June 02, 2017

सिर्फ बुद्ध के ही अवशेष पूरे भारत में ...

खुदाई में बुद्ध के ही अवशेष क्यू मिलते हैं ?
सिर्फ बुद्ध के ही अबशेष क्यों???
पूरे भारत में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई के दौरान यदि कुछ प्राचीन मिलता है तो वो बुद्ध से या सम्राट अशोक के काल से सम्बंधित होता है ! कभी आपने सोचा ऐसा क्यूँ ?
तमिलनाडु में खुदाई में मिला प्राचीन बौद्ध स्मारक । -दैनिक भास्कर बिहार के केसरिया में खुदाई में मिला दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप । मध्यप्रदेश में खुदाई में मिली बुद्ध की विशाल मूर्ती केरल में खुदाई से प्राप्त हुआ विशाल बुद्ध विहार के अवशेष ।
पूरे भारत में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई के दौरान यदि कुछ प्राचीन मिलता है तो वो बुद्ध से या सम्राट अशोक के काल से सम्बंधित होता है ! कभी आपने सोचा ऐसा क्यूँ ?
खुदाई में अति प्राचीन कोई ब्राह्मण मंदिर अथवा 33 करोड़ देवताओं में से किसी एक की भी कोई विशाल प्रतिमा क्यूँ नहीं प्राप्त होती ? क्या बड़े बड़े बौद्ध मंदिर, बौद्ध स्तूप, बौद्ध विहार ,विशाल बौद्ध शिलालेख एवं विशाल बुद्ध प्रतिमाएं समय के अंतराल में स्वतः ही भूमिगत हो गईं ? यदि ऐसा होता तो प्राचीन हिन्दू मंदिरों के अवशेष भी अवश्य मिलने चाहिए थे !
वैदिक संस्कृति को दुनिया की सबसे प्राचीन और परिष्कृत सभ्यता होने का ढिंढोरा पीटने वाले बताये की आपके 11 लाख वर्ष पहले पैदा होने वाले राम की कोई प्राचीन प्रतिमा अथवा मंदिर समय के अंतराल में दफ़न क्यूँ नहीं हुआ ?
आपके अनुसार सात हजार साल पहले पैदा हुए कृष्ण का कोई मंदिर खुदाई में क्यों नहीं निकला ?
खुदाई में आपके किसी भी देवी देवता अवतार या भगवन से सम्बंधित कोई भी वास्तु क्यों नहीं प्राप्त हुई ?
या तो आपकी संस्कृति इतनी नहीं थी या फिर बुद्ध से सम्बंधित संस्कृति आपकी संस्कृति से हजारों गुणा श्रेष्ठ,उन्नत, एवं विशाल थी !
यदि ऐसा था तो फिर इतनी विशाल सभ्यता जमीन के निचे कैसे चली गई?
मिस्र के पिरामिड जो की रेगिस्तान के भयंकर तूफानों को झेलकर भी भूमिगत नहीं हुए , उन्हें खोद कर नहीं निकाला गया ,जो बुद्ध से भी दो ढाई हजार साल पुराने है और भारत में बुद्ध से सम्बंधित अधिकांश स्थानों को खुदाई द्वारा ही ढूंडा गया है ।
भारत की मूल प्राचीन सिन्धु संस्कृति के पूरे के पूरे शहर को ही 1922 में संयोग वश की गई खुदाई में ही ढूंडा गया !
इसका कारण हम आपको बताते है ! 
असल में 189 ई.पू. में जब सम्राट अशोक के वंसज वृह्द्रत्त की हत्या ब्राह्मणों ने पूरे योजनाबद्ध तरीके से उसी के सेनापति पुष्यमित्र शुङ्ग द्वारा करवाई । उससे पहले पूरे भारत में भारत के कोने कोने में सम्राट अशोक द्वारा स्थापित बुद्ध धम्म का ही परचम लहराता था , उस समय भारत के कोने कोने मे बुद्ध स्मारक , बौद्ध स्तूप ,बौद्ध मठ , बौद्ध विहार , और बुद्ध से सम्बंधित अन्य विशाल स्मारक ही थे ,कोई भी ब्राह्मण मठ अथवा मंदिर नहीं था , वृह्दत्त की हत्या के बाद चले ब्राह्मण और श्रमणों(बौद्धों) के लम्बे एक तरफ़ा संघर्ष में ब्राह्मण अपनी कुटिल और धुर्त नीतिओ के कारन जीत गए , व्यापक पैमाने पर बौद्ध भिक्षुओ और बौद्धों का नरसंहार किया गया , और उनके इतिहास को सदा के लिए जानबूझकर जमीं के नीचे दफ़न कर दिया गया ! और अपने षड्यंत्रो के सबूतों को भी साथ में दफना दिया , उन्हीं सबूतों को हमारे लोग खोद कर निकालने का प्रयास कर रहे हैं आइये खोद कर निकाले गए कुछ सद्यंत्रों के अवशेषों को देखते है
“अशूकावदान” नमक पुस्तक से पता चलता है की पुष्य मित्र ने पाटलिपुत्र से लेकर जालंधर तक सभी बौद्ध विहारों को जलवा दिए गए और यह घोषणा की की जो मुझे एक बौद्ध का सर लाकर देगा मैं उसे सोने की सौ मुद्राये प्रदान करूँगा । सातवी सदी में बंगाल के राजा शशांक ने बौद्धों के विरुद्ध बहशीपन की सीमा पार कर दी ! चीनी यात्री ह्वानशांग लिखता है की उसने कुशीनगर से वाराणसी के बिच के सभी बौद्ध विहारों को तबाहकर दिया ! पटलीपुत्र में बुद्ध के पधचिन्न्हो को गंगा में फिंकवा दिया और ब्राह्मणों के इशारों पर उसने गया के बौद्ध वृक्ष को कटवा दिया तथा बुद्ध की मूर्ती के स्थान पर शिव की मूर्ति रखवा दी ! तमिल के पेरिया-प्रनानम नमक ग्रन्थ के अनुसार राजा महेन्द्र वर्मन ने असंख्यो बुद्ध स्मारकों और विहारों को आग लगवा दी । 11वीं सदी में मैसूर के राजा विष्णु वर्मन ने बौद्ध और जैन मंदिरों को ध्वस्त करवा दिया ।
महावंश पुराण के 93 वै परिच्छेद के 22 श्लोक के अनुसार तथा सिंघली कथाओं में भी उल्लिखित है की राजा राजा जय सिंह ने बौद्धों पर इतने भयंकर अत्याचार करवाए की पूरा सिंघल द्वीपबौद्धों से खाली हो गया ! शंकर दिग्विजय के अनुसार “राजा सुधन्वा ने अपने व्राह्मण गुरु कुमारिल भट्ट की आज्ञा से अपने सेवकों को ये आदेश दिया की रामेश्वर से लेकर हिमालय तक के सारे भूभाग पर जो भी बौद्ध मिले , चाहे वो बूढ़ा हो या बच्चा उसे क़त्ल कर. दो जो ऐसा नहीं करेगा उसे मैं कट कर दूंगा ” शंकर दिग्विजय अ.1, श्लोक 93-94) इस प्रकार के और भी हजारों उदहारण भरे पड़े है इन्ही द्वारा लिखित साहित्यों में………!
क्या यह उदहारण काफी नहीं है ये समझने के लिए की बुद्ध से संबंधित इतिहास जमीं के निचे क्यूँ और कैसे चला गया ? जागो मूलनिवासी जागो
जय भीम “नीला सलाम” आपका भाई – William Thomas Jatt




No comments:

Post a Comment