May 31, 2017

मोदी के पास बर्लिन में प्रियंका से मिलने का वक्त है लेकिन नंगे-भूखे देश के किसानों से नहीं

जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुंचे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बॉलीवुड की अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा से मिले। उन्होंने प्रियंका के साथ काफी देर बातचीत की।
अभिनेत्री प्रियंका से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात काफी चर्चा में आ गई। सोशल मीडिया पर तमाम लोग पीएम मोदी पर सवाल उठाने लगे।
लोगों ने कहा कि, पीएम मोदी को देश के भूखे-नंगे औऱ मल-मूत्र पी रहे अऩ्नदाता किसान से मिलने का समय नहीं है लेकिन प्रियंका चोपड़ा से काफी देर मिल रहे हैं। देश के अन्नदाता जन्तर-मन्तर पर कई दिनों तक प्रधानमंत्री से मिलने का वक्त मांगते रहे लेकिन वह किसान नंगे हो उन किसानों ने अपना मूत्र पी लिया लेकिन प्रधानमंत्री फिर भी नहीं मिले। वहीं बर्लिन पहुंचकर प्रियंका चोपड़ा से मिलने का समय निकाल रहे हैं।
तमिलनाडु के किसान कई महीनों तक दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर बैठे रहे थे। वह प्रधानमंत्री से मिलने का वक्त मांगते रहे जिसके लिए उन्होंने एक दिन नंगे होकर संसद के करीब प्रदर्शन किया। इसके बाद अपना मूत्र पीकर प्रदर्शन किया। फिर पीएम मोदी ने मिलने का समय नहीं दिया था।


इसे कहते है नसीब... वो भी रजनीगंधा वाला

प्रियंका चोपड़ा ने क्या नसीब पाया है। वे बर्लिन घूम रही थीं कि आज अचानक नरेंद्र मोदी भी बर्लिन आ गए। फ़ेसबुक पर लिखती हैं कि मोदी जी ने सुबह-सुबह बुला लिया। बढ़िया गपशप हुई।
बेचारे भारत के किसान। नसीब ही ख़राब है जी। नरेंद्र मोदी इसमें क्या कर सकते हैं?

प्रियंका चोपड़ा लाइफबॉय से नहाती है। शैंपू के पाउच से सिर धोती है। पावडर लगाती है। इसलिए मोदी जी बुलाकर उनसे मिलते हैं।
किसान ये सब नहीं करते। पसीने की बदबू आती है। सिर गंदा है। काँख गीली है।
सारे मर जाएँ, तो भी मुलाक़ात मुमकिन नहीं।

अगर आप भी घड़ी साबुन से कपड़े धोएँगे और लाइफबॉय से रगड़-रगड़ कर नहाएँगे तो आप भी प्रियंका चोपड़ा की तरह मोदी और योगी से मिल सकते हैं।


- दिलीप मंडल


भारतीयो की पुरुषवादी मानसीकता का जीता जागता उदाहरण

प्रियंका चोपड़ा ने बर्लिन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात की थी. इस मुलाकात के दौरान पहने कपडो और बैठने के तरीको को लेकर कुछ स्वधोषीत राष्ट्रवादी लोगो ने सोशल मीडिया पर "शालीनता से" कपड़े न पहनने और अपमानजनक आसन में बैठने के लिए सोशल मीडिया पर प्रियंका की जम कर खींचाई करनी शुरु कर दी.


अभिनेत्री  प्रियंका चोपड़ा ने बर्लिन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और फेसबुक पर "lovely coincidence" के बारे में पोस्ट किया. उन्होंने प्रधान मंत्री को अपनी पैक अनुसूची से समय निकालने और उससे मुलाकात के लिए धन्यवाद दिया, लेकिन मोदी साहब के कुछ फैन्स को इस मुलाकात मे प्रियंका ने पहने कपडे और बैठने का ढंग मोदीजी के स्वभाव और रुतबे से विपरीत लगा. उन्हो ने तुरंत प्रीयंका को ट्रोल करना शुरु कर दीया.

प्रधान मंत्री मोदी के साथ की तस्वीर फेसबुक पर पोस्ट करने के बाद, सोशल मीडिया मे रहे मोदी भक्तो ने बहोत आडे हाथ लीया प्रीयंका को. उन्होंने प्रियंका चोपड़ा को अपने पैरों को लपेटने और 'सभ्य कपड़े' पहनने की नसीहत से लेकर संस्कारो तक कमेंट दे दी.

कई फेसबुक यूजर्स ने प्रीयंका के उपर अपनी ऐतीहासीक संस्कृती को भूल जाने का आरोप भी लगा दीया, कुछ का कहना थी की वह एक शुध्ध भारतीय प्रधान मंत्री के सामने "पश्चिमी पोशाक" पहनती थीं. हांलाकी आप को बता दु मोदी साहब जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल से मुलाकात के दौरान खादी कुर्ता पायजामा नहीं पहने थे. सुट बुट मे ही थे.

मोदी चाहको ने उसे सलाह दी कि वह अपने पैरों को कवर करे, या तो एक सलवार कमीज या साड़ी पहनें, और सिर्फ 'शालीनता से' कपड़े पहने रहें, क्योंकि वह एकमात्र तरीका है कि वह प्रधान मंत्री के प्रति सम्मान व्यक्त करने का. ऐसे ऐसे हास्यास्पद कमेंट कीये थे भक्तो ने की हम सच मे उन की समजदारी को जज न कर पाये.

प्रीयंका चोपरा की फेसबूक पोस्ट पर से कुछ कमेंट्स :-











Priyanka's Facebook Post : -


(संपादन - विशाल सोनारा)

कटार जैसी काटने वाली कहानी, जो समझेगा, वो दर्द महसूस करेगा

'जल्दी चलो...गांव की इज्जत खतरे में है.  
हिम्मत देखो उस कमीने की.. छोटी जाति का होकर बैंड-बाजा बजाएगा! 
बैंड बजाकर चार पैसे कमाता था लेकिन नहीं... देखो इसे तो चर्बी चढ़ गई.
बकुल काका 25 सालों से ‘छबीली बैंड पार्टी’ में बैंड बजाकर अपने परिवार का पेट पाला करते थे. शादियों के मौसम में घर में बहार रहती और शादियों का मौसम जाते ही घर में दाने-दाने को तिजोरी में बंद करके रखने-सी नौबत आ जाती थी. 
परिवार के नाम पर उनकी 18 साल की बेटी और बीमार पत्नी थी. बकुल काका की बेटी बचपन से अपने पिता को लाल रंग का बदरंग होता कुर्ता पहनकर बैंड बजाते हुए देखा करती थी. कभी-कभी बकुल काका उसे अपने साथ ले जाते थे. उसे बचपन से दुल्हन को देखने का बहुत शौक था. वक्त बीता और एक रोज वो घड़ी आ ही गई, जब बकुल काका की बेटी की शादी तय हो गई. शादी के एक दिन पहले बेटी अपने पिता से पूछ बैठी ‘बाबा आप मेरी शादी में भी बैंड बजाएंगे?’
बकुल काका बेटी के सवाल पर मुस्कुरा दिए और अपने बदरंग लाल कुर्ते पर हाथ फेरने लगे. उस रात बेटी तो सो गई लेकिन बकुल काका की आंखों में नींद नहीं थी. 
'भला मैं छोटी जात का आदमी अपने घर के उत्सव में बैंड कैसे बजा सकता हूं? लोग, समाज और गांव वाले क्या कहेंगे? जीना हराम हो जाएगा मेरा! मैं रोजी-रोटी कमाने के लिए बड़े लोगों के घर बैंड बजाता हूं...लेकिन अपने यहां!'
रात इसी उधेड़बुन में कट गई. फिर मन में एक ख्याल कौंधा. ‘आज तक बेटी को दिया ही क्या है? बैंड-बाजा बजाना ही मेरी कला है और यही मेरी रोजी-रोटी. मैं अपनी कला बेटी के नाम करता हूं यही उसे मेरा तोहफा है.’
उस रात बकुल काका ने अपनी दुल्हन बेटी को नजर भर के देखा. उनकी आंखों से आसूं झलक रहे थे. तभी एक चमत्कार हुआ. जाति के भेद को भेदते हुए बैंड ने समां बांध दिया. बेटी मग्न होकर झूम उठी. काका की बीमार पत्नी बिस्तर पर बैठी-बैठी ही तालियों की थाप दे रही थी.
इतने में गांव के मुट्ठी भर लोग मंडप में आ धमके और बकुल काका की हिम्मत को बुरी तरह रौंद डाला. खाने-पीने का सारा सामान आग के हवाले करते हुए बारातियों से खूब हाथापाई हुई. चारों तरफ गालियों, उपहास और लानतों की विषैली बौछार हो रही थी. बकुल काका इतना सब होने पर भी अपनी बात पर अड़े रहे और बैंड बजाने के लिए माफी मांगने को तैयार नहीं थे. अचानक चौधरी के बेटे का खून उबल पड़ा और उसने बकुल काका के सीने पर बंदूक तान दी. बकुल काका सीना तानकर खड़े रहे.
काका की आंखों में डर को ना देखकर चौधरी का बेटा बौखला गया. उसने दांत पीसते हुए बकुल काका पर गोली चला दी, अगले ही पल जमीन पर धम्म से किसी के गिरने की आवाज हुई. बकुल काका सही-सलामत खड़े थे लेकिन उनकी बीमार पत्नी ने उनकी बला अपने सिर ले ली थी. इतने सालों से जो औरत बिस्तर से सही से खड़ी भी नहीं हो पाती थी, वो अपने पति को मुश्किल में देखकर चीते की फुर्ती से उठ खड़ी हुई थी, लेकिन बस चंद पलों के लिए.
शादी का माहौल कुछ ही घंटों में सदमे-शोक में बदल चुका था. दबंग लोग अपनी चौड़ी छाती और तनी हुई मूंछे लेकर वापस जा चुके थे.
बकुल काका और उनकी बेटी पूरी रात यूं ही बैठे रहे.
अगली सुबह गांव भर में एक बार फिर से बकुल काका की झोपड़ी से बाजे और डफली की आवाज आ रही थी. चौधरी और गांव के दूसरे दबंग लाठी, बंदूक, भाले लेकर बकुल काका की झोपड़ी की तरफ दौड़ पड़े.
पूरा गांव बकुल काका के घर के सामने उमड़ पड़ा. वहां का नजारा देखकर सब सन्न थे.
काका बैंड को अपनी पूरी जान लगाकर बजा रहे थे. उनकी आंखों से आसूं झरझर बह रहे थे. उनकी बेटी मेंहदी लगे हाथों से डफली पर थाप दे रही थी. सामने सफेद कपड़े में लिपटी पत्नी की लाश पड़ी थी. 
मातम ने एक ऐसे उत्सव का रूप ले लिया था, जहां शहीद पत्नी को एक पति अंतिम विदाई दे रहा था. बाजे, डफली इंसान बनकर समाज पर हंस रहे थे और वहां खड़े मूंछों वाले लोग अपाहिज हो चुके थे, दिमागी अपाहिज.
(ये कहानी मध्यप्रदेश के माणा गांव में हुई एक सच्ची घटना से प्रेरित है)
साभार- प्रतिमा जायसवाल

May 29, 2017

અસ્પૃશ્યતા નિવારણ અને અસ્પૃશ્યોના અધિકાર બાબતે સમાચારપત્રોની ભુમિકા કેટલી..???



મારો જવાબ છે... મહા શૂન્ય.

ભારતમાં અંગ્રેજોએ સત્તા પ્રાપ્ત કરી ત્યારે ગુજરાતનો હિન્દુ સમાજ વિવિધ સંપ્રદાય, જૂથ, જાતિઓમાં વિભાજીત હતો. વણઁવ્યવસ્થા મુજબ ઉચ્ચનીચના વાડાઓમાં વહેંચાયેલ હતો. તેનું કડકાઈથી પાલન પણ કરવામાં આવતું હતુ.
19 મી સદીમાં અવાઁચીન કેળવણીનો ફેલાવો થતો ગયો તેમ તેમ ભણેલા વગોઁના લોકોમાં એક એવો વગઁ પેદા થયો જે સુધારાવાદી કે સુધારક તરીકે ઓળખાયો. અહીં કેટલીક ભિન્નતાઓ જોવા મળી. કેટલાક સુધારાવાદીઓએ અંગ્રેજો દ્વારા સ્થાપિત વહીવટી, શૈક્ષણિક સંસ્થાઓનો સૌથી વધુ ફાયદો ઉઠાવ્યો અને સામાજિક અનિષ્ટો બાબતે ઝુંબેશ આદરી. બીજી તરફ કેટલાક સુધારાવાદીઓએ પોતાની જાતિઓના ઉત્કષઁને જ પ્રોત્સાહન આપ્યું. પરિણામ સ્વરૂપ આ જાતિઓ કેળવણીની બાબતમાં અતિ સમૃધ્ધ બનતી ગઈ. સરકારી નોકરીઓ અને વ્યવસાયોમાં વધુને વધુ લાભ લેતી ગઈ.
હવે ખરો દંભ અને પુવઁગ્રહ અહીં જોવા મળ્યો. ગુજરાતના સામાજિક પરિવતઁનનું એક દંભી પાસુ એવું હતુ કે એક તરફ મધ્યમવગીઁય લોકો શાળાઓ, હોસ્પિટલો અને જાહેર સેવાઓનો લાભ લેવા માંગતા હતા તે માટે કેટલાક કાયઁક્રમો પણ કરી રહ્યા હતા.. પરંતુ અસ્પૃશ્યોને આ લાભ લેવા બાબતે ભયંકર વિરોધ કરી રહ્યા હતા.
ડિસેમ્બર 1968 ભરૂચમાં એક વ્યાપારિક પ્રદશઁન યોજાયેલ. તેમાં કેટલાક અંગ્રેજ અધિકારીઓ તથા વ્યાપારીઓ હાજર રહેલા. તેમાં ગુજરાત, સૌરાષ્ટ્રના દેશી વ્યાપારીઓ પણ હતા. આ પ્રદઁશનમાં અંગ્રેજ વ્યાપારીઓએ દેશી વ્યાપારીઓ તરફે આભડછેટ ભયુઁ વતઁન દાખવેલુ, ત્યારે આ દેશી ભારતીય, ગુજરાતી વ્યાપારીઓએ પ્રદઁશન મંડપની બહાર અંગ્રેજોની રંગભેદની નિતિ વિરૂધ્ધ જબરજસ્ત ધમાલ મચાવેલી. ગુજરાતના તમામ સમાચારપત્રોએ આ વ્યાપારીઓની આ ઝુંબેશમાં જોડાયા હતા અને સમથઁન આપીને રંગભેદની નિતી વિરૂધ્ધ ખુબ જ કાગારોળ મચાવી હતી. 


મુદ્દાની વાત હવે આવે છે.. રંગભેદની નિતીનો વિરોધ કરી અંગ્રેજો સામે કાગારોળ મચાવનારા આ સમાચારપત્રો 1863 થી 1985 દરમિયાન સવણઁ હિન્દુઓ સાથે અસ્પૃશ્યો આગગાડીમાં પ્રવાસ ન કરે તે માટે અખબારી ચળવળ ચલાવી હતી.
(સોસઁ: કપરાં ચઢાણ- લેખક- યોગેન્દ્ર મકવાણા પાનનં-57-58)
- જિગર શ્યામલન




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आपका स्वार्थी गर्व और हमारा मानवतावादी गर्व : मनीश कुमार "मानस"

हमे अपने जाति और संस्कृति पर गर्व करने का अधिकार है ! हमारे पूर्वजों ने भारत को श्रमण संस्कृति का बेजोड़ तोहफा दिया ! 
हमारे पूर्वजों ने दुनिया को बौद्ध धम्म, जैन धर्म जैसे विज्ञानवादी विचार दिया !
हमारे वंशज बुद्ध और महावीर हुए, जिन्होने दुनिया को शांति, अहिंसा, करुणा, मैत्री और भाईचारा का पाठ पढ़ाया !
हमारे वंश मे सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, सम्राट कनिष्क, हर्ष वर्धन जैसे न्याय प्रिय शासक हुए, जिनकी शासन पद्धति लोकतंत्र पर आधारित थी !
भारत के समस्त दिशाओ मे शांति और सुख व्याप्त था !
तुम्हे अपने जाति और धर्म पर गर्व करने का कोई अधिकार नही ! तुम्हारे ब्राह्मणी संस्कृति ने देश को वर्ण व्यवस्था और जातिवादी प्रणाली के नरक मे धकेल दिया, सम्पूर्ण भारत को हजारों जाति मे बाँट दिया ! यहाँ तक अपने स्वार्थ के लिए तुम्हारे पंडितों ने भारत को अंधविश्वास मे फँसाया ! भारत मे विदेशी आक्रमणकारिओँ को बुलाकर गुलाम बनवाया ! मनुस्मृति लागू करवाकर मनुष्य को जानवर बनाकर रख दिया ! तुम्हारा इतिहास हार और विनाश के अतिरिक्त कुछ नही ! फिर किस बात का गर्व करते हो आर्य विदेशी !
- मनीश कुमार "मानस"




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EVM मुद्दा भटकाने के लिए ...

  • दिल्ली में कपिल मिश्रा, 
  • बिहार में लालू के घर पर छापे, 
  • यूपी में सहारनपुर में आगजनी, दंगा, मारकाट करवाई गयी, हमे डर है की पुरे देश मे इस तरह की वारदात ना हो. क्योंकी ये ध्यान भटकाने का एक बहोत ही प्रभावशाली हथीयार हो सकता है.
  • साथियों जब सारी विपक्षी पार्टी evm से चुनाव नही चाहती है  ???? चुनाव आयोग क्यो सफाई पे सफाई दिए जा रहा है 
  • क्या चुनाव आयोग एक तानाशाह शासक की भूमिका अदा कर रहा है??
  • चुनाव आयोग लोकतंत्र की हत्या करवा रहा है???
  • चुनाव आयोग BJP और EVM के दलाल की भूमिका मे है???
  • वोट हमारा देश हमारा जनतंत्रत देश के है हम लोग तब भी मनुवादी पार्टी evm और चुनाव आयोग के सहारे से हम लोगों को फिर से गुलाम बना लिया???
  • ऐसा प्रतीत होता हैं कि गुजरात मे पिछले 15 वर्ष से बीजेपी evm के सहारे ही शासन कर रही है.
  • यही नही लोकसभा चुनाव 2014 में भी बीजेपी evm के सहारे सत्ता में आयी.
  • जब सुप्रीम कोर्ट 2014 में ही आदेश दिए थे कि vvpat वाली ही evm युज करना है .
  • तब भी चुनाव आयोग ने जान बूझ कर बीजेपी की पांच राज्यो में सरकार बनाने में मदद किया.
  • अब चुनाव आयोग क्यो vvpad की बात कर रहा है अब तो ऐसा प्रतीत हो रहा है vvpat वाली evm में भी सेटिंग हो गई है.
  • आज हमारे समाज को evm, चुनाव आयोग , मनुवादी मीडिया, और मनुवादियो   के अत्याचार के खिलाफ संघर्ष करना पड़ेगा.
  •  साथियों चुनाव आयोग के खिलाफ भी हम बहुजनो को संघर्ष करना पड़ेगा
  • अगर सारी विरोधी पार्टी का चुनाव आयोग नही बात मान रहा है तो दाल में सब कुछ काला है
  •  अगर लोकतंत्र को बचना है बहुजनो का शासन लाना है तो वैलेट पेपर के चुनाव के लिए संघर्ष करना पड़ेगा




बाबा की मानते हो आज ये दीन ना देखना पडता

सेफगार्ड, प्रिविलेज मिला है. संविधान सभा में आदिवासियों के रिप्रजेंटशन के लिए उस समय जयपाल सिंह मुंडा भी थे. उस समय की एक  माइनर भूल की तरफ ध्यान देते है की उस समय की मायनोर भुल का खामीयाजा कैसा होत है. बाबासाहब का इतना बडा योगदान है भारत के संविधान मे उसे तो कोइ नजर अंदाज़ नही कर सकता .
जैसे उस समय जयपाल सिंह आदिवासी के रिप्रजेंट थे, वैसे ही डीटी एनटी के रामजी भनावत थे पर रामजी भनावत को बाबासाहब के साथ आना गंवारा नहीं था यहां तक की बाबासाहब ने उनको ओफर की थी की आप केवल मौजूद रहे दोनो राउंड टेबल कान्फरेंस मे बाकिका मै देख लूंगा...!!! भटके-विमुक्तो की समस्याओं का हल बाबा साहब बखुबी जानते थे पर वह उनका कोइ प्रतीनीधी इस बात की फेवर करे ऐसा चाहते थे. क्योकी बाबा साहब उन तबको से नही आते थे तो वह बोल भी कैसे पाते उन तबको के लीये. हा अगर उन्होने साथे लीया होता बाबा साहब का तो आज उनके दीन कुछ और होते. पर वो नही आये...
और उसी तरह मुस्लिमों के लिए के लिए बाबासाहब ने मौलाना अब्दुल कलाम को और एक मुस्लिम रिप्रजेंटिव को कहा की आप आये राउंड टेबल कान्फरेंस मे पर वो भी नही आये गांधी जी के चक्कर मे.
नतीजा आज आपके सामने है
1. डीटी एऩटी का हाल
2. मुस्लिमो के संविधानिक गारंटी का .



(Blue Diary Bureau)

ગૌમાંસ થી ગૌમાતા સુધી : રુશાંગ બોરીસા (With Full References)



શાકાહારને લઈને હિન્દૂ આસ્તીકોમાં આધ્યાત્મિક અભિગમ જોવા મળે છે.પોતાના ભોજનને પવિત્રતા-ધાર્મિકતા અને જીવદયા સાથે સાંકળી હિંદુઓ પોતાની સંસ્કૃતિની વાહવાહી કરતા રહે છે.વૈશ્વિકીકરણ ને કારણે હિન્દુઓનો આ પ્રચાર વિદેશીઓ ઉપર પણ અસર કરે છે.તેઓ પણ શાકાહારને લઈને ભારતીય ધર્મ-સંસ્કૃતિના વખાણ કરે છે.વળી,આ વળગણ તે હદે પ્રબળ બન્યું છે કે કહેવાતા ગૌરક્ષકોની વર્તમાન હરકતો પણ છુપી નથી.મૂળે હિંસા પાછળ પણ જીવદયાનો ઉપદેશ કારણભૂત જણાય છે.

હાવએવર..જો આપણે વેદિક સંસ્કૃતિ-બ્રાહ્મણગ્રંથોનો અભ્યાસ કરીયે તો ચોંકાવનારી હકીકતો જાણવા મળશે:-

⇝ મનુસ્મૃતિ>અધ્યાય ૫ માં કેવા પશુઓનું માંસ ખાવાલાયકને તેનું વર્ણન છે.
-મનુસ્મૃતિ>અધ્યાય-૫ >પંક્તિ ૩૦થી ૩૯





⇝ ગીતાયથારૂપમાં સ્વામી પ્રભુપદે પશુબલિ દ્વારા બ્રાહ્મણ સ્વર્ગ મેળવે છે તેવો ઈશ્વરીય આદેશ જણાવ્યો છે.

-ગીતા એસ ઈટ ઇઝ>અધ્યાય-૨.૩૧ નો સાર (પેજ નો.૧૪૨)

⇝ બ્રહ્માંડપુરાણમાં પરશુરામ દ્વારા ભરણપોષણ માટે માંસાહારની ઉચિતતા બતાવી છે.
-બ્રહ્માંડપુરાણ>પ્રથમ ખંડ> પરશુરામ અધ્યાય

⇝ રામચરિતમાનસમાં બ્રાહ્મણોને માંસ ખવડાવવું લાભકારક છે તેવો સંકેત જોવા મળે છે.
-રામચરિતમાનસ>બાલકાંડ>ચોપાઈ-૧૭૩ (ઓરીજીનલ પંક્તિ=बिबिध मृगन्ह कर आमिष राँधा। तेहि महुँ बिप्र माँसु खल साँधा।।

भोजन कहुँ सब बिप्र बोलाए। पद पखारि सादर बैठाए।। )


⇝ મહાભારતના અનુશાસનપર્વમાં દેવગુરુ બૃહસ્પતિના શિષ્ય ભીષ્મ શ્રાધ્ધવિધિમાં બલિ ચડાવાતા પશુઓનું વર્ણન કરે છે;જેમાં ગાયના માંસની બલિ શ્રેષ્ઠ દર્શાવી છે.
-મહાભારત>અનુશાસનપર્વ>અધ્યાય-૮૮
⇝ વાલ્મિકી રામાયણના ઉત્તરકાંડમાં રામને માંસાહાર કરતા બતાવ્યા છે.
Dr Ambedkar Writtings And Speeches > Vol 4 > Page 110

વાલ્મિકી રામાયણ > Uttarakand > Sarga 52 or 42

⇝ દશરથે પુત્રપ્રાપ્તિ માટે કરેલ યજ્ઞમાં બલિ ચડાવેલ ઘોડાની સાથે કૌશલ્યા રાત વિતાવે છે.વનવાસ ભોગવી રહેલા રામે ઝૂંપડીમાં પ્રવેશ કરવા વિધિના ભાગરૂપે કાળિયારની બલિ ચડાવી હતી.
- વાલ્મિકી રામાયણ>બાલકાંડ>સર્ગ-૧૩ 

⇝ ઋગ્વેદ,યજુર્વેદ અને અથર્વવેદમાં પશુબલિ અને માંસાહાર ઠેર-ઠેર જોવા મળે છે.

⇝ બ્રાહ્મણગ્રંથો-ધર્મસુત્ર અને ગૃહસૂત્રોમાં પણ પશુબલીની વિધિનું વિસ્તારમાં વર્ણન વાંચી શકાય છે.

⇝ વાલ્મિકી રામાયણમાં રામ વિદાય લેતી વખતે કૌશલ્ય આગળ દુઃખ વ્યક્ત કરે છે કે મને મહેલનું સ્વાદિષ્ટ માણસ ખાવા નહિ મળે. 
વાલ્મિકી રામાયણ>અયોડ્યાકાંડ>સર્ગ-૨૦ (Click For English Translation of the same )
⇝ વનવાસ ભોગવી રહેલા રામે ઝૂંપડીમાં પ્રવેશ કરવા વિધિના ભાગરૂપે કાળિયારની બલિ ચડાવી હતી. 
-વાલ્મિકી રામાયણ>અયોધ્યાકાંડ>સર્ગ-૫૬ (Click For English Translation of the same )
⇝ વિવેકાનંદ કહે છે કે વૈદિકકાળમાં જો કોઈ બ્રાહ્મણ ગૌમાંસ ના ખાય તો તેને બ્રાહ્મણ કહેવામાં આવતો નહીં.
-Complete Works of Swami Vivekananda >વોલ્યૂમે-૩ >પેજ.ન.:૧૪૯
બલિ ચડાવેલ પશુનો શેષ ભાગ પ્રસાદ તરીકે ભોજનમાં વપરાતો(જેમ મંદિરમાં નારિયેળ વધેરી લોકો આરોગે છે તેમ) વળી વૈદિકકાળમાં પુષ્કળ માત્રામાં બલિઓ ચડતી...તેવું લાગે કે જાણે માંસાહારની પાર્ટી માણવા માટે જ યજ્ઞો ના થતા હોય!

ગૌમાંસ અને પશુબલીને લઈને હિંદુત્વના સમર્થક- નરેન્દ્રનાથ દત્ત અને હિંદુત્વના આલોચક- ભીમરાવ આંબેડકરે પણ સ્પષ્ટ વિધાન આપ્યા હતા.વિવેકાનંદ કહે છે કે વૈદિકકાળમાં જો કોઈ બ્રાહ્મણ ગૌમાંસ ના ખાય તો તેને બ્રાહ્મણ કહેવામાં આવતો નહીં.બાબાસાહેબ કહે છે કે વેદિકયુગમાં દરરોજ બ્રાહ્મણો દ્વારા ગૌમાંસ આરોગવામાં આવતું હતું.

અહીં અટકીએ...

આટલું જાણ્યા પછી સવાલ એ રહે કે કેવી રીતે બ્રાહ્મણો-આર્યો માંસાહારથી શાકાહાર તરફ વળ્યાં? વળી,જેમના પૂર્વજોનું પ્રિય ભોજન "ગૌમાંસ" હતું...જેઓ ધર્મના નામ ઉપર પુષ્કળ પશુહિંસા આચરતા હતા તેઓ સમય જતા કટ્ટર શાકાહારી કેમના બન્યા?

શુદ્રો-વંચિતોને શદીઓથી ઇતિહાસ-શિક્ષણથી દૂર કરેલ હોવાથી આજની પેઢી પોતાના પૂર્વજો ઉપર કરેલ ષડયંત્રોથી વાકેફ નથી.પ્રાચીન હિન્દૂ સંસ્કૃતિનું શાકાહાર તરફ વળવાનો શ્રેય મહાવીર અને બુદ્ધને ફાળે જાય છે.બુદ્ધ ખરેખર તે સમયે ક્રાંતિકારી હતા.તેમણે પોતાના ઉપદેશોમાં પશુબલિનો વિરોધ કર્યો હતો.જો કે બુદ્ધ ચુસ્ત અહિંસાની તરફેણમાં નહતા.બુદ્ધે પણ ભિક્ષામાં મળેલ ગૌમાંસ ખાધું હતું.

બૌદ્ધ ઉપદેશો મુજબ મુખ્ય ૩ સ્થિતિમાં માંસાહાર કરી શકાય:
  • જો તમે મહેમાન હોવ અને યજમાન ખાતિરદારી માં માંસ આપે તો.
  • જો વૈદ્યે સારવાર માટે માંસ ખાવાની સલાહ આપી હોય તો. 
  • જો તમે એવી હાલતમાં હોવ કે ભૂખ સંતોષવા પશુની હત્યા કરાવ્યા વિના કોઈ વિકલ્પ ના હોય તો.

બુદ્ધના ઉપદેશો તર્કસંગત હોય બહુધા પ્રજાને પ્રભાવિત કરી શકતા હતા.દરમ્યાન લોકોએ વેદોને પવિત્ર માનવાનું બંધ કર્યું.લોકોને વેદિક હિંસાથી અંદરોઅંદર અસંતોષ હતો જ;જેથી બૌદ્ધકાળ દરમ્યાન ભારતવર્ષના મોટા હિસ્સાએ અતિશય બલિ-માંસાહારનો ત્યાગ કર્યો.આ પરિસ્થતિ બ્રાહ્મણો માટે મોટો પડકાર બની.આખરે પ્રજાને ખેંચવા કોઈ રસ્તો ના દેખાતા બ્રાહ્મણોએ બ્રાહ્મણવાદી હથિયાર ઉગામ્યું. તેમણે પણ બુદ્ધની વાટે પવિત્ર એવા વેદવિધાનોને બાજુ ઉપર મુક્યા અને પશુબલિ ધીરે ધીરે બંધ કરવાનું શરૂ કર્યું.બ્રાહ્મણધર્મ પણ જીવદયા તરફી છે તેવો પ્રચાર શરુ કર્યો;જેથી લોકોનો વિશ્વાસ જીતી શકાય.

આ પ્રક્રિયામાં બ્રાહ્મણોએ ગાયને વિશેષ દરજ્જો આપી માતા બનાવી.(વેદોમાં ક્યાંય ગાયને માતાનું બિરુદ મળેલ નથી.)ગાયને પવિત્ર બનાવી પોતાની સગવડી જીવદયાનો જોરશોરથી પ્રચાર કર્યો...તે તબક્કે રચાયેલા પુરાણોમાં પણ ગાયને કેન્દ્રમાં રાખી.(પુરાણ-નામમાં જ ષડયંત્ર છે)જયારે બૌદ્ધ સંસ્કૃતિમાં કોઈ પ્રાણીને વિશેષ દરજ્જો મળ્યો નહતો.પછીથી સત્તા મેળવેલ બ્રાહ્મણોએ ચુસ્ત નિયમો બનાવ્યા.જેથી ગૌમાંસ આરોગતા બુદ્ધ અનુયાયીઓ સામે ષડ્યંત્રથી જીવદયા-પશુપ્રેમી બનેલ બ્રાહ્મણો સામાન્ય પ્રજાને ભ્રમિત કરી પોતાની વર્ણવ્યવસ્થારૂપ ચંગુલમાં ફરી ફસાવી શક્યા.

ઇતિહાસના આ પ્રકરણનું ઊંડાણમાં અર્થઘટન આંબેડકરે કર્યું છે.ટૂંકમાં, હિંદુઓ પોતાની જીવદયાનો લઈને જે દેખાડો કરે છે તે સનાતમ ધર્મ નહીં; પણ બુદ્ધ-મહાવીર ને આભારી છે.

બ્રાહ્મણો આ મુદ્દે દંભી જ હતા.જો તેમનું હૃદયપરિવર્તન સહજ-આત્મસ્ફૂરણા પ્રેરિત હોત તો હું આ પોસ્ટ ના લખત.પરંતુ, વર્તમાન હિન્દુવાદીઓએ હવે રામાયણમાંથી રામ માંસ આરોગતા હતા તે ભાગ દૂર કર્યો છે.હાલમાં વેચાતા ધર્મસુત્રોમાં પણ પશુબલિના આખે આખા અધ્યાય દૂર કરી રહ્યા છે.વેદોમાં રહેલ પશુબલિ-માંસાહારની ઋચાઓ ધીરે ધીરે સિફતપૂર્વક દૂર કરાઈ રહી છે.(એક સમયે ઋગ્વેદમાં ૧૫૦૦૦ ઋચાઓ હતી;હાલ ૧૦૫૦૦ જેવી જોવા મળે છે.૪૫૦ ઋચાઓ પણ કદાચ અમાનવીય હોય ગરબડમય રીતે દૂર કરવામાં આવી હોય શકે.)હાલમાં મીડિયા પણ દેવોને શાકાહારી અને દાનવોને માંસાહારી ચિત્રે છે! એટલે કે હાલમાં પણ બ્રાહ્મણવાદી ષડયંત્ર ચાલુ જ છે. દુનિયાનો કોઈ પણ ધર્મ પોતાના જ ધર્મગ્રંથોમાં સમય જતા સગવડી ભેળસેળ નથી કરતો...પણ હિન્દુત્વ અપવાદ છે.

ફોટો: મધ્યકાલીન વિચારક કબીરદાસે પંડિત-પુજારીના દંભ ઉપર કરેલો કટાક્ષ. આ સાબિત કરે છે કે ભલે ષડયંત્ર બૌદ્ધકાળ દરમ્યાન શરૂ કર્યું હોય ;પણ મધ્યકાળ સુધી તેઓ તેનો સંપૂર્ણ અમલ કરવામાં નિષ્ફ્ળ ગયા હતા. ઉપરાંત,હાલમાં પણ છુટાછવાયા પશુબલિના કિસ્સાઓ જાણવા મળે છે.(હિન્દૂ રાષ્ટ્ર નેપાળને જ જુઓ)
- રુશાંગ બોરીસા

May 28, 2017

विभीषण कितना भी बडा रामभक्त क्यो न हो, जाना आज भी उसे गद्दार की तरह ही जाता है : विजय जादव

और कीतना मुर्ख बनोगे?
अब तो अपना तर्क लगाओ....
तर्क को भी कसौटी पर लगाओ...
दीखावे पर मत जाओ...!!!
आप रास्ते पर चल पडे है, आपको मुश्किल भी पड रही है!आप अपनी मंजिल तक पहुँचने ही वाले होते है तो आपके दुश्मन आपसे छल करके आपको दुसरे रास्ते भेजनेका प्रयास करेंगे!
आपको बहला फुसलाकर,  लोभ लालच देकर बताया जाएगा की दुसरा रास्ता ही आपके लिए सही है!

कई बार आपके ही लोगोको आपके खिलाफ खडा कीया जाएगा! हा और वो नादान लोग ये तक नही जानते की उनको अपने ही लोगों के खिलाफ जाकर उनको पीछे ढकेलने की शाजिश रचाई गई है!
वे अलग रास्ते पर चल पडेंगे और सबको यकीन दिलायेंगे की मेरे पीछे आ जाओ,  मै आपको मंजिल तक पहुँचने मे सहायक बनुंगा। पर असलमे वो रास्ता आपको और पीछे ढकेलने वाला होता है!

वे मुर्ख है पर आप तो नहीं ना?


आपको समजाया जाएगा की दुसरे रास्ते पर जाएंगे तो आपको अपनी मंजिल बहोत ही जल्दी मिलेगी।
परंतु अपना तर्क लगाईये,
ऐसे निशान ढुंढिये की आपको लगे की हा यही रास्ता सही है।
आपको यकीनन सच्चे रास्ते के बारेमे जानकारी मिलेगी
खुद के भरोसे पर रहीए
खुदकी बुद्धि का इस्तेमाल कीजीए
और कुछ कहनेकी जरुरत नही लगती क्योंकि आप समझदार है।
विभीषण कितना भी बडा रामभक्त क्यो न हो, जाना आज भी उसे गद्दार की तरह ही जाता है ये ही परम सत्य है...!!!
- विजय जादव


May 27, 2017

त्याग, बलिदान और साहस की प्रेरणा - माता रमाबाई भीमराव आंबेडकर



माता रमाबाई की पुण्यतिथी पर आप सभी को 
विनम्र अभिवादन व माता रमाबाई को कोटी कोटी नमन

माता रमाई का जन्म महाराष्ट्र के दापोली के निकट वानाड गावं में ७ फरवरी  1898 में हुआ था. पिता का नाम भीकू वालंगकर था. रमाई के बचपन का नाम रामी था. रामी के माता-पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था. रामी की दो बहने और एक भाई था. भाई का नाम शंकर था. बचपन में ही माता-पिता की मृत्यु हो जाने के कारण रामी और उसके भाई-बहन अपने मामा और चाचा के साथ मुंबई में रहने लगे थे. रामी का विवाह 9 वर्ष की उम्र में सुभेदार रामजी सकपाल के सुपुत्र भीमराव आंबेडकर से सन 1906 में  हुआ था. भीमराव की उम्र उस समय 14 वर्ष थी. तब, वह 5 वी कक्षा में पढ़ रहे थे.शादी के बाद रामी का नाम रमाबाई हो गया था.  भले ही डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को पर्याप्त अच्छा वेतन मिलता था परंतु फिर भी वह कठीण संकोच के साथ व्यय किया करते थे. वहर परेल (मुंबई) में इम्प्रूवमेन्ट ट्रस्ट की चाल में एक मजदूर-मुहल्ले में, दो कमरो में, जो एक दुसरे के सामने थे रहते थे. वह वेतन का एक निश्चित भाग घर के खर्चे के लिए अपनी पत्नी रमाई को देते थे. माता रमाई जो एक कर्तव्यपरायण, स्वाभिमानी, गंभीर और बुद्धिजीवी महिला थी, घर की बहुत ही सुनियोजित ढंग से देखभाल करती थी. माता रमाईने प्रत्येक कठिनाई का सामना किया. उसने निर्धनता और अभावग्रस्त दिन भी बहुत साहस के साथ व्यत्तित किये. माता रमाई ने कठिनाईयां और संकट हंसते हंसते सहन किये. परंतु जीवन संघर्ष में साहस कभी नहीं हारा. माता रमाई अपने परिवार के अतिरिक्त अपने जेठ के परिवार की भी देखभाल किया करती थी. रमाताई संतोष,सहयोग और सहनशीलता की मूर्ति थी.डा. आंबेडकर प्राय: घर से बाहर रहते थे.वे जो कुछ कमाते थे,उसे वे रमा को सौप देते और जब आवश्यकता होती, उतना मांग लेते थे.रमाताई  घर खर्च चलाने में बहुत ही किफ़ायत बरतती और कुछ पैसा जमा भी करती थी. क्योंकि, उसे मालूम था कि डा. आंबेडकर को उच्च शिक्षा के लिए पैसे की जरुरत होगी. रमाताई  सदाचारी और धार्मिक प्रवृति की गृहणी थी. उसे पंढरपुर जाने की बहुत इच्छा रही.महाराष्ट्र के पंढरपुर में विठ्ठल-रुक्मनी का प्रसिध्द मंदिर है.मगर,तब,हिन्दू-मंदिरों में अछूतों के प्रवेश की मनाही थी.आंबेडकर, रमा को समझाते थे कि ऐसे मन्दिरों में जाने से उनका उध्दार नहीं हो सकता जहाँ, उन्हें अन्दर जाने की मनाही हो. कभी-कभार माता रमाई धार्मिक रीतीयों को संपन्न करने पर हठ कर बैठती थी, जैसे कि आज भी बहुत सी महिलाए धार्मिक मामलों के संबंध में बड़ा कठौर रवैया अपना लेती है. उनके लिये  कोई चांद पर पहुंचता है तो भले ही पहुंचे, परंतु उन्होंने उसी सदियों पुरानी लकीरों को ही पीटते जाना है. भारत में महिलाएं मानसिक दासता की श्रृंखलाओं में जकडी हुई है. पुरोहितवाद-बादरी, मौलाना, ब्राम्हण इन श्रृंखलाओं को टूटने ही नहीं देना चाहते क्योंकि उनका हलवा माण्डा तभी गर्म रह सकता है यदि महिलाए अनपढ और रुढ़िवाद से ग्रस्त रहे. पुरोहितवाद की शृंखलाओं को छिन्न भिन्न करने वाले बाबासाहब डॉ. आंबेडकर ने पुरोहितवाद का अस्तित्त्व मिटाने के लिए आगे चलकर बहुत ही मौलिक काम किया.

बाबासाहब डॉ. आंबेडकर जब अमेरिका में थे, उस समय रमाबाई ने बहुत कठिण दिन व्यतीत किये. पति विदेश में हो और खर्च भी सीमित हों, ऐसी स्थिती में कठिनाईयां पेश आनी एक साधारण सी बात थी. रमाबाई ने यह कठिण समय भी बिना किसी शिकवा-शिकायत के बड़ी वीरता से हंसते हंसते काट लिया. बाबासाहब प्रेम से रमाबाई को "रमो" कहकर पुकारा करते थे. दिसंबर १९४० में डाक्टर बाबासाहब बडेकर ने जो पुस्तक "थॉट्स ऑफ पाकिस्तान" लिखी व पुस्तक उन्होंने अपनी पत्नी "रमो" को ही भेंट की. भेंट के शब्द इस प्रकार थे. ( मै यह पुस्तक) "रमो को उसके मन की सात्विकता, मानसिक सदवृत्ति, सदाचार की पवित्रता और मेरे साथ दुःख झेलने में, अभाव व परेशानी के दिनों में जब कि हमारा कोई सहायक न था, अतीव सहनशीलता और सहमति दिखाने की प्रशंसा स्वरुप भेंट करता हूं.."उपरोक्त शब्दों से स्पष्ट है कि माता रमाई ने बाबासाहब डॉ. आंबेडकर का किस प्रकार संकटों के दिनों में साथ दिया और बाबासाहब के दिल में उनके लिए कितना सत्कार और प्रेम था. 

बाबासाहब डॉ. आंबडेकर जब अमेरिका गए तो माता रमाई गर्भवती थी. उसने एक लड़के (रमेश) को जन्म दिया. परंतु वह बाल्यावस्था में ही चल बसा. बाबासाहब के लौटने के बाद एक अन्य लड़का गंगाधर उत्पन्न हुआ.. परंतु उसका भी बाल्यकाल में देहावसान हो गया. उनका इकलौता बेटा (यशवंत) ही था. परंतु उसका भी स्वास्थ्य खराब रहता था. माता रमाई यशवंत की बीमारी के कारण पर्याप्त चिंतातूर रहती थी, परंतु फिर भी वह इस बात का पुरा विचार रखती थी, कि बाबासाहब डॉ. आंबेडकर के कामों में कोई विघ्न न आए औरउनकी पढ़ाई खराब न हो. माता रमाई अपने पति के प्रयत्न से कुछ लिखना पढ़ना भी सीख गई थी. साधारणतः महापुरुषों के जीवन में यह एक सुखद बात होती रही है कि उन्हें जीवन साथी बहुत ही साधारण और अच्छे मिलते रहे. बाबासाहब भी ऐसे ही भाग्यसाली महापुरुषों में से एक थे, जिन्हें रमाबाई जैसी बहुत ही नेक और आज्ञाकारी जीवन साथी मिली.

इस मध्य बाबासाहब आंबेडकर के सबसे छोटे बच्चे ने जन्म लिया. उसका नाम राजरत्न रखा गया. वह अपने इस पुत्र से बहुत लाड-प्यार करते थे. राजरत्न के पहले माता रमाई ने एक कन्या को जन्म दिया, जो बाल्य काल में ही चल बसी थी. मात रमाई का स्वास्थ्य खराब रहने लगा. इसलिए उन्हें दोनों लड़कों यशव्त और राजरत्न सहीत वायु परिवर्तन के लिए धारवाड भेज दिया गया. बाबासाहब की ओर से अपने मित्र श्री दत्तोबा पवार को १६ अगस्त १९२६ को लिए एक पत्र से पता लगता है कि राजरत्न भी शीघ्र ही चल बसा. श्री दत्तोबा पवार को लिखा पत्र बहुत दर्द भरा है. उसमें एक पिता का अपनी संतान के वियोग का दुःख स्पष्ट दिखाई देता है. 



सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में बहुजनो पर जाति के आधार पर हुए हमले का सच

( क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन की अगुवाई में प्रगतिशील महिला एकता केंद्र एवं नौजवान भारत सभा के कार्यकर्त्ताओ ने तथ्यों की जांच पड़ताल के लिए शब्बीरपुर गांव का दौरा 8 मई को किया इस जांच पड़ताल के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है।)
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सहारनपुर से लगभग 26 किमी दूरी पर शब्बीरपुर गांव पड़ता है । मुख्य सड़क से तकरीबन आधा किमी दूरी पर यह गांव है।इस गांव के आस पास ही महेशपुर व शिमलाना गांव भी पड़ते है। गांव के भीतर प्रवेश करते वक्त सबसे पहले दलित समुदाय के घर पड़ते है। जो कि लगभग 200 मीटर के दायरे में गली के दोनों ओर बसे हुए हैं। यहां घुसते ही हमें गली के दोनों ओर जले हुए घर, तहस नहस किया सामान दिखाई देता है। दलित समुदाय के कुछ युवक, महिलाएं व अधेड़ पुरुष दिखाई देते हैं जिनके चेहरे पर खौफ, गुस्सा व दुख के मिश्रित भाव को साफ साफ पढ़ा जा सकता है।

इस गांव के निवासियों के मुताबिक गांव में तकरीबन 2400 वोटर हैं जिसमें लगभग 1200 वोटर ठाकुर समुदाय के , 600 वोटर दलित (चमार)जाति के है। इसके अलावा कश्यप, तेली व धोबी, जोगी (उपाध्याय) आदि समुदाय से हैं। मुस्लिम समुदाय के तेली व धोबी के तकरीबन 12- 13 परिवार हैं। गांव में एक प्राइमरी स्कूल हैं जिसमें ठाकुर समुदाय के गिने चुने बच्चे ही पड़ते हैं जबकि अधिकांश दलितों के बच्चे यहां पड़ते हैं।
गांव की अधिकांश खेती वाली जमीन ठाकुरों के पास है लेकिन 25-35 दलित परिवारों के पास भी जमीन है। दलित प्रधान जो कि 5 भाई है के पास भी तकरीबन 60 बीघा जमीन है।

गांव में ठाकुर बिरादरी के बीच भाजपा के लोगों का आना जाना है। जबकि दलित समुदाय बसपा से सटा हुआ है। गांव का प्रधान दलित समुदाय से शिव कुमार है जो कि बसपा से भी जुड़े हुए हैं। इस क्षेत्र के गांव मिर्जापुर के दलित सत्यपाल सिंह ने बताया कि वह खुद आरएसएस(संघ) से लंबे समय से जुड़े हुए है शिमलाना, महेशपुर व शब्बीरपुर गांव में भी संघ की शाखाएं लगती हैं हालांकि इनमें दलितों की संख्या 6-7 के लगभग है और इस गांव से कोई भी दलित शाखाओं में नहीं जाता है।

घटना व घटना की तात्कालिक पृष्ठभूमि

5 मई को दलित समुदाय को निशाना बनाने से कुछ वक्त पहले कुछ ऐसी बातें हुई थी जिसने दलितों को सबक सिखाने की सोच और मज़बूत होते चले गई । 14 अप्रेल को अम्बेडकर दिवस के मौके पर गांव के दलित अपने रविदास मंदिर के बाहर परिसर में अम्बेडकर की मूर्ती लगाना चाह रहे थे । लेकिंन गांव के ठाकुर समुदाय के लोगों ने इस पर आपत्ति की।प्रशासन ने मूर्ति लगाने की अनुमति दलितों को नहीं दी । मूर्ति लगाने के दौरान पुलिस प्रशासन को गांव के ठाकुर लोगों ने बुलाया। पुलिस मौके पर पहुँची मूर्ति नही लगाने दी गई । दलितों से कहा गया कि वो प्रशासन की अनुमति का इंतजार करें। जो कि नहीं मिली।

5 मई को इस गांव के पास शिमलाना में ठाकुर समुदाय के लोग "महाराणा प्रताप जयंती" को मनाने के लिए एकजुट हुए थे। इनकी तादात हज़ारों में बताई गई है। इसमे शब्बीरपुर गांव के ठाकुर भी थे। ये सभी सर पे राजपूत स्टाइल का साफा पहने हुए थे, हाथों में तलवार थामे हुए थे व डंडे लिए हुवे थे।

5 मई को सुबह लगभग 10:30 बजे गांव के ठाकुर समुदाय के कुछ युवक बाइक में दलित समुदाय की ओर से जाने वाले रास्ते पर से डी जे बजाते हुए आगे बढ़ रहे थे। इस पर दलितों ने आपत्ति जताई । क्योंकि प्रशासन से इनकी अनुमति नहीं थी । इसका दलितों ने विरोध किया लेकिन इस पर भी मामला नही रुका तो दलित प्रधान ने पुलिस प्रशासन को सूचित किया। पुलिस आई और डी जे को हटा दिया गया। दलित समुदाय के लोगों ने आगे बताया कि इसके बाद ये बाइक में रास्ते से गुजरते हुए " अम्बेडकर मुर्दाबाद", "राजपुताना जिंदाबाद" महाराणा प्रताप जिंदाबाद" के नारे लगाते हुए आगे बढ़ने लगे। वह रास्ते से 2-3 बार गुजरे। इन दौरान फिर पुलिस भी आई।

ठाकुर समुदाय के लोगों का कहना था कि इन दौरान दलित प्रधान ने रास्ते से गुजर रहे इन लोगों पर पथराव किया। जबकि दलित समुदाय के लोग इससे इनकार करते हैं। हो सकता है दलितों की ओर से कुछ पथराव हुआ हो। क्योंकि इसी दौरान ठाकुर समुदाय के लोग महाराण प्रताप जिन्दाबाद का नारा लगाते हुए रविदास मंदिर पर हमला करने की ओर बढ़े।

लगभग 11 बजे के आस पास रविदास मंदिर पर हमला बोला गया। दूसरे गांव से आये एक ठाकुर युवक ने रविदास की मूर्ति तोड़ दी नीचे गिरा दी । दलितों ने बताया कि इस पर पेशाब भी की गई। और यह युवक जैसे ही मंदिर के अंदर से बाहर परिसर की ओर निकला वह जमीन पर गिर गया। और उसकी मृत्यु हो गई । इसकी हत्या का आरोप दलितों पर लगाया गया। इण्डियन एक्सप्रेस के मुताबिक पोस्टमार्टम में मृत्यु की वजह ( suffocation) दम घुटना है।

तुरंत ही दलितों द्वारा ठाकुर युवक की हत्या की खबर आग की तरह फैलाई गई । और फिर शिमलाना में महाराण प्रयाप जयंती से जुड़े सैकड़ो लोग तुरंत ही गांव में घुस आए। इसके बाद तांडव रचा गया। तलवार, डंडे से लैस इन लोगों ने दलितों पर हमला बोल दिया। थिनर की मदद से घरों को आग के हवाले कर दिया गया। लगभग 55 घर जले । 12 दलित घायल हुए इसमें से एक गंभीर हालत में है। गाय, भैस व अन्य जानवरों को भी निशाना बनाया गया।इस तबाही के निशान हर जगह दिख रहे थे। यहां से थोड़ी दूर महेशपुर में सड़क के किनारे दलितों के 10 खोखे आग के हवाले कर दिए गए। यह सब चुन चुन कर किया गया।

घायलों में 5 महिलाएं है जबकि 7 पुरुष। गांव के दलित प्रधान का बेटा गंभीर हालत में देहरादून जौलीग्रांट में भर्ती है। तलवार व लाठी डंडे के घाव इनके सिर हाथ पैर पर बने हुए हैं। रीना नाम की महिला के शरीर पर बहुत घाव व चोट है। इस महिला के मुताबिक इसकी छाती को भी काटने व उसे आग में डालने की कोशिश हुई। वह किसी तरह बच पायी।

शासन , पुलिस प्रशासन व मीडिया की भूमिका

सरकार व पुलिस प्रशासन की भूमिका संदेहास्पद है व उपेक्षापूर्ण है। यह आरोप है कि घटनास्थल पर हमले के दौरान मौजूद पुलिस हमलावरों का साथ देने लगी व कुछ दलितों के साथ इस दौरान मारपीट भी पुलिस ने की । संदेह की जमीन यहीं से बन जाती है कि जब संघ व भाजपा के लोग अम्बेडकर को हड़पने पर लगे है तब दलितों को उन्हीं के रविदास मंदिर परिसर में अम्बेडकर की प्रतिमा लगाने से रोक दिया गया व प्रशासन ने इसकी अनुमति ही नहीं दी।

दलितों पर कातिलाना हमले के बाद भी सरकार व मुख्यमंत्री के ओर से दलितों के पक्ष में कोई प्रयास नहीं हुए जिससे कि उन्हें महसूस होता कि उनके साथ न्याय हुआ हो। इसके बजाय मामला और ज्यादा भड़काने वाला हुआ । एक ओर पुलिस प्रशासन ने पीड़ितों व हमलवारों को बराबर की श्रेणी में रखा और हमलावर ठाकुर समुदाय के लोगों के साथ साथ दलितों पर भी मुकदमे दर्ज किए दिए गए । 8 मई तक मात्र 17 लोग ही गिरफ्तार किए गए इसमें लगभग 7 दलित समुदाय के थे जबकि 10 ठाकुर समुदाय के। जबकि दूसरी ओर ठाकुर समुदाय से मृतक परिवार के लोगों को मुआवजा देने की खबर आई व मेरठ में मुख्य मंत्री योगी द्वारा अम्बेडकर की मुर्ती पर माल्यार्पण न करने की खबर भी फैलने लगी।
घायल लोगों के कोई बयान पुलिस ने 8 मई तक अस्पताल में नहीं लिए थे। घायल लोगों के कपड़े घटना वाले दिन के ही पहने हुए हैं जो कि खून लगे हुए थे। ये पूरे शासन प्रशासन की संवेदनहीनता को दिखाता है।
इस दौरान गांव में डी एम ने एक बार दौरा किया व कुछ परिवारों को राशन दिया। लेकिन लोगो की जरूरत और ज्यादा की थी उन्हें छत के रूप में तिरपाल की भी जरूरत थी। लेकिन शासन प्रशासन ने फिर मदद को कोई क़दम नहीं उठाया। बाहर से जो लोग मदद पहुंचा रहे थे उन्हें भी प्रशासन ने रोक दिया।

लखनऊ से गृह सचिव व डी जी पी स्थिति का जायजा लेंने पहुंचे तो वे केवल अधिकारियों से वार्ता करके चले गए गांव जाना व वंहा दलितों से मिलने का काम इन्होंने नहीं किया।

बात यही नही रुकी। दलितों ने भेद भाव पूर्ण व्यवहार के विरोध में तथा मुआवजे के लिए एकजुट होने की कोशिश को भी रोका गया। दलित छात्रावास में रात को ही पीएसी तैनात कर दी गई। और जब गांधी पार्क से एकजुट दलित लोगों ने जुलूस निकालने की कोशिश की तो उस पर लाठीचार्ज कर दिया गया।

मीडिया ने इस कातिलाना हमले को दो समुदाय के टकराव(clash) के रूप में प्रस्तुत किया। हमलावरों व हमले के शिकार लोगों को एक ही केटेगरी में रखा गया। इसका नतीजा ये रहा कि दलितों में पुलिस प्रशासन व मीडिया के प्रति अविश्वास व नफरत बढ़ते गया।

शबीरपुर घटना की दीर्घकालिक वजह

सहारनपुर में दलितों की आर्थिक व राजनीतिक स्थिति तुलनात्मक तौर ठीक है और यह तुलनात्मक तौर पर मुखर भी है । आरक्षण के चलते थोड़ा बहुत सम्पन्नता दलितों में आई है अपने अधिकारों के प्रति सजग भी हुए है। लेकिन इन बदलाव को सवर्ण समुदाय विशेषकर ठाकुर समुदाय के लोग अपनी सामंती मानसिकता के चलते सह नहीं पाते। उन्हें यह बात नफरत से भर देती है कि कल तक जिन्हें वे जब तब रौंदते रहते थे आज वही उन्हें आँख दिखाते है ।

जब से एस सी एस टी एक्ट बना हुआ है इस मुकदमे के डर से ठाकुर समुदाय के लोगों को जबरन खुद को नियंत्रित करना पड़ता है कभी कभी तो जेल भी जाना पड़ता है। ये बात इन्हें नफरत से भर देती है।ठाकुर समुदाय के लोग महसूस करते है कि बसपा की सरकार थी तो बस इन दलितों का ही राज था। अभी बसपा की सरकार होती तो सारे ठाकुर अंदर होते, भाजापा के होने केवल 10-12 लोग ही अरेस्ट हुए। दलित व ठाकुरों के बीच के अंतर्विरोध अलग अलग वक्त पर झगड़ो के रूप में दिखते हैं।
चूंकी संघ ने निरंतर ही अपनी नफरत भरी जातिवादी विचारो का बीज इस इलाके में भी बोया है। सवर्ण समुदाय इससे ग्रसित है। वह आरक्षण व सामाजिक समानता का विरोधी है। इसलिए यह अंतर्विरोध और तीखा हुआ है। संघ मुस्लिमों के विरोध में सभी हिंदुओं को लामबंद करने की कोशिश कर रहा है अपने फास्सिट आंदोलन को मजबूत कर रहा है । शब्बीरपुर घटना उसके लिए फायदेमंद नहीं है।

चुकी शब्बीरपुर गांव में ठाकुरों के वोटर दलितों से दुगुने होने के बावजूद ठाकुर अपना प्रधान नहीं बना पाए। एक बार रिजर्ब सीट होने के चलते तो दूसरी दफा सामान्य सीट होने के के बावजूद।

जब ठाकुर समुदाय के लोगों से यह पूछा गया कि ऐसा कैसे हुआ ? तो उन्होंने जवाब दिया कि सारे चमार, तेली कश्यप एक हो गए हम ठाकुर एक नही हो पाए ज्यादा ठाकुर चुनाव में खड़े हो गए, वोट बंट गए और हार गए। इसका बहुत अफसोस इन्हें हो रहा था।

इसके अलावा दलितों के पास जमीन होना भी ठाकुर लोगों के कूड़न व चिढ़ को उनके चेहरे व बातों में दिखा रहा रहा था। ठाकुर लोगों से जब पूछा गया कि गांव में सबसे ज्यादा जमीन किसके पास है ? तो जवाब मिला - सबके पास है दलितों के पास भी बहुत है प्रधान के पास 100 बीघा है उसका भटटा भी है पटवारी भी दलित है जितना मर्जी उतनी जमीन पैसे खाकर दिखा देता है।

ठाकुर परिवार की महिलाएं बोली - हमारी तो इज्जत है हम घर से बाहर नही जा सकती, इनकी(दलित महिलाएं) क्या इज्जत, सब ट्रैक्टर मैं बैठकर शहर जाती है पैसे लाती है। ठाकुर लोग फिर आगे बोले-इनके ( दलितों) के तो 5-5 लोग एक घर से कमाते है 600 रुपये मज़दूरी मिलती है हमारी तो बस किसानी है हम तो परेशान हैं आमदनी ही नहीं है।

यही वो अंतर्विरोध थे जो लगातार भीतर ही भीतर बढ़ रहे थे दलितों को सबक सिखाने की मंशा लगातार ही बढ़ रही थी। और फिर 5 मई को डी जे के जरिये व फिर नारेबाजी करके मामला दलितों पर बर्बर कातिलाना हमले तक पहुंचा दिया गया। इसमें कम से कम स्थानीय स्तर के भाजपा , संघ व पुलिस प्रशासन की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।

5 मई को शिमलाना में महाराणा प्रताप जयंती का आयोजन किया गया । जिसमें हजारों लोग गांव में इकट्ठे हुवे थे। ऐसा कार्यक्रम सहारनपुर के गांव में पहली दफा हुआ। जबकि इससे पहले यह जिला मुख्यालय पर हुआ है।

दलित समाज की प्रतिकिया व शासन प्रशासन

जैसा कि स्पष्ट है विशेष तौर पर पुलिस प्रशासन के प्रति इनमें गहरा आक्रोश था। जब 9 तारीख को दोपहर में गांधी पार्क पर लाठी चार्ज किया गया तो शाम अंधेरा होते होते यह पुलिस प्रशासन से मुठभेड़ करते हुए दिखा। इनकी मांग थी - हमलावर ठाकुर समुदाय के लोगो को 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार करो।

सहारनपुर के रामनगर,नाजीरपुरा,चिलकाना व मानकमऊ में सड़कें ब्लॉक कर दी गई । यह दलित समुदाय के युवाओं के एक संगठन 'भीम आर्मी' ने किया। लाठी डंडो से लैस इन युवाओं को पुलिस प्रशासन ने जब फिर खदेड़ने की कोशिश की तो फिर पुलिस को टारगेट करते हुए हमला बोल दिया गया।पुलिस थाने में आग लगा दी गई । पुलिस की कुछ गाड़िया जला दी गई ।पुलिस का जो भी आदमी हाथ आया उसे दौड़ा दौड़ा कर पिटा गया। अधिकारियों को भी इस आक्रोश को देख डर कर भागना पड़ा। एक दो पत्रकारों को भी पीटा गया व बाइक जला दी। एक बस से यात्रियों को बाहर कर बस में आग लगा दी गई।

इस आक्रोश से योगी सरकार के माथे पर कुछ लकीरें उभर आई। तुरंत ही अपनी नाकामयाबी का ठीकरा दो एस पी पर डालकर उन्हें हटा दिया गया। और अब वह "कानून का राज" कायम करने के नाम पर दलित युवाओं से बनी भीम आर्मी पर हमलावर हो गई है। अस्पताल से लेकर छात्रावास व गांव तक हर जगह इनको चिन्हित कर तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। जबकि ठाकुर समुदाय के तलवार के बल पर खौफ व दहशत का माहौल पैदा करने वाले महाराण प्रताप जयंती वाली सेना को सर आंखों पर बिठा कर रखा जाता है। उनके खिलाफ ऐसी कोई कार्यवाही सुनने या देखने पढ़ने को नही मिली।साफ महसूस हो रहा है कि पुलिस प्रशासन अब पुलिस कर्मियों पर हमला करने वाले दलित समुदाय के लोगों को सबक सिखाने की ओर अपने कदम बढ़ा चुका है।

कुल मिलाकर शासन -प्रशासन व राज्य सरकार का रुख दलितों के प्रति भेदभावपूर्ण, उपेक्षापूर्ण , दमनकारी व सबक सिखाने का बना हुआ है। इसलिये आने वाले वक्त में यह समस्या और गहराएगी। वैसे भी जब जातिवादी , साम्प्रदायिक व फासिस्ट विचारों से लैस पार्टी सत्ता में बैठी हुई हो तो इससे अलग व बेहतर की उम्मीद करना मूर्खता है।

May 26, 2017

MEMORANDUM TO HON’BLE PRESIDENT OF INDIA

हमारे गुजरात के चार साथी सहारनपुर में एक सप्ताह तक ठहरने के बाद अभी राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को उना तथा सहारनपुर पर मेमोरेन्डम देने जा रहे हैं. 

कर्मशील राजु सोलंकी ने उनको मेमोरेन्डम तैयार करके भेज दिया है, अवश्य पढ़े और शेअर करे... 




To,
Honourable President of India
New Delhi.


Dear Sir,

            We undersigned, concerned citizens of Gujarat and India, after visiting Saharanpur, demand to immediately dismiss Mr. Adityanath Yogi’s government in Uttar Pradesh in the wake of the complete breakdown of law and order enforcement machinery in the state. The situation is alarming as the central government has to send Rapid Action Force to Saharanpur, the hotbed of caste conflict under the nose of a regime which has been boasting of Hindu Unity and brotherhood among so-called higher and lower castes.


            In fact, Mr. Adityanath Yogi is running a quasi-military, armed gang named Hindu Yuva Vahini which is responsible for the present conflict where poor and marginalized communities like Dalits and Muslims are the worst sufferers. The Thakurs of Uttar Pradesh, who coincidentally belong to Mr. Yogi’s cast are primarily responsible for the initiation of present perpetrated violence, unabated and aggravated under the nose of Thakur-friendly police and administration.

               BJP the present party in power at both, center and state levels is determined to enforce political exclusion of Muslim community in our country, where our forefathers have painstakingly and purposefully nourished inclusive policy for all citizens of India. The present turmoil in Uttar Pradesh is an indicator of another sinister aspect of BJP and that is - a well-planned strategy to undermine and destroy the growing awareness among SCs, STs and OBCs and minorities.

           Our Prime Minister Mr. Narendra Modi is the mastermind in the very undemocratic process of drowning the ‘loudest voices’ of dissent. The witch hunt of Teesta Setalwad, use of CBI against political opponents and protection of fascist forces who are ready to shatter the composite and secular fabric of the nation. The Una incident of Gujarat was the glaring example of state patronage to goons who roam and ruin lives of innocents in the name of ‘holy cow’. The lynching of innocent Muslims in Jharkhand, Murder of a Muslim trader in Alwar, uprooting Tribals in name of development, killings of Dalits on the altar of age-old caste prejudices – these all are ominous signs of a brutal, fascist state.

           Looking at the grim picture, we request you to intervene as early as possible.

                                                                                                                                    Yours,
                                                                                                                        Ramesh Babariya, 
                                                                                                                         Arvind Khuman, 
                                                                                                                        Kishor Dhakhada, 
                                                                                                                           Mukesh Vanza.


























🌺સહારનપુર મુદે દિલ્હીથી લાઇવ...
🦁રાષ્ટ્રપતિ કાર્યાલય અને વડા પ્રધાન કાર્યાલયમાં રુબરુ જઇ સહારનપુરના મુદે મેમોરેન્ડમ આપ્યુ 🦁26/5/17
💥 દોસ્તો, .. છેલ્લા 8 દિવસથી સહારનપુરના પિડીતો, ભીમ આર્મીના સભ્યોને મળીને સહારનપુરની પરિસ્થિતિ સમજી આવેદનપત્ર તૈયાર કરેલ. કાનુની સહાયતા ગુપ - ગુજરાતના નામે રુબરુ જઈ રાષ્ટ્રપતિ તેમજ વડા પ્રધાન કાર્યાલયમાં આજ રોજ તા. 26/5/17 ના રોજ આવેદનપત્ર આપેલ છે, રુબરુ રજુઆત કરેલ છે.
💥 અમદાવાદથી રાજુભાઇ સોલંકીએ આવેદનપત્ર તૈયાર કરી મેઇલ કરેલ તે પણ આપેલ છે.
💥 વિકટ પરિસ્થિતિમા આ સમગ્ર કામગીરી ગ્રુપના સાથી મીત્રો કિશોરભાઈ ધાખડા, રમેશભાઈ બાબરીયા, મુકેશભાઇ વાંજા અને હુ અરવિંદભાઈની સખત મહેનતથી શક્ય બન્યુ છે. લગભગ કુલ 72,000/ નો ખર્ચ થયેલ જે દરેક સભ્યે પોતાના ખર્ચે સહારનપુરના પિડીતો માટે ખર્ચ કરેલ છે. કોઇ પાસેથી એક રુપીયે પણ ફાળા પેટે લીધલ નથી.
💥 આ આવેદનપત્રની માંગણીઓ મુજબ દરેક જિલ્લા, તાલુકામા આવેદનપત્રો આપો.. આવેદનપત્રની તૈયાર નકલ મેળવવા અમારો સંપર્ક કરો.
🙏(1) અરવિંદભાઈ મો. 8128321291 mail I D : khumanarvind01@gmail.com મેઇલ કરી મોકલી શકો છો.. અરવિંદભાઈ ,કિશોરભાઈ, રમેશભાઈ, મુકેશભાઇ અને ટીમના સભ્યો..






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