मार्क्स ने कूछ नया अर्थशास्त्र विकसित नहीं कीया बस जो पहले से ही कुछ महापुरुषोने जो प्रतिपादित कीया था उसे ही बताया लेकिन मूल जो फर्क है वो साधन का है। मार्क्स के मुताबित साध्य प्राप्ति के लीऐ हींसा अनिवार्य है। जबकी बुद्ध हींसा को खारिज करते है। त्रिपिटिक के अद्य्ययन के पश्चात यह प्रतिपादित है की बुद्ध ईस बात पर भी जोर देते है की धर्म का कार्य विश्व का पुनर्निर्माण करना तथा उसे प्रसन्न रखना है और निर्वाण कोई अंतिम ग्नान की उच्चतम अवस्था नहीं पर जिवन जिने का तरिका है। ईतना ही नहीं स्वयं बुद्धने सीधे ही विश्व के पुन: निर्माण में कार्य कीये और उन्हौने समयक सत्ता स्थापन के लिऐ मनुष्य के ह्रदय परिवर्तन पे जोर लगाया उतना ही नहीं पूरे विश्व में उन्होने अपने कार्यो को स्थापित कीया है।
- दिपक सोलंकी
- दिपक सोलंकी
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