By Jigar Shyamlan || 31 January 2018
बहूजन नायक रविदासजी को सिफँ संत कहना उचित नही है।
मेरे द्रष्टिकोण से रविदासजी क्रान्तिकारी थे, और उन्होने समाज मे फैले हूये पाखंड और मनुवाद को खूल्लम खूल्ला चेतावनी दी थी, वोह भी अपनी कलम से।
उन्होने अपनी कलम से सिफँ धमँ के नाम पर चल रहे पाखंड पर ही प्रहार नही किया था बल्कि मनुवाद को पूरा ही धो डाला था।
रविदासजी के जीवन में काफी हद तक मनुवादी कहानीयां जोडी गई। यह एक साजिश ही थी जिसके तहत रविदासजी को मनुवादी परंपरा के अनुसार सिफँ और सिफँ ऐसा संत बनाये रखा जिनको पुजा जाये।
वैसे भी मनुवादीयोने यही तो किया है। जिन जिनसे खतरा लगा उनको पूजनीय बना दीया गया। ता कि लोग उनकी भक्ति में ही लीन हो जाये।
उनकी कुछ रचनाए ही देख लिजीये.....
(1). ब्राह्मण मत पूजिये जो होवे गुण हीन।
पूजिये चरण चांडाल के जो होवै गुणप्रविन।।
(2). राम न जानू, न भक्त कहाऊं, सेवा करूँ न दासा।
योग, यज्ञ, गुण कछु न जानू, तातै रहूं उजासा ।।
(3) ऐसा चाहू राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न। छोट बड़ो सब सम बसै, रैदास रहे प्रसन्न ।।
यह आंदोलन था बहूजन महानायक रविदासजी और सभी संतो ओर महापुरषो का जिसको आगे जाके दुश्मनो ने खत्म किया और भक्ति का रंग दिया।