June 23, 2017

एक पौधा शिक्षा का

By Raju Solanki
2002 के भयानक नरसंहार की राख में शिक्षा का एक छोटा, मासूम पौधा पनप रहा है. नरोडा पाटीया की इकरा स्कुल में एक दुबला पतला आदमी इस पौघे की हिफाजत कर रहा है. उसका नाम है नझीरभाई पठान.

कल इफ्तारी में हिस्सा लेने मैं इकरा स्कुल पर गया था. तब नझीरभाई ने मुझे बडे प्यार से गले लगाया था. मुझे बहुत खुशी हूई थी और जब मैंने रोलर कोस्टर जैसी उनकी जिंदगी की संघर्ष गाथा उनके ही मूंह से सूनी तब मेरी खुशी और बढ गई.

बचपन में अनाथ नझीर अपने भाई और भाभी के सहारे जीते थे. एक बार भाभी ने उन्हे टोका, नझीर कुछ कमाता नहीं है. उन्हे बहुत बुरा लगा. वे घर छोडकर नीकल पडे. घूमते घूमते वे समंदर के किनारे पहुंचे. वहां शर्ट नीकालकर मछलियां पकडने लगे और बेचने लगे. कुछ दिनों के बाद काम अच्छा नहीं लगा तो नारीयेल बेचने लगे. दो रूपया का एक नारीयेल. एक महिना नारीयेल बेचकर पंद्रह हजार इकठ्ठा किया और सारी कमाई भाभी को मनीओर्डर करके भेजी और लिखा पर्ची में, मैं अब बेकार नहीं हुं.

फिर नझीरभाई 1970 में अहमदाबाद आये. एक बस स्टेन्ड पर खडे थे. लाल बस आई. एक दाढीवाला बस में चडा. उसके पीछे पीछे चड गए. दाढीवाले ने गोमतीपुर की टीकट ली. नझीरभाई ने भी गोमतीपुर की टीकट ली. वह गोमतीपुर उतर गया. नझीरभाई भी गोमतीपुर उतर गए. वहां चाय की कीटली पर एक लडका उसके पेन्ट में से बोतल नीकालकर लोगों को बेचता था. उसने नझीरभाई को जबरन चाय पीलाई. उन्होने लडके से पूछा, भाई तुम, तुम्हारे पेन्ट में से रंगीन पानीवाली बोतल निकालकर लोगों को देते हो. उसका वे पैसा देते हैं. यह चीज क्या है? लडके ने मुंह पर उंगली रखकर कहा. चूप रहो. तुम्हे जानने की जरूरत नहीं. फिर वह उन्हें दिलसाद होटल पर ले गया. वहां उन्होनें सडसठ पैसे की रोटी के साथ छत्तीस पैसे का सुप पीया.

तब से नझीरभाई अहमदाबाद में बसे हैं. इकरा में नझीरभाई तेरह सालों से मुस्लिम बच्चों को पढाते है. अभी देढसो बच्चें पढते हैं. अब हर बच्चे से पचास रूपया फीझ लेते हैं. अब नझीरभाई के कान अच्छी तरह सै सूनते नहीं, मगर उनके उत्साह में कोई कमी नहीं.

नझीरभाई, तुम बच्चों को त्रिशुल-दिक्षा के बजाय कलम-दिक्षा देते हो.

मैं सिर्फ दलित समाज की और से नहीं, बल्कि पूरे गुजरात की और से तुम्हे सेल्युट करता हूं. जय भीम.

(फ़ोटो - नझीरभाई के साथ इफ़्तार)


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