पूरी कहानी एक सीलबंद लिफ़ाफ़े से शुरू हुई, जो एक दिन प्रधानमंत्री कार्यालय पहुँचा।
पूरी कहानी आप सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले में पढ़ सकते हैं।
उस लिफ़ाफ़े में जस्टिस कर्णन ने यह बताया था कि ज़िला जजों की नियुक्ति में किस तरह 10 करोड़ तक की रिश्वत ली जाती है। बड़ी अदालतों में भी जजों के बीच काम के बँटवारे में भी रुपए का लेनदेन होता है।
उचित तो यह होता कि प्रधानमंत्री इसकी जाँच का आदेश सक्षम एजेंसी को देते।
लेकिन यह शिकायत सुप्रीम कोर्ट को भेज दी गई। जबकि शिकायत में सुप्रीम कोर्ट के जजों के खिलाफ भी सबूत थे। ये शिकायत लीक भी हो गई।
इसे सुप्रीम कोर्ट ने अपना अपमान माना और जस्टिस कर्णन पर कॉंटेप्ट ऑफ कोर्ट का मुकदमा चला दिया।
उसके बाद जो हुआ, वह आप सब जानते हैं।
कोर्ट में पैसा चलता है, यह किससे छिपा है। जस्टिस कर्णन ने सफाई का एक मौक़ा दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने उसे गँवा दिया।
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जस्टिस कर्णन के बयानों पर मीडिया में रोक लगाकर सुप्रीम कोर्ट के जातिवादी जजों ने बता दिया है कि वे कितना डरे हुए हैं।
हाई कोर्ट का जज होने के नाते ऐसी रोक जस्टिस कर्णन भी लगा सकते थे। लेकिन वे संविधान का सम्मान करते हैं।
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( दिलीप मंडल जी की फेसबुक वोल से)
जस्टिस कर्णन का पूरा फ़ैसला पढ लीजीये...
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