( क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन की अगुवाई में प्रगतिशील महिला एकता केंद्र एवं नौजवान भारत सभा के कार्यकर्त्ताओ ने तथ्यों की जांच पड़ताल के लिए शब्बीरपुर गांव का दौरा 8 मई को किया इस जांच पड़ताल के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है।)
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सहारनपुर से लगभग 26 किमी दूरी पर शब्बीरपुर गांव पड़ता है । मुख्य सड़क से तकरीबन आधा किमी दूरी पर यह गांव है।इस गांव के आस पास ही महेशपुर व शिमलाना गांव भी पड़ते है। गांव के भीतर प्रवेश करते वक्त सबसे पहले दलित समुदाय के घर पड़ते है। जो कि लगभग 200 मीटर के दायरे में गली के दोनों ओर बसे हुए हैं। यहां घुसते ही हमें गली के दोनों ओर जले हुए घर, तहस नहस किया सामान दिखाई देता है। दलित समुदाय के कुछ युवक, महिलाएं व अधेड़ पुरुष दिखाई देते हैं जिनके चेहरे पर खौफ, गुस्सा व दुख के मिश्रित भाव को साफ साफ पढ़ा जा सकता है।
इस गांव के निवासियों के मुताबिक गांव में तकरीबन 2400 वोटर हैं जिसमें लगभग 1200 वोटर ठाकुर समुदाय के , 600 वोटर दलित (चमार)जाति के है। इसके अलावा कश्यप, तेली व धोबी, जोगी (उपाध्याय) आदि समुदाय से हैं। मुस्लिम समुदाय के तेली व धोबी के तकरीबन 12- 13 परिवार हैं। गांव में एक प्राइमरी स्कूल हैं जिसमें ठाकुर समुदाय के गिने चुने बच्चे ही पड़ते हैं जबकि अधिकांश दलितों के बच्चे यहां पड़ते हैं।
गांव की अधिकांश खेती वाली जमीन ठाकुरों के पास है लेकिन 25-35 दलित परिवारों के पास भी जमीन है। दलित प्रधान जो कि 5 भाई है के पास भी तकरीबन 60 बीघा जमीन है।
गांव में ठाकुर बिरादरी के बीच भाजपा के लोगों का आना जाना है। जबकि दलित समुदाय बसपा से सटा हुआ है। गांव का प्रधान दलित समुदाय से शिव कुमार है जो कि बसपा से भी जुड़े हुए हैं। इस क्षेत्र के गांव मिर्जापुर के दलित सत्यपाल सिंह ने बताया कि वह खुद आरएसएस(संघ) से लंबे समय से जुड़े हुए है शिमलाना, महेशपुर व शब्बीरपुर गांव में भी संघ की शाखाएं लगती हैं हालांकि इनमें दलितों की संख्या 6-7 के लगभग है और इस गांव से कोई भी दलित शाखाओं में नहीं जाता है।
घटना व घटना की तात्कालिक पृष्ठभूमि
5 मई को दलित समुदाय को निशाना बनाने से कुछ वक्त पहले कुछ ऐसी बातें हुई थी जिसने दलितों को सबक सिखाने की सोच और मज़बूत होते चले गई । 14 अप्रेल को अम्बेडकर दिवस के मौके पर गांव के दलित अपने रविदास मंदिर के बाहर परिसर में अम्बेडकर की मूर्ती लगाना चाह रहे थे । लेकिंन गांव के ठाकुर समुदाय के लोगों ने इस पर आपत्ति की।प्रशासन ने मूर्ति लगाने की अनुमति दलितों को नहीं दी । मूर्ति लगाने के दौरान पुलिस प्रशासन को गांव के ठाकुर लोगों ने बुलाया। पुलिस मौके पर पहुँची मूर्ति नही लगाने दी गई । दलितों से कहा गया कि वो प्रशासन की अनुमति का इंतजार करें। जो कि नहीं मिली।
5 मई को इस गांव के पास शिमलाना में ठाकुर समुदाय के लोग "महाराणा प्रताप जयंती" को मनाने के लिए एकजुट हुए थे। इनकी तादात हज़ारों में बताई गई है। इसमे शब्बीरपुर गांव के ठाकुर भी थे। ये सभी सर पे राजपूत स्टाइल का साफा पहने हुए थे, हाथों में तलवार थामे हुए थे व डंडे लिए हुवे थे।
5 मई को सुबह लगभग 10:30 बजे गांव के ठाकुर समुदाय के कुछ युवक बाइक में दलित समुदाय की ओर से जाने वाले रास्ते पर से डी जे बजाते हुए आगे बढ़ रहे थे। इस पर दलितों ने आपत्ति जताई । क्योंकि प्रशासन से इनकी अनुमति नहीं थी । इसका दलितों ने विरोध किया लेकिन इस पर भी मामला नही रुका तो दलित प्रधान ने पुलिस प्रशासन को सूचित किया। पुलिस आई और डी जे को हटा दिया गया। दलित समुदाय के लोगों ने आगे बताया कि इसके बाद ये बाइक में रास्ते से गुजरते हुए " अम्बेडकर मुर्दाबाद", "राजपुताना जिंदाबाद" महाराणा प्रताप जिंदाबाद" के नारे लगाते हुए आगे बढ़ने लगे। वह रास्ते से 2-3 बार गुजरे। इन दौरान फिर पुलिस भी आई।
ठाकुर समुदाय के लोगों का कहना था कि इन दौरान दलित प्रधान ने रास्ते से गुजर रहे इन लोगों पर पथराव किया। जबकि दलित समुदाय के लोग इससे इनकार करते हैं। हो सकता है दलितों की ओर से कुछ पथराव हुआ हो। क्योंकि इसी दौरान ठाकुर समुदाय के लोग महाराण प्रताप जिन्दाबाद का नारा लगाते हुए रविदास मंदिर पर हमला करने की ओर बढ़े।
लगभग 11 बजे के आस पास रविदास मंदिर पर हमला बोला गया। दूसरे गांव से आये एक ठाकुर युवक ने रविदास की मूर्ति तोड़ दी नीचे गिरा दी । दलितों ने बताया कि इस पर पेशाब भी की गई। और यह युवक जैसे ही मंदिर के अंदर से बाहर परिसर की ओर निकला वह जमीन पर गिर गया। और उसकी मृत्यु हो गई । इसकी हत्या का आरोप दलितों पर लगाया गया। इण्डियन एक्सप्रेस के मुताबिक पोस्टमार्टम में मृत्यु की वजह ( suffocation) दम घुटना है।
तुरंत ही दलितों द्वारा ठाकुर युवक की हत्या की खबर आग की तरह फैलाई गई । और फिर शिमलाना में महाराण प्रयाप जयंती से जुड़े सैकड़ो लोग तुरंत ही गांव में घुस आए। इसके बाद तांडव रचा गया। तलवार, डंडे से लैस इन लोगों ने दलितों पर हमला बोल दिया। थिनर की मदद से घरों को आग के हवाले कर दिया गया। लगभग 55 घर जले । 12 दलित घायल हुए इसमें से एक गंभीर हालत में है। गाय, भैस व अन्य जानवरों को भी निशाना बनाया गया।इस तबाही के निशान हर जगह दिख रहे थे। यहां से थोड़ी दूर महेशपुर में सड़क के किनारे दलितों के 10 खोखे आग के हवाले कर दिए गए। यह सब चुन चुन कर किया गया।
घायलों में 5 महिलाएं है जबकि 7 पुरुष। गांव के दलित प्रधान का बेटा गंभीर हालत में देहरादून जौलीग्रांट में भर्ती है। तलवार व लाठी डंडे के घाव इनके सिर हाथ पैर पर बने हुए हैं। रीना नाम की महिला के शरीर पर बहुत घाव व चोट है। इस महिला के मुताबिक इसकी छाती को भी काटने व उसे आग में डालने की कोशिश हुई। वह किसी तरह बच पायी।
शासन , पुलिस प्रशासन व मीडिया की भूमिका
सरकार व पुलिस प्रशासन की भूमिका संदेहास्पद है व उपेक्षापूर्ण है। यह आरोप है कि घटनास्थल पर हमले के दौरान मौजूद पुलिस हमलावरों का साथ देने लगी व कुछ दलितों के साथ इस दौरान मारपीट भी पुलिस ने की । संदेह की जमीन यहीं से बन जाती है कि जब संघ व भाजपा के लोग अम्बेडकर को हड़पने पर लगे है तब दलितों को उन्हीं के रविदास मंदिर परिसर में अम्बेडकर की प्रतिमा लगाने से रोक दिया गया व प्रशासन ने इसकी अनुमति ही नहीं दी।
दलितों पर कातिलाना हमले के बाद भी सरकार व मुख्यमंत्री के ओर से दलितों के पक्ष में कोई प्रयास नहीं हुए जिससे कि उन्हें महसूस होता कि उनके साथ न्याय हुआ हो। इसके बजाय मामला और ज्यादा भड़काने वाला हुआ । एक ओर पुलिस प्रशासन ने पीड़ितों व हमलवारों को बराबर की श्रेणी में रखा और हमलावर ठाकुर समुदाय के लोगों के साथ साथ दलितों पर भी मुकदमे दर्ज किए दिए गए । 8 मई तक मात्र 17 लोग ही गिरफ्तार किए गए इसमें लगभग 7 दलित समुदाय के थे जबकि 10 ठाकुर समुदाय के। जबकि दूसरी ओर ठाकुर समुदाय से मृतक परिवार के लोगों को मुआवजा देने की खबर आई व मेरठ में मुख्य मंत्री योगी द्वारा अम्बेडकर की मुर्ती पर माल्यार्पण न करने की खबर भी फैलने लगी।
घायल लोगों के कोई बयान पुलिस ने 8 मई तक अस्पताल में नहीं लिए थे। घायल लोगों के कपड़े घटना वाले दिन के ही पहने हुए हैं जो कि खून लगे हुए थे। ये पूरे शासन प्रशासन की संवेदनहीनता को दिखाता है।
इस दौरान गांव में डी एम ने एक बार दौरा किया व कुछ परिवारों को राशन दिया। लेकिन लोगो की जरूरत और ज्यादा की थी उन्हें छत के रूप में तिरपाल की भी जरूरत थी। लेकिन शासन प्रशासन ने फिर मदद को कोई क़दम नहीं उठाया। बाहर से जो लोग मदद पहुंचा रहे थे उन्हें भी प्रशासन ने रोक दिया।
लखनऊ से गृह सचिव व डी जी पी स्थिति का जायजा लेंने पहुंचे तो वे केवल अधिकारियों से वार्ता करके चले गए गांव जाना व वंहा दलितों से मिलने का काम इन्होंने नहीं किया।
बात यही नही रुकी। दलितों ने भेद भाव पूर्ण व्यवहार के विरोध में तथा मुआवजे के लिए एकजुट होने की कोशिश को भी रोका गया। दलित छात्रावास में रात को ही पीएसी तैनात कर दी गई। और जब गांधी पार्क से एकजुट दलित लोगों ने जुलूस निकालने की कोशिश की तो उस पर लाठीचार्ज कर दिया गया।
मीडिया ने इस कातिलाना हमले को दो समुदाय के टकराव(clash) के रूप में प्रस्तुत किया। हमलावरों व हमले के शिकार लोगों को एक ही केटेगरी में रखा गया। इसका नतीजा ये रहा कि दलितों में पुलिस प्रशासन व मीडिया के प्रति अविश्वास व नफरत बढ़ते गया।
शबीरपुर घटना की दीर्घकालिक वजह
सहारनपुर में दलितों की आर्थिक व राजनीतिक स्थिति तुलनात्मक तौर ठीक है और यह तुलनात्मक तौर पर मुखर भी है । आरक्षण के चलते थोड़ा बहुत सम्पन्नता दलितों में आई है अपने अधिकारों के प्रति सजग भी हुए है। लेकिन इन बदलाव को सवर्ण समुदाय विशेषकर ठाकुर समुदाय के लोग अपनी सामंती मानसिकता के चलते सह नहीं पाते। उन्हें यह बात नफरत से भर देती है कि कल तक जिन्हें वे जब तब रौंदते रहते थे आज वही उन्हें आँख दिखाते है ।
जब से एस सी एस टी एक्ट बना हुआ है इस मुकदमे के डर से ठाकुर समुदाय के लोगों को जबरन खुद को नियंत्रित करना पड़ता है कभी कभी तो जेल भी जाना पड़ता है। ये बात इन्हें नफरत से भर देती है।ठाकुर समुदाय के लोग महसूस करते है कि बसपा की सरकार थी तो बस इन दलितों का ही राज था। अभी बसपा की सरकार होती तो सारे ठाकुर अंदर होते, भाजापा के होने केवल 10-12 लोग ही अरेस्ट हुए। दलित व ठाकुरों के बीच के अंतर्विरोध अलग अलग वक्त पर झगड़ो के रूप में दिखते हैं।
चूंकी संघ ने निरंतर ही अपनी नफरत भरी जातिवादी विचारो का बीज इस इलाके में भी बोया है। सवर्ण समुदाय इससे ग्रसित है। वह आरक्षण व सामाजिक समानता का विरोधी है। इसलिए यह अंतर्विरोध और तीखा हुआ है। संघ मुस्लिमों के विरोध में सभी हिंदुओं को लामबंद करने की कोशिश कर रहा है अपने फास्सिट आंदोलन को मजबूत कर रहा है । शब्बीरपुर घटना उसके लिए फायदेमंद नहीं है।
चुकी शब्बीरपुर गांव में ठाकुरों के वोटर दलितों से दुगुने होने के बावजूद ठाकुर अपना प्रधान नहीं बना पाए। एक बार रिजर्ब सीट होने के चलते तो दूसरी दफा सामान्य सीट होने के के बावजूद।
जब ठाकुर समुदाय के लोगों से यह पूछा गया कि ऐसा कैसे हुआ ? तो उन्होंने जवाब दिया कि सारे चमार, तेली कश्यप एक हो गए हम ठाकुर एक नही हो पाए ज्यादा ठाकुर चुनाव में खड़े हो गए, वोट बंट गए और हार गए। इसका बहुत अफसोस इन्हें हो रहा था।
इसके अलावा दलितों के पास जमीन होना भी ठाकुर लोगों के कूड़न व चिढ़ को उनके चेहरे व बातों में दिखा रहा रहा था। ठाकुर लोगों से जब पूछा गया कि गांव में सबसे ज्यादा जमीन किसके पास है ? तो जवाब मिला - सबके पास है दलितों के पास भी बहुत है प्रधान के पास 100 बीघा है उसका भटटा भी है पटवारी भी दलित है जितना मर्जी उतनी जमीन पैसे खाकर दिखा देता है।
ठाकुर परिवार की महिलाएं बोली - हमारी तो इज्जत है हम घर से बाहर नही जा सकती, इनकी(दलित महिलाएं) क्या इज्जत, सब ट्रैक्टर मैं बैठकर शहर जाती है पैसे लाती है। ठाकुर लोग फिर आगे बोले-इनके ( दलितों) के तो 5-5 लोग एक घर से कमाते है 600 रुपये मज़दूरी मिलती है हमारी तो बस किसानी है हम तो परेशान हैं आमदनी ही नहीं है।
यही वो अंतर्विरोध थे जो लगातार भीतर ही भीतर बढ़ रहे थे दलितों को सबक सिखाने की मंशा लगातार ही बढ़ रही थी। और फिर 5 मई को डी जे के जरिये व फिर नारेबाजी करके मामला दलितों पर बर्बर कातिलाना हमले तक पहुंचा दिया गया। इसमें कम से कम स्थानीय स्तर के भाजपा , संघ व पुलिस प्रशासन की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।
5 मई को शिमलाना में महाराणा प्रताप जयंती का आयोजन किया गया । जिसमें हजारों लोग गांव में इकट्ठे हुवे थे। ऐसा कार्यक्रम सहारनपुर के गांव में पहली दफा हुआ। जबकि इससे पहले यह जिला मुख्यालय पर हुआ है।
दलित समाज की प्रतिकिया व शासन प्रशासन
जैसा कि स्पष्ट है विशेष तौर पर पुलिस प्रशासन के प्रति इनमें गहरा आक्रोश था। जब 9 तारीख को दोपहर में गांधी पार्क पर लाठी चार्ज किया गया तो शाम अंधेरा होते होते यह पुलिस प्रशासन से मुठभेड़ करते हुए दिखा। इनकी मांग थी - हमलावर ठाकुर समुदाय के लोगो को 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार करो।
सहारनपुर के रामनगर,नाजीरपुरा,चिलकाना व मानकमऊ में सड़कें ब्लॉक कर दी गई । यह दलित समुदाय के युवाओं के एक संगठन 'भीम आर्मी' ने किया। लाठी डंडो से लैस इन युवाओं को पुलिस प्रशासन ने जब फिर खदेड़ने की कोशिश की तो फिर पुलिस को टारगेट करते हुए हमला बोल दिया गया।पुलिस थाने में आग लगा दी गई । पुलिस की कुछ गाड़िया जला दी गई ।पुलिस का जो भी आदमी हाथ आया उसे दौड़ा दौड़ा कर पिटा गया। अधिकारियों को भी इस आक्रोश को देख डर कर भागना पड़ा। एक दो पत्रकारों को भी पीटा गया व बाइक जला दी। एक बस से यात्रियों को बाहर कर बस में आग लगा दी गई।
इस आक्रोश से योगी सरकार के माथे पर कुछ लकीरें उभर आई। तुरंत ही अपनी नाकामयाबी का ठीकरा दो एस पी पर डालकर उन्हें हटा दिया गया। और अब वह "कानून का राज" कायम करने के नाम पर दलित युवाओं से बनी भीम आर्मी पर हमलावर हो गई है। अस्पताल से लेकर छात्रावास व गांव तक हर जगह इनको चिन्हित कर तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। जबकि ठाकुर समुदाय के तलवार के बल पर खौफ व दहशत का माहौल पैदा करने वाले महाराण प्रताप जयंती वाली सेना को सर आंखों पर बिठा कर रखा जाता है। उनके खिलाफ ऐसी कोई कार्यवाही सुनने या देखने पढ़ने को नही मिली।साफ महसूस हो रहा है कि पुलिस प्रशासन अब पुलिस कर्मियों पर हमला करने वाले दलित समुदाय के लोगों को सबक सिखाने की ओर अपने कदम बढ़ा चुका है।
कुल मिलाकर शासन -प्रशासन व राज्य सरकार का रुख दलितों के प्रति भेदभावपूर्ण, उपेक्षापूर्ण , दमनकारी व सबक सिखाने का बना हुआ है। इसलिये आने वाले वक्त में यह समस्या और गहराएगी। वैसे भी जब जातिवादी , साम्प्रदायिक व फासिस्ट विचारों से लैस पार्टी सत्ता में बैठी हुई हो तो इससे अलग व बेहतर की उम्मीद करना मूर्खता है।