May 22, 2017

मार्क्स की लंगोटी सभी दलितो को नहीं पहनाई जा शकती : दिपक सोलंकी

मार्क्स की लंगोटी
मार्क्स की लंगोटी सभी दलितो को नहीं पहनाई जा शकती
वर्गीय असमानता दलित नौकरी धारी भाई ऐवंम् मजदूर, श्रमिक दलितो के बीच आपस आपस में ढूढने का कोई मतलब नहीं है। क्योंकी वो असमानता हो या न हो उससे कोई फर्क नहीं पडता है। वर्गीय असमानता मालिक ऐवं नौकर तहेत ही होती है। जमीनदार और भु-मजदुर के बीच ही होती है । नौकरी और टीफिन कल्चर की वर्गीय असमानता खुद सोवियत रुस जो की तूट चूका है और खुद चाईना वे भी नहीं हटा शकती हटाने का भी कोई मतलब नहीं है। हमें तो हमारे मानवीय मूल्य व अधिकार को नष्ट करे उसी असमानता पे ध्यान देना चाहिऐ । ये पूरी बात वर्ग के तहत है। ये बात अलग है की व्हाईट कॉलर दलित की उदासिनता पूरे समाज के लीऐ दुखद् है पर ये मामला अलग है और वर्गीय मामला अलग है । हमे तो बाबा साहेब के बुद्ध ऐवम् समाजवाद को जानना चाहिऐ, राष्ट्रिय करण ऐवं संपति विभाजन पर बाबा साहेब के विचार को जानना चाहीऐ ।
- दिपक सोलंकी




















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