July 06, 2017

ये अंधेरा ही आज के फेसबुक की तस्वीर है






बहुजनो की आवाज़ को दबाने के लिए फेसबुक इंडिया ने नेशनल दस्तक के फेसबुक पेज पर पाबंदी लगा दी है... कोई भी लिंक वह अपने फेसबुक पेज पर नही डाल सकते.  सोशल मीडिया की मनुस्मृति.... पुराने समय में वे आपकी जीभ काट लेते थे. अब भी वे आपको अपनी बात अपने लोगों तक पहुंचाने नहीं देंगे. भारतीय कटेंट को मॉनिटर कर रहे फेसबुक इंडिया के हैदराबाद, मुंबई और गुड़गांव के अधिकारियों शर्म करो. वजह तो बता दो? 

आज से लगभग दस साल पहले जब पहले फेसबुक और फिर ट्विटर आया और फिर ह्वाट्सऐप तो ऐसा लगा था कि कॉरपोरेट-सवर्ण मीडिया के एकछत्र राज के सामने अपनी बात करने का एक लोकतांत्रिक मंच हमें मिल गया है.

शुरुआत में कस्टमर जोड़ने के लिए सोशल मीडिया ने उदारता से हम सबको अपनी बात कहने का मौका भी दिया. भारत में अगर करोड़ों कस्टमर चाहिए तो बहुजनों को तो साथ लेना ही पड़ेगा. आबादी का हिसाब ही ऐसा है.

यहां तक सब ठीक चल रहा था. हम सब कटेंट लिख रहे थे. फोटो और वीडियो शेयर कर रहे थे. गुडमॉर्निंग और गुड नाइट कर रहे थे, तो सब खुश थे.

फिर RSS ने सोशल मीडिया का राजनीतिक इस्तेमाल बड़े पैमाने पर करने की नीति बनाई. कई शहरों में बीजेपी के कॉल सेंटर खुल गए. वहां से सांप्रदायिक जहर फैलाया जाने लगा. मोदी की ब्रांडिंग शुरू हुई. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी का सोशल मीडिया इतना बड़ा हो चुका था कि बाकी सभी दलों का मीडिया उनके सामने बौना था.

यहां तक भी सब ठीक चल रहा था.

हिंसा फैलाने वाले किसी पेज पर पाबंदी नहीं लगी.

संघी-हिंसक सोच के सारे पेज बदस्तूर चलते रहे.

लेकिन फिर बहुजनों ने भी सोशल मीडिया और इंटरनेट का इस्तेमाल शुरू किया. SC, ST, OBC, माइनॉरिटी के लोग देर से आए, पर जल्द ही उन्होंने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा दी.

सैकड़ों ऐसे ग्रुप और पेज बन गए, जिनसे लाखों लोग जुड़ गए. इसका असर यह होने लगा की गूगल को बाबा साहेब और सावित्रीबाई फुले की जयंती पर अपना डूडल बनाना पड़ा. बात असर करने लगी.

यहां आफत हो गई.

फेसबुक बेशक अमेरिका में रजिस्टर्ड कंपनी है. लेकिन इसका भारतीय कंटेंट भारतीय अधिकारी ही मॉनिटर करते हैं.

भारतीय अधिकारियों का धर्म भी होता है और उनकी जाति भी होती है.

तो जिन भारतीय अधिकारियों ने किसी दंगाई पेज पर आजतक पाबंदी नहीं लगाई, उन्होंने बहुजन, लोकतांत्रिक पेजों पर पाबंदी लगाने का सिलसिला शुरू कर दिया.

इसका ताजा शिकार नेशनल दस्तक है. कई लोग और पेज पहले इस मनमानी के शिकार हो चुके हैं. फेसबुक पर नेशनल दस्तक से जु़ड़े साढ़े तीन लाख लोग इसकी खबरों का लिंक नहीं देख सकते, क्योंकि फेसबुक ने बिना कारण बताए, इस पर रोक लगा दी है.

मतलब कि आप समझ सकते हैं कि भारत में बहुजन मीडिया का रास्ता कितना कठिन है.

सबसे पहले तो आपको अपने लोगों को बताना है कि कॉरपोरेट-जातिवादी मीडिया पर भरोसा करना बंद कीजिए, जो कि बेहद मुश्किल काम है, और जब आप यह कर लेते हैं, तो आपको अपनी बात कहने से रोक दिया जाता है.

फेसबुक पर सुदर्शन न्यूज, इंडिया टीवी और ज़ी न्यूज की दंगाई खबरें चल सकती हैं, RSS के सारे हिंसक पेज चल सकते हैं, अंधविश्वास और पोंगापंथ फैलाने वाले पेज चल सकते हैं, सारे सवर्ण जातिवादी और आरक्षण विरोधी पेज चल सकते हैं, सांप्रदायिकता फल-फूल सकती है। लेकिन बहुजनों का लोकतांत्रिक मंच नेशनल दस्तक नहीं चल सकता।

फेसबुक द्वारा के नेशनल दस्तक पेज को बाधित करना घोर निंदनीय है। जब धार्मिक उन्माद फैलाने वाले पेज चल रहे, अश्लील पेज चल रहे तो नेशनल दस्तक के साथ फेसबुक के अधिकारी सौतेला व्यवहार क्यो कर रहे। जब की नेशनल दस्तक पर कोई अश्लील बात नहीं होती। सिर्फ इसलिए की यह दलित, आदिवासियों के बारे में लिख रहा। घोर जाति वादी मानसिकता से ग्रस्त है भारत के फेसबुक अधिकारी।

कौन है जो डिजिटल दलित से डर रहा है और बहुजन वेबसाइट पर रोक लगा रहा है?

नेशनल दस्तक पर पाबंदी लगने से पहले की इस खबर को देखिए। इस खबर को 2 लाख 36 हजार लोगों ने अपने पेज पर शेयर किया है। बड़े-बड़े मीडिया हाउस की खबरें इतनी शेयर नहीं होतीं।

इसके वीडियो यूट्यूब पर तीस लाख से ज्यादा देखे गए हैं।

यह ब्राह्मणवादियों को क्यों पचेगा?

नेशनल दस्तक एक खासा बड़ा मंच बन चुका है। हालांकि सफर लंबा है। इसकी कामयाबी के बाद सैकड़ों SC, ST, OBC युवाओं में उत्साह आया और वे भी इंटरनेट और यूट्यूब पर अपना मीडिया बना रहे हैं। उनमें कई कामयाबी के रास्ते पर चल पड़े हैं।

नेशनल दस्तक की सफलता से एक चेन रिएक्शन पैदा हुआ है। इसलिए हमला सीधे इसी पर हुआ है।

वैसे, यह सब करके कुछ बिगाड़ नहीं पाएंगे।


बहुत कठिन है डगर पनघट की!

 #IAmWithNationalDastak 


दिलीप मंडल की कलम से (except title of the post and images)






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