बहुमतवाली सरकार अगर प्रजा द्वारा चुनकर आयी हुई हो तो विपक्ष भी कही आसमान से नही टपका. उनकोभी प्रजा द्वारा ही जीताकर भेजा गया है. बहुमत जीसे मिला हो वो पक्ष सरकार बनाकर प्रजा के हीतमे निर्णय लेकर शाषन चलाता है. तो बाकी बचे सब प्रतिनीधि प्रजा का प्रतिनीधित्व करके सरकार द्वारा हो रहे कामकाज की देखरेख रखता है.
लोकतंत्र मे विपक्षकी भुमिका बहोतही महत्वपुर्ण है परंतु कोंग्रेस और भाजपाने इसे मजाक बनाकर रखदी है! जीतनी जरुरत अच्छी सरकारकी है उतना ही जरुरी है अच्छे विपक्ष का होना.
कोई काम पुरा करने की जीम्मेदारी अगर सत्तापक्ष की है तो विपक्ष की पुरी जीम्मेदारी है उन कामो पर नजर रखनेकी.
कई बार ऐसा हो सकता है की सरकार द्वारा ऐसे निर्णय लिए जाए जो प्रजाके हित के अनुरुप ना हो. उस समय पर अगर विपक्ष भेदी मौन बनाकर चुपचाप रहे तो वो सरकार का मौन समर्थन ही बोल सकते है. और ऐसे समय पर देशकी असली मालिक जनता के लिए दोनो साझा गुनहगार बोल सकते है, क्योंकी सरकार के कीसीभी गलत निर्णय का विरोध करना विपक्ष का कर्तव्य है.
सरकार द्वारा लिए गये गलत फैसले को और उससे होने वाले दुष्परिणाम को प्रजा तक पहोचानाही उनका कर्तव्य है. प्रजा के अधुरे काम के बारेमे प्रश्न उठाना विपक्षकी जीम्मेदारीमे आता है.
विपक्ष चाहे तो लोकतात्रिक तरीकेसे सरकारका विरोध करना, धरने करना, जनआंदोलन कर सकते है. जीससे मजबुर होकर सत्ता पक्ष अपना फैसला वापस ले सकता है.
मतलब ये बात हमे माननी ही पडेगी की सीर्फ हम सरकारकी ही आलोचना या विरोध करके विपक्षको नजर अंदाज नही कर सकते. सरकार अगर ईतने सालोसे खराब शाषन कर रही हो तो सरकार या सत्तापक्ष जीतने जीम्मेदार है तो विपक्ष भी उतना ही जिम्नेदार बनता है.
भारतमे विपक्ष सीर्फ सरकारको ब्लेकमैल करने जीतना ही विरोध करके खुदके काम निकल जाए उतना ही ध्यान देते है. वो बात कोंग्रेस और भाजपा दोनो पर लागु होती है.
विपक्षकी भुमिका सीर्फ जन हितका ध्यान रखने की है.
पांच सालके अंत मे प्रजाको भी देख लेना पडे की कीसने अच्छा काम कीया सत्ता पक्षने की विपक्ष ने?
-- विजय जादव
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