में महिलाओं को शामिल किया और सभी के लिए निर्वाण के मार्ग खोले थे। इस क्षेत्र में बुद्धिसम की भूमिका स्पष्ट करने के लिए, बाबासाहब द्वारा लिखी गई एक कृति "हिन्दू महिलाओ का उत्थान और पतन", उत्कृष्ट है।

6) बौद्ध धम्म जाती और जातिवाद के खिलाफ था।
संघ ने सभी को उनकी सामाजिक और जातीय पृष्ठभूमि के ऊपर उठकर स्वीकार किया।

7) बौद्ध धम्म स्वाभाविक रूप से लचीला है।
अस्थिरता बुद्धिस्ट का हृदय है, जिसका अर्थ है कि कुछ भी स्वाभाविक ठोश नही है। सब कुछ अपनी शर्तों और कारणों के आधार पे उभर के आता है।

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