By Jigar Shyamlan || Written on 13 April 2018
जब मै छोटा था तब बाबा साहब को सिफँ फोटो से ही पहचानता था। उनके बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नही थी, ईतना ही मालूम था कि यह बाबा साहब है, और उन्होने हमारे लिये काफी कुछ किया है।
14 अप्रैल के दिन मेरे शहर में बाबा साहब की बडी रैली नीकलती थी। 14 अप्रेल की सुबह दोनो महोल्ले के बीचवाले रोड पर एक घर के पास टेबल पर चादर बिछाकर बाबा साहब की छवि रखी जाती थी। उस छवि पर फुलो की माला पहनाई जाती थी। सब लोग उधर रैली आने के ईन्तझार में ईकठ्ठा होते थे।
फिर दुसरे महोल्ले से बाबा साहब के सन्मान मे निकाली गई रैली हमारे महोल्ले में आती थी। फिर हमारे महोल्लै के लोग रैली का स्वागत करते थे। रैली में आये लोग बाबा साहब की छवि पर फुल चढाते थे। फिर वहां से रैली आगे बढती थी, हमारे मोहल्ले के काफी लोग रैली में जाते थे।
मै भी अपने आनंद के लिए रैली में जाता था। चार-पांच ऊंटो की गाडीया होती थी, मै भी दुसरे बच्चो की तरह एक गाडी में बाबा साहब का आदम कद का फौटो लेकर बैठ जाता था। थोडी थोडी देर में जय भीम.. जय भीम के नारे भी बोलता था।
लेकिन उस वक्त कुछ मालूम ही नही था जय भीम का नारा क्या है। ऊंटकी गाडी में बैठकर रैली में पुरा शहर घूमने का बडा मजा आता था।
फिर शाम को महोल्ले में कायँक्रम होता था। उसमें भी पहली लाईन में बैठता था। कोई एक आदमी आता था, बाबा साहब के बारे में कुछ बोलता था, लेकिन मुझे यह सब सूनने की जरा सी भी परवाह न होती थी। मेरा मन तो भाषण के बाद शुरु होनेवाले प्रोग्राम के ही ईन्तजार में रहता था।
यह थी बचपन की 14 अप्रेल की यादें।
फिर बढती उम्र के साथ साथ जब समज आती गई तब बाबा साहब के बारे में जानने लगा, बाबा साहब को पढने की ईच्छा हूई। बाबा साहब को पढना शुरू किया।
जैसे जैसे बाबा साहब को पढता गया वैसे वैसे उनको समजता गया। और जैसे जैसे समजता गया वैसे वैसे उनको मानता गया। तब एक अफसोस हूआ कि बाबा साहब को पढने में काफि देरी कर दी।
आज समाज में बाबा साहब को माननेवाले बहोत से लोग है, लेकिन बाबा साहब को पढकर, उनको माननेवाला एवम उनके बताये गये रास्तो पर चलनेवाले ज्यादा नही।
ज्यादातर लोगो के पास बाबा साहब के बारे में जो कुछ भी जानकारी और विचार है वो खुद के नही, बल्की दूसरो से सूने हुये जाने हुये उधार लिए हुये है।
लोगो ने बाबा साहब को ही पढा नही और नही पढा ईसलिये बाबा साहब को समझ ही नही पा रहे। जब लोग खूद पढेंगें तब जानेगें, और तब ही समझ पायेंगें।
ईसलिये सबसे पहला काम बाबा साहब को जन जन तक पहूंचाना होगा। बाबा साहब की पुस्तके, उनके लेख, भाषण सभी लोगो तक पहुंचाना है।
क्योकि जब लोग बाबा साहब को पढ लेंगे तब दूसरा कुछ और पढने की जरूरत नही होगी। लोग खूद ब खूद समझ जायेंगें।
हमे अपनी नई पीढी को प्रेरणा देनी होगी कि वो बाबा साहब को पढे, तब ही हम आंबेडकरवाद पैदा कर सकेंगें।
ईस 14 अप्रेल को सभी भाईओ से बिनती है कि हमे बाबा साहब की पुस्तके, उनके लेख, भाषण सभी लोगो तक पहुंचाना चाहीए। हमारे मित्र, सगे-संबंधीओ को यह प्रेरणा देनी चाहीए कि वे बाबा साहब को पढे।
बचपन में काफि वक्त था लेकिन तब समज नही थी, अब समज है पर वक्त कम है। परिवार, नौकरी और जिम्मेदारीयो की वजह से वक्त नही दे पा रहा हुं। लेकिन जितना भी वक्त मिलता है या मिलेगा बाबा साहब के विचारो का प्रचार-प्रसार करता रहुंगा।
जय भीम
- जिगर श्यामलन
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