July 31, 2018

नमो बुध्धाय कि बजाय पढो बुध्धाय

By Jigar Shyamlan ||  Written on 30 April 2018


आप स्वयं को लडने का प्रयास करना ही होगा, बुद्ध तो सिर्फ रास्ता ही बताएगें।

बुद्घम् शरणम् गच्छामिधम्मम् शरणम् गच्छामिसंघम् शरणम् गच्छामि


  • बुद्घम् शरणम् गच्छामिमतलब एकदम ही साफ है। किसी ने कहा, किसी ने लिखा, किसी ने कर दीया उसे ही सही मत मानो। खुद तर्क करो, खुद अपनी सोच का दायरा बढाओ। किसी भी चीज को जानो फिर मानो। अपने बुध्धि एवम तर्क से किसी चीज को समझने योग्य बनने की प्रक्रीया ही बुध्ध है।
    यही है बुध्ध की शरण में जाना।
  • धम्मम् शरणम् गच्छामिधम्म का मतलब ही नैतिकता है। यदी हम नैतिकता पर ही चल रहे है तो हमे किसी भी बाहरी तत्व से सहायता की कोई जरूरत ही नही। क्योकि नैतिकता ही धम्म है और धम्म ही नैतिकता।
    यही है धम्म की शरण में जाना।
  • संघम् शरणम् गच्छामिसंघ मतलब समूह ऐकता। हम तब तक बलशाली और प्रभावीत रहे सकते है जब तक साथ है। अकेली लकडी में कोई बल या शक्ति नही होती। कोई भी उसे जरा से भी बल से तोड देगा। लेकिन यदी सारी लकडीयां ईकठ्ठी हो जाए तो मजबुत बन जाती है फिर ईतनी बलशाली हो जाती है कि कोई भी उसे तोड नही पाएगा। 
    यही है संध की शरण में जाना।


यदी आप बगैर संशय किसी चीज को नही मानते। आप विचारशील है, तर्कशील है और नैतिकता को सही मायने में चरीतार्थ कर रहे है तो आप बुध्ध ही है।
यदी जय भीम का नारा हमें संधर्ष करने की शक्ति देता है तो नमो बुध्धाय का नारा हमे उस शक्ति को सही दिशा में ले जाने का ज्ञान देता है।
वैसे तो मैं नमो बुध्धाय कि बजाय पढो बुध्धाय ही कहना चाहुंगा।
जय भीम
पढो बुध्धाय

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