December 05, 2017

विचारधारा का प्रचार क्यो रुका हुआ था???

By Jigar Shyamlan ||  23 November 2017 at 10:41 


आज मैं ईस पोस्ट में प्रारंभ में ही पिछडे समाज के सिनियर सिटिजन्स और रिटायडँ हो चुके सभी बुझुगोँ से माफी चाहता हुं।
क्यो कि मेरा मानना है कि समाज में बाबा साहब के विचारो का जिनता प्रचार प्रसार होना चाहीये था उस से आधा प्रचार प्रसार भी नही हो पाया है जिनके लिऐ पिछडे समाज के सिनियर सिटिजन्स और रिटायडँ हो चुके बुझुगँ ही सीधे जिम्मेदार है।
मित्रो, किसी भी विचारधारा का प्रचार करना और ईसके बाद परिणाम स्वरूप प्रसार होना दोनो भिन्न बाते है। विचारधारा के प्रचार प्रसार कम होने के पीछे बहुतसे कारण हो सकते है।
सबसे बडा और महत्वपूणँ कारण हमारे समाज के सिनियर सिटिजन्स और रिटायडँ हो चुके बुझुर्गो ने बाबा साहबके विचारो के प्रति दिखाई हुई ला परवाही...। ईस बात पर यदी हम गौर करेंगे तो यह बात सामने आयेगी ही।
आज हमारे समाज में जितने भी बुझुगँ सरकारी नौकरी से बडे सन्मान के साथ रिटायडँ हो चुके है उन सबने अपने युवावस्था में आरक्षण के सुनहरे कहे जाने वाले युग में नौकरी पायी थी।
उस वक्त बाबा साहेबके मिशन की शूरुआत ही थी। उस समय छुआछूत भी आज के जितनी लिबरल शायद नही थी। लेकिन बडे दुःख के साथ कहना पड रहा है कि यह सब होते हुए भी वे लोग अपनी जवानी के जोश में बाबा साहब के विचारो को ही भूल गये थे। विचारधारा और मिशन को ही भूल गये थे। 
उन लोगो ने बाबा साहब के विचारो को जरा सा भी नही अपनाया वो तो ठिक है परंतु वे लोग खुद मनुवाद के चक्कर में पडे ओर अपने संतानो को भी मनुवाद की गुलामी के वारीस बनाते गये।
यह सब क्यों हुआ इस बात के दो अथँ हो सकते थे।
(नंबर-१) या तो हमारे बुझुगँ अपने समय में आरक्षण से नौकरी पा कर बाबा साहब के विचारो पर चलने के बजाय चुप रहकर सोच समझकर खूद के प्रति स्वाथीँ बन गये और अपने गरीब, लाचार पिछडे समाज से पिछा छुडाकर मनुवाद की गुलामी में रत हो गये।
या फिर....
(नंबर-२) उन लोगो की मानसिक अवस्था ईतनी कमजोर या मुखँ रही होगी कि वह बाबा साहब के विचारो को समझ न पाये हो।
आज माहोल देखकर अैसा लगता है कि आज बाबा साहब के विचार पहले से ज्यादा प्रभावी बन रहे है।
यदी हमारे बुझुर्गो ने अपने ही समय में मनुवादी विचारधारा को घर से बाहर फेंक दीया होता और अपनी पीढी में आंबेडकरवाद का सिंचन किया होता तो आज परिस्थिती कुछ अलग ही हो सकती थी।
खैर... बित गया सो बित गया।
अभी भी हमारे बुझुगँ चाहे तो बहुत कुछ कर सकते है। वे लोग अगर ठान ले तो आज भी आंबेडकर विचारधारा से जुडी कई गतिविधीया कर सकते है।
मेरी सभी सिनियर सिटिजन्ससे बिनती है क्रिपया आपका समय विचारधारा का प्रचार प्रसार करने में लगाये।
(१). सुबह शाम मंदिरो के चक्कर कांटने में...,
(२). संसार से विरक्त हो कर प्रभु भजनो में ...,
(३). अपने बहु बेटे के व्यवहारो की टिका टिप्पणी करने में...
(४). एवम अपने हम उमँ लोगो के साथ बाग बगीचो में अपने जवानी के किस्से सुनने सुनाने में मत गंवाये।
चींटीयो से प्रेरणा ले, और अपना बाकी बचा हुआ समय बाबा साहब के विचारो के प्रचार प्रसार करने में अपना हो सके उतना योगदान देने के लिए कटिबध्ध हो।
ईक बार फिर से मेरी ईस पोस्ट से अगर किसी भी बुझुगँ को बूरा लगा हो तो मैं दो हाथ जोड कर क्षमां मांगता हुं पर सच यही है।
जिगर श्यामलनका सप्रेम जय भीम...।



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