July 06, 2017

सबसे सुंदर हसीन कल्पना : आत्मा-परमात्मा , भाग - 2

By Sanjay Patel Bauddha



निरर्थक एवं शरारती बातों में एक नाम आता है, आत्मा का। 
"आत्मा विषयक अन्य कई बातों की तरह गीता का यह सिद्धांत भी गलत और भ्रांत है। यदि सब के अंदर अनुभव करनेवाली एक ही आत्मा है, तब एक के पानी पीने पर सबको संतुष्टि अनुभव क्यो नही होती ? यदि सबके अंदर एक ही ज्ञाता है तो फिर अर्जुन को उपदेश क्यों दिया गया ? उसे स्वतः ही कृष्ण का ज्ञान क्यों नहीं प्राप्त हुआ ? यदि सबके अंदर एक ही आत्मा है तो फिर गाय के आगे चारा और शेर के आगे मांस क्यों परोसा जाता है ? बिल्ली चूहे क्यों खाती है और वैष्णव प्याज से परहेज क्यों करते है ? गीता की सबके अंदर एक ही आत्मा होनेवाली बात बिलकुल गलत है।"
गीता कहती है कि आत्मा का विभाजन नहीं होता। 
"गीता के आत्मा विषयक ये उदगार नितांत काल्पनिक है। केंचुए को मध्य से काट दो तो दो सजीव केंचुए बन जाते है। ऐसे में क्या केंचुए के बीच की आत्मा दो शरीरों में आधी-आधी होकर नहीं चली जाती ? छिपकली की पूंछ काट देने पर कटी हुई पूंछ काफी समय अलग पड़ी तड़पती रहती है। क्या यह छिपकली की आत्मा का अंश ही पूंछ में नहीं तड़पता ? ऐसे में आत्मा के बारे में यह कहना कि इसे शस्त्र नहीं काट सकते, सरासर गलत है। अगर कथित आत्मा न कटती तो केंचुए का कटा भाग और छिपकली की कटी पूंछ दोनों ही निष्क्रिय होकर पड़े रहते। यदि आत्मा को अग्नि जला नही सकती, पानी इसे भिगों नहीं सकता और हवा इसे सूखा नहीं सकती, यदि यह फायरप्रूफ, वाटरप्रूफ और एयरप्रूफ है तो यह आत्मा बिजली के करंट वाली तार के शरीर से छू जाने पर शरीर से क्यों निकल भागती है ? पानी में डूबने से वह क्यों निकल भागती है ? अधिक गर्मी से लोग क्यों मरते है ?"
गीता कहती है कि आत्मा नया शरीर धारण करती है।
"आत्मा विषयक यह सिद्धांत भी असत्य है। यदि मृत्यु का अर्थ एक पुरानी कमीज को छोड़कर नई कमीज पहनने के समान ही होता, तो हर कोई मृत्यु के प्रति उसी तरह उत्साहित और उत्कंठित होता जैसे प्रत्येक व्यक्ति को नई कमीज का चाव व उत्साह होता है। लेकिन देखने मे इसके बिलकुल उलट मिलता है कोई भी प्राणी मरना नहीं चाहता । कोई भी इस पुरानी कमीज को छोड़ना नहीं चाहता।
जो छोटे बच्चे, बलिष्ठ युवक युवतियां हार्टफेल हो जाने से मर जाते है, उनके शरीर तो जीर्ण नहीं हुए होते, वे तो पुराने नहीं हुए होते, फिर उन्हें आत्मा क्यों छोड़ जाती है ? उधर बहुत से कुष्ठ रोगी घूमते फिरते है, उनके शरीर पूरी तरह और बुरी तरह जीर्ण हुए होते है, लेकिन उनकी आत्मायें उन्हें नहीं छोड़ती। ....असलियत यह है कि दुनिया में आत्मा नामक कोई चीज है ही नहीं।"
(पढ़ते रहिएगा... आत्मा और परमात्मा के अस्तित्व को नकारने उदाहरणों के साथ आगे जारी रहेंगे। पढ़ेगा इंडिया... तभी तो आगे बढ़ेगा इंडिया। भाग - 3 जल्द ही आपके सामने प्रस्तुत होगा।)

संदर्भ:
1. गीता की शव परीक्षा - डॉ. अज्ञात
2. भारत की गुलामी में गीता की भूमिका - आचार्य भद्रशील रावत
3. फ़ोटो - गूगल


1 comment:

  1. केंचुए खाया कीजिये और आत्मा खाने का मजा लीजीये वोटारू महामना। इस प्रकार आपके एक शरीर मे बहुत सारी आत्माओं का वास हो जायेगा। अमीबा खा लें तो बल्ले बल्ले।

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