February 26, 2018

मंझिल एक है अपनी तो फिर दुरी का क्या काम है???

By Jigar Shyamlan ||  17 February 2018 at  12:30pm 




भाईयो...

मंझिल एक है अपनी तो फिर दुरी का क्या काम है।
सब के अपने अपने खेमे, सबका अलग नाम है।

कुछ दिनो से देख रहा हुं, हम आपस में ही उग्र बन रहे है। 
देखा यहा हुं तो बडा दु:ख होता है क्योकि कोई दलित है, कोई अनुसूचित जाति है और कोई मूलनिवासी है।

वैसे तो हम सब भिन्न भिन्न विचार से प्रेरित है, लेकिन ईस के बावजूद ईन भिन्नता में भी हमे कोई शब्द जोडै रखता है तो वो है जय भीम का नारा।

अब हम स्वयं जो विचारधारा में मानते हो, उस के हिसाब से समाज के प्रति उठ खडे हूये सवालो पर आपसी विचार मतभेद को एक दूसरे की पोस्ट पर जाहीर करके और एक दुसरे के प्रति कटुता पैदा नही करनी है।

भले ही सब अपनी अपनी विचारधारा पर ही कायम रहे। लेकिन अगर कोई कुछ भी कर रहा है चाहे भले ही उस में कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष स्वार्थ हो या न हो। हमे समाज के लिये या समाज के किसी भी व्यक्ति के लिये किये जानेवाले कायँ और करनेवाले कोई भी व्यक्ति को क्रिटिसाईझ नही करना चाहीए।

मेरे विचार से ईतफाक रखनेवाले भाईयो को एक बात कहना चाहुंगा।

यदी कोई भी विचार समाज में जो बदलाव होना चाहीये या लाना चाहीये वह असर पैदा नही कर रहा मतलब उसके प्रचार में या फिर उसको प्रचारीत करनेवाले मेसेन्जर में ही कुछ कमी है। आप उन कमीयों को ढूंढे उस के सुधार के लिये नई रणनीति बनाये।

यदी आप जिस विचारधारा को फैलाना चाहते है उससे लोग नही जूड रहे मतलब विचारधारा के प्रचार-प्रसार में चूंबकीय आकर्षण का अभाव है।

चूंबक जो छोटे छोटे लोहे के टुकडो को अपने प्रति आकर्षीत करता है। यह वास्तव में चूंबक की ही शक्ति है, जो छोटे लोहे के टुकडो को अपने प्रति खीच लेता है। ईसलिये विचारधारा के प्रचार-प्रसार में चूंबकीय आ्कर्षण पैदा करे ता कि अलग-थलग पडे हूये टुकडो को अपनी ओर खींच सके।

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