घडक़ौली गांव की आबादी है करीब डेढ़ हजार, जिसमे अनुसुचीत जाती परिवार के सदस्यों की संख्या लगभग बारह सौ है. पुरे गांव के अनुसुचीत जाती के लोग एकजुट हैं. गांव में खेती से लेकर सारा कारोबार और किराना दुकान अनुसुचीत जाती के लोग ही चलाते-संभालते हैं. सामंती प्रथा के खिलाफ खड़े हुए गांव वालों ने अपने गांव को नाम दिया द ग्रेट चमार डों भीमराव अंबेडकर ग्राम “घडक़ौली” ..
गांव के अंबेडकरवादीयो को इस नाम के लिए बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी थी. वर्ष 2016 में इसी नाम के कारण गांव में जातीय संघर्ष हुआ. दिन में गांव के बाहर ‘द ग्रेट चमार डों भीमराव अंबेडकर ग्राम “घडक़ौली”..’ का बोर्ड लगाया गया और रात के अंधेरे में ऊंची जाति वालों ने गांव पर हमला बोल दिया. हमलावरों ने पहले गांव के नाम वाले बोर्ड को काली स्याही से रंग दिया, फिर गांव की अंबेडकर प्रतिमा पर भी स्याही पोती गई. शिकायत पर पुलिस ने गांव वालों की नहीं सुनी. बहरहाल, हल्ला मचा तो हालात सुधरे और गांव में फिर से ‘द ग्रेट चमार ग्राम’ का बोर्ड हर आने-जाने वाले का स्वागत करने लगा. उस रात के तांडव के बावजूद गांव वाले झुके नहीं-टूटे नहीं और शान से दुनिया में अपनी पहचान को पुख्ता किया. इस गांव में एक फौज भी है, नाम है भीम आर्मी. गांव के तमाम छोरे भीम आर्मी के सदस्य हैं. यूं तो भीम आर्मी कहती है कि दलितों को सामाजिक इंसाफ दिलाना जिम्मेदारी है, उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करना है. दलित वोटबैंक को मजबूत करना है, ताकि कोई पार्टी दलित बिरादरी को अपनी बपौती या जागीर समझने की भूल नहीं करे. बहरहाल, आज के दौर में भीम आर्मी के साथ कुछ विवाद भी जुड़ गए हैं.
भीम आर्मी की शुरुआत करीब दो साल पहले स्थानीय एएचपी कॉलेज में हुए बवाल से हुई. इस कॉलेज में ऊंची जाति का वर्चस्व था, दलित छात्रों के लिए अलग सीट, अलग नल से पानी पीना इत्यादि. इसी कॉलेज में चंद्रशेखर (अध्यक्ष, भीम आर्मी) भी पढते थे. उसने इस सब के खिलाफ मोर्चा खोला और बाद मे से उन्होने इस प्रवृत्ती को शुरु कीया.
संगठन का पूरा नाम है ‘भीम आर्मी भारत एकता मिशन’. चंद्रशेखर की यह फौज पहली बार अप्रैल-2016 में हुई जातीय हिंसा के बाद सुर्खियों में आई थी. अनुसुचीत जाती के लिए लड़ाई लडऩे का दावा करने वाले चंद्रशेखर की भीम आर्मी से उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पंजाब और उत्तराखंड के हजारों युवक जुड़ चुके हैं. तमाम जिलों में भीम आर्मी की शाखाएं स्थापित हो चुकी हैं और सदस्यता अभियान जारी है. हालांकि चंद्रशेखर का दावा है कि भीम आर्मी का नेटवर्क यूपी के साथ-साथ सात राज्यों में फैला है और 40 हजार से ज्यादा पूर्णकालिक सदस्य जुड़ चुके हैं. लखनऊ और कानपुर से करीब डेढ़ सौ लोग भी भीम आर्मी से जुड़े हैं. लखनऊ के नौजवान जुलाई में आर्मी के स्थापना दिवस पर बड़ा कार्यक्रम करने की योजना बना रहे हैं.
चंद्रशेखर कहते हैं कि दमन से लडऩे के लिए SC लोगों का शिक्षित होना और आर्थिक रूप से मजबूत होना जरूरी है. SC को ऊंची कुर्सी वाली नौकरियां हासिल करनी होंगी, बाबू-चपरासी बनने से कुछ भला नहीं होगा. चंद्रशेखर बिरादरी को समझाते हैं कि अच्छी नौकरी के लिए अच्छी पढ़ाई करनी होगी और अच्छी पढ़ाई के लिए अच्छी कमाई भी करनी पड़ेगी. इसी बात पर जोर देते हुए चंद्रशेखर भीम आर्मी के जरिए SC लोगों को रोजगार से जोडऩे में जुटे हैं. स्वरोजगार.. ऐसा स्वरोजगार, जिसमे निर्माण से लेकर बिक्री और खरीदारी दलि बिरादरी के बीच होगी. जाहिर है कि बिरादरी की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी. चंद्रशेखर अक्सर ही लोगों को समझाते हैं कि अभी तक दूसरी-तीसरी पार्टियों ने दलितों को वोटबैंक समझा है और निरीह बनाकर रखा है. कारण यहकि बड़े नेता जानते हैं कि दलित पढ़-लिख गया और सेठ बन गया तो राजनीति के झांसे में नहीं आएगा, बल्कि खुद राजनीति करेगा. चंद्रशेखर का यह थ्योरी रंग दिखा रही है...
चंद्रशेखर का मिशन आगे बढ़ता दिख रहा है. भीम आर्मी से जुड़े 23 बरस के टिंकू बौद्ध भीम डिटर्जेट पाउडर बनाते हैं. अनुसुचीत जाती के लोगो के बीच सप्लाई होती है. इसी प्रकार रामबिहारी सूखे मसालों को पीसकर बैकिंग करने के स्वरोजगार में व्यस्त हैं. टिंकू और रामबिहारी ने दर्जनों SC युवाओं को रोजगार भी दिया है. आर्थिक मोर्चे पर चंद्रशेखर का मानना है कि देश में ज्यादा तादाद मे आबादी SC बिरादरी है, ऐसे में SC का प्रोडक्ट यदि बिरादरी के बीच बिकने लगेगा तो आर्थिक तरक्की के लिए दूसरे का मुंह नहीं देखना पड़ेगा. फेसबुक पर भीम आर्मी के काफी प्रशंसक हैं. फेसबुक पर भीम आर्मी के पेज पर रोजाना सैकड़ों फालोअर्स दस्तक दे रहे हैं. इस पेज से ज्यादातर SC ST OBC जुड़े हैं और तो और पंजाबी और सिख युवा भी सदस्य हैं. स्थानीय स्तर पर यह संगठन इतना मजबूत है कि प्रत्येक गांव में आर्मी से जुड़े नौजवान हैं.
चंद्रशेखर का भाजपा से पुराना नाता, एबीवीपी के सदस्य थे
SC राजनीति की नई थीम रखने वाले चंद्रशेखर पर भाजपा का एजेंट होने का आरोप है.
भाजपा से रिश्तों के सवाल पर चंद्रशेखर स्वीकार करते हैं कि छात्र जीवन में उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सदस्यता ली थी, लेकिन अब एबीवीपी से बहुत दूर हैं. SC लोंगो के हित की बात करने वालों के साथ भीम आर्मी खड़ी दिखेगी, चाहे भाजपा हो या कांग्रेस या फिर खुद मायावती ही क्यों नहीं. अलबत्ता मुंहजुबानी बात करने वालों के बजाय धरातल पर काम करने वालों को ही भीम आर्मी सहयोगी करेगी.
सहारनपुर कांड से चर्चा में आई भीम आर्मी
सहारनपुर के थाना बडगांव के शब्बीरपुर गांव में एससी और राजपूत समुदाय के बीच हिंसा से भीम आर्मी की साख पर आंच आई. जाति आधारित हिंसा के दौरान पुलिस चौकी को जलाने और 20 वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया. कई स्थानों पर बीते बुधवार को भी पथराव और झड़प की घटनाएं हुई. इस घटना के एक दिन बाद एसपी सिटी और एसपी रूरल का सहारनपुर से तबादला कर दिया गया. शेखर ने बताया कि वारदात में सभी लोग भीम आर्मी के सदस्य नहीं थे. उन्होंने कहा कि बवाल होने के बाद अधिकारियों ने विरोधियों को शांत करने के लिए बुलाया था. वह भगवान बुद्ध की शिक्षाओं के साथ साथ डा. अंबेडकर के अहिंसावादी रास्तों का पालन करते हैं.
'भीम सेना' के नक्सलियों से संबंध जोड़ने में जुटा प्रशासन और मीडिया
शब्बीरपुर में हुए जातीय संघर्ष के दौरान लाचार दिखता पुलिस प्रशासन भीम आर्मी का नाम आते ही यकायक सक्रिय हो गया है. शब्बीरपुर में दलितों के मकान जलाने के बाद उपद्रवी ठाकुर इतने चर्चित नहीं हुए जितना 'भीम आर्मी' को निशाना बनाया जा रहा है. यही नहीं अपनी प्रशासनिक विफलता से मुंह छुपाने के लिए अब 'भीम सेना भारत एकता मिशन' के नक्सलियों से संबंध खंगाले जा रहे हैं.
गांधी पार्क में हुई हिंसा के बाद जो मीडिया संस्थान भीम सेना को टारगेट कर रहे हैं वह शब्बीरपुर में दलितों के जलाए घरों पर खबरें बनाने से भी बचते नजर आ रहे हैं
अब सोशल मीडिया (फेसबुक, व्हट्सएप्प, ट्विटर आदि) पर भी कुछ पोस्टरों के जरिए भीम आर्मी के समर्थकों को दिल्ली पहुंचने का आह्वान किया जा रहा है. पोस्टर में प्रदेश सरकार से सवाल किया गया है कि दलित समाज के 85 घर फूंकने वाले ठाकुरों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है और विरोध करने वाले भीम सैनिकों पर झूठे मुकदमे और रासुका लगाई गई.
भीम आर्मी अगर टूटती है तो जिम्मेदार होंगे देश के 23 करोड़ दलित ..
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