By Sanjay Patel Bauddha
भाग-2 में हमने आत्मा के अस्तित्व पे जो खंडन किया उसको आगे बढ़ाते अगर देखे तो आत्मा विषयक जंगली विश्वास जो गीता ने प्रचारित किया है, इसने भारत का बेड़ा गर्क किया है । आत्मा की यह जंगली कल्पना पूर्णतः भ्रामक है, असत्य है, अनुभव शून्य है तथा वैज्ञानिक घेरे के बाहर है। इसी संदर्भ में डॉ. अज्ञात एक मेडिकल ऑपेरशन का वर्णन करते हुए कहते है-
"सन 1976 ईसवी में मद्रास में जो एक ऑपेरशन हुआ, उससे आत्मा विषयक रही सही शंका भी समाप्त हो गई। दिनांक 15.03.1976 के वीर प्रताप (हिंदी दैनिक) में छपी विस्तृत रिपोर्ट में कहा गया है, तीन वर्ष तक के बच्चे के दिल की बनावट के दोष दूर करने के लिए एक नई ऑपेरशन विधि 1967 में जापान में विकसित की गई थी। इसके सफल प्रयोग न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में हो चुके है। भारत मे ऑस्ट्रेलिया के डॉक्टरों की देखरेख में उस वक्त के पैराम्बूर रेलवे अस्पताल मद्रास के डायरेक्टर टी. जे. चेरियन और सर्जन के. एस. चेरियन ने ऐसे चार ऑपेरशन किये है।
ऑपेरशन से पहले बच्चे के शरीर मे से खून निकाल लिया जाता है और शरीर का तापमान सामान्य 37℃ से कम करके 18℃ पर लाकर उसका ऑपेरशन किया जाता है, जिसमे एक घंटा 10 मिनट तक समय लग जाता है। हृदय की बनावट को ठीक करके उसे शरीर मे स्थापित किया जाता है। ऑपेरशन के बाद शरीर मे फिर खून डाला जाता है। कुछ मिनिटों के बाद बच्चा जी उठता है।
यदि आत्मा हो तो 70 मिनट तक बच्चा मृत नही रहना चाहिए। जब उससे खून निकाल लिया जाता है, तब भी तो आत्मा वहीं रहेगी ? फिर बच्चा जीवित क्यों नहीं रहता ? जब 70 मिनट के बाद खून डालकर पुनः तापमान सामान्य कर दिया जाता है, तब आत्मा कहां से आ टपकती है, जो बच्चा जीवित हो जाता है?
स्पष्ट है कि सारा खेल भौतिक तत्वों का ही है। उनमें जब गड़बड़ी होती है जीवन उससे प्रभावित होता है। उसमें आत्मा जैसी काल्पनिक चीजों की कोई भूमिका नहीं।"
ठीक ऐसा ही एक उत्तर भंते नागसेन ने सम्राट मिलिंद को दिया था। भंते नागसेन ने कहा था, शरीर मे यदि आत्मा ही मूलभूत है तो आंखों के निकाल देने पर बड़े-बड़े गड्ढ़े हो जाने पर तो और ज्यादा देखेगी। कानों के पर्दो में बड़े-बड़े छेद कर देने पर तो और ज्यादा सुनेगी। नाक में बड़े-बड़े छेद कर दिए जाए तो और ज्यादा सूंघेंगी। जीभ को जड़ से उखाड़ लेने पर बड़े छिद्र होने पर तो आत्मा और ज्यादा स्वाद ले सकेगी। यह सारा अनुभव आत्मा का नहीं, मन के द्वारा है। अतः आत्मा की कल्पना गपोड़संखियो की है, जिससे भारत के लोग गुमराह हो गए है। आत्मा नही है, यह असलियत ब्राह्मण भी जानता है, लेकिन उसमें यह हिम्मत नहीं कि वह इस प्रकार का प्रचार कर सके, क्योंकि वह जानता है ऐसा करने से उसके पुरखों के जमाने से जो हराम का हलवा माड़ा मिल रहा है, उसमे कमी आ जायेगी। ब्राह्मण भली प्रकार जानते है कि जितना ज्यादा अंधविश्वास होगा, जितनी ज्यादा अविद्या होगी और जितना ज्यादा अज्ञान होगा, दूसरों के द्वारा उतना ही ब्राह्मण पूज्य, प्रशंसित एवं सम्मानित होगा। यही कारण है यह वर्ग सदैव परिवर्तन का कट्टर विरोधी रहा है और अंधविश्वासों का समर्थक रहा है।
यह तीन भागों के वांचन के बाद आप उतने तो समर्थ हो ही चुके होंगे और आपकी तर्क शक्ति और वैज्ञानिक दृष्टि से आप इतने तो पक्के हो ही गए होंगे कि आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है। जब आत्मा ही नहीं तो परमात्मा (ईश्वर) किस खेत की मूली है !
(पढ़ते रहिएगा... अगर आत्मा ही नहीं है तो परमात्मा कैसे ?... आगे जारी रहेंगे। पढ़ेगा इंडिया... तभी तो आगे बढ़ेगा इंडिया। भाग - 4 जल्द ही आपके सामने प्रस्तुत होगा।)
संदर्भ:
1. गीता की शव परीक्षा - डॉ. अज्ञात
2. भारत की गुलामी में गीता की भूमिका - आचार्य भद्रशील रावत
3. फ़ोटो - गूगल
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