December 05, 2017

समझदारी बढाने के लिये सबसे सरल पध्धति

By Jigar Shyamlan ||  1 December 2017 at 10:02


समझदारी बढाने के लिये सबसे सरल पध्धति है तर्क करना, सवाल करना और उसका जवाब ढुंढना। 

हर धर्म, मजहब और संप्रदायो में बताई गई ईश्वरीय मान्यता और उससे जूडे भिन्न भिन्न प्रकार के क्रियाकांड महज एक नशीली दवा के हेवी डोझ से अलावा और कुछ नही। यह दवा का हेवी डोझ देने के पीछे एक ही उद्देश है, मानव को सदा ही धर्म और ईश्वरीय मान्यताओ के नशे में मस्त बनाये रखना।
यह दवा का डोझ क्लोरोफोर्म से भी महा भयंकर है, क्योकि क्लोरोफोर्म ईन्सान का होश उडा देता है पर कुछ ही समय के लिये। लेकिन यह ईश्वरीय मान्यता का डोझ ईन्सान को मरते दम तक होश में नही आने देता।
कहा जाता है, शारीरीक गुलामी से भी बदत्तर हालत हो तो वह है मानसीक गुलामी।
क्योकि, शारीरीक गुलामी में सिफँ हमारे शरीर, हाथ-पैर और शारीरीक ताकत पर कीसी और का प्रत्यक्ष या सीधा कब्जा बना रहता है, परंतु मानसीक गुलामी में हमारे दीमाग, विचारो पर किसी और का परोक्ष या अप्रत्यक्ष कब्जा बना होता है।
मानसीक गुलामी मतलब शारीरीक तौर पर ताकतवर होते हुये भी कुछ भी नही कर सके वैसी लाचार एवम दीन अवस्था। ईसलिये यदी आप मानसीक तौर पर आझाद नही है तो आप आझाद होते हुए भी गुलाम ही है। क्योकि मानसीकता पर विजय मतलब सवँस्व विजय।
ईस अवस्था ने ईन्सान को ईतना कमजोर बना दीया है, ईतना कमजोर कि वह सवाल करने की, तर्क करने की क्षमता गंवा चूका है।
जब आप तर्क करना या सवाल पूछना बंध कर देते है तब आप ईन्सान नही रहते बल्कि एक रोबोट बन जाते है। एक ऐसा रोबोट जो अपने अंदर दूसरो के द्वारा ईन्स्टोल किये गये प्रोग्रामींग पर चलता हो।
हर धर्म, मजहब और उसकी ईश्वरीय धारणा पर आस्था, श्रध्धा, यकीन, विश्वास या भरोसा करने से पहले शंका या संशय अवश्य करे।
कारण, ईन सब का सृजँन समाज पर प्रभुत्व कायम करने को ईच्छूक कुछ लोगो द्वारा किया गया है, ता कि समाज को मानसीक गुलाम बनाया जा सके। हर बात पर तर्क करना सीखे, शंका या संशय करना सीखे। हर बात को बिना किसी परीक्षण के आधार पर मान लेने की गलती न करे।
यदी मंदीर में जाये तो दोनो हाथ जोडने मे पहले।
यदी मस्जिद में जाये तो नमाझ अदा करने से पहले।
यदी चचँ में जाये तो प्रैयर करने से पहले।
यह सब क्यो..? किस लिये.. ? यह सवाल अपने आप से पुछीये।
यह सब करने से सुख, समृध्धि आती तो समूचे संसार में कोई भी दूःखी नही होता।
मेरे पिता यह करते थे, दादा-परदादा भी यह सब करते थे ईसलिये मुझे भी यह करना है यह मानसीकता त्याग दो।
समझदारी बढाने के लिये सबसे सरल पध्धति है तर्क करना, सवाल करना और उसका जवाब ढुंढना।
ईसलिये तर्क करे.., सवाल करे और जवाब ढुंढे।
- जिगर श्यामलन

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