अभी तक जो भी इतिहास ज्ञात हो सका है , भारत में जन्मदिन मनाए जाने की परंपरा मौर्य शासकों ने प्रारंभ की । भगवतशरण उपाध्याय स्ट्रेबो ( अमेसिया , 64 ई. पू. - 19 ई. ) को उद्धृत करते हुए लिखा है कि चंद्रगुप्त मौर्य अपना जन्मदिन प्रतिवर्ष बड़े पर्व के रूप में धूमधाम से मनाया करता था । ( वृहतर भारत पृ . 35 -36 )
सम्राट अशोक भी ऐसा अपना वार्षिक जन्मोत्सव मनाया करता था तथा इतिहासकारों ने संकेत किया है कि ऐसे ही वार्षिकोत्सव के दिन वह साल में एक बार कैदियों को मुक्त करने की प्रथा प्रारंभ की । ( प्राचीन भारत का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास , पृ. 321 )
सम्राट अशोक को अष्टमी के दिन से विशेष लगाव था , ऐसा संकेत मिलते हैं । उसने प्रत्येक पक्ष की अष्टमी के दिन बैल , बकरा , भेड़ा , सुअर और इसी तरह के दूसरे जीवों को नहीं दागने का आदेश का जारी किया था । ( पाटलिपुत्र की कथा , पृ. 152 )
पाटलिपुत्र के जिस वार्षिकोत्सव का जिक्र बड़े गर्व के साथ चीनी यात्री फाहियान (399 - 411 ई. ) ने किया है , वह चैत्र शुक्ल अष्टमी के दिन मनाया जाता था । फाहियान ने लिखा है कि बीस बड़े और सुसज्जित रथों वाले विशाल जलूस प्रत्येक साल निकाले जाते हैं और दूसरे महीने की आठवीं तिथि को इन्हें शहर में घुमाया जाता है । ऐसे जलूस और शहरों में भी निकाले जाते हैं । ( प्राचीन भारत का इतिहास , बी. डी. महाजन , पृ. 463 )
कई इतिहासकारों ने फाहियान द्वारा उद्धृत वार्षिकोत्सव की तिथि को समझने में भूल की है ।वे आज के हिंदी कैलेंडर की माह - गणना - प्रणाली के मद्देनजर वैशाख मान लिए हैं । कारण कि आज की तारीख में वैशाख ही हिंदी कैलेंडर का दूसरा महीना है ।
मगर फाहियान आज से कोई 1600 साल पहले गुप्तकाल में भारत आया था और उस समय में साल का प्रथम माह फाल्गुन था । आप कैलेंडर सुधार समिति ( 1955 ई. ) की रिपोर्ट जाँच लें , जिसमें लिखा है कि जो उत्सव 1400 वर्ष पहले जिन ऋतुओं में मनाए जाते थे , वे 23 दिन पीछे हट चुके हैं । वर्तमान में वसंत संपात चैत्र में होता है । इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को वर्ष का प्रथम दिन मनाया जाता है। वसंत संपात प्रतिवर्ष 20 मिनट 24. 58 सैंकेंड पहले हो जाता है । इसलिए फाहियान के समय में संवत्सर का प्रथम माह फाल्गुन था और साल का दूसरा महीना चैत्र था ।
इसलिए फाहियान ने जिस वार्षिकोत्सव का अपने यात्रा - विवरण में जिक्र किया है , वह चैत्र शुक्ल अष्टमी को मनाया जानेवाला अशोकाष्टमी है । अशोकाष्टमी का विस्तृत विवरण हमें कृत्यरत्नावली , कूर्मपुराण तथा व्रत परिचय में मिलता है । ( पुराणकोश , पृ. 36 )
मगर पौराणिक संदर्भों की अशोकाष्टमी में अशोक वृक्ष का महत्व स्थापित है । अब आप अशोक वृक्ष और सम्राट अशोक के बीच संबंध की जाँच के लिए बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान का अध्ययन करें , जिसमें लिखा है कि नामसाम्य के कारण सम्राट अशोक को अशोक वृक्ष बहुत प्रिय था या हजारी प्रसाद द्विवेदी की उस चंवरधारणी यक्षिणी को याद करें जो मथुरा संग्रहालय में अशोक वृक्ष का पौधा लिए खड़ी है ।
ऐसे में साबित होता है कि चैत शुक्लाष्टमी को मनाया जानेवाला वार्षिकोत्सव अशोकाष्टमी मूलतः सम्राट अशोक का जन्मदिन है , जिसमें पुराणकारों ने सावधानीपूर्वक सम्राट अशोक को विस्थापित करके सिर्फ अशोक वृक्ष को जोड़ लिया है ।
- राजेन्द्र प्रसाद सींहFacebook Post :-
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