March 06, 2018

भगत सिंह के कंधे पर बंदुक मत रखो

By Vishal Sonara || 6 March 2018




जो कम्युनीस्ट अभी लेनिन को भगत सिंह का आदर्श स्थापीत करने मे लगे हुए है उनको एक बात बता देना जरुरी है की देश के जो युवा भगत सिंह को मानते है उनका आदर्श खुद भगत सिंह ही है. भगत सींह को किताबे पढने का शौख था. वो कार्ल मार्क्स, लेनिन, मीखाईल बाकुनीन, त्रोत्स्की जैसे लेखको की किताब पढते थे ऐसा उल्लेख मीलता है और भी बहोत सी किताबे उन्होने पढी होगी..
किताब पढने से देश दुनीया से रुबरु हो सकते है और इसी लीये ज्यादातर महान लोग किताबे पढते थे. भगत सिंह भी पढते थे. और किसी की किताब अगर पढ लें तो क्या वो हमारे आदर्श बन गए??
मैने गांधी को भी पढा है, गोड्से को भी पढता हु. वेद पुराण को भी पढता हु. पर इन मे से कोइ मेरा आदर्श नही है. अच्छी बाते अगर लगे तो ग्रहण कर सकते है, प्रेरणा ले सकते है, उनके विचारो से गहराई नाप सकते है, दुश्मन को पहचान सकते है... बहोत कुछ हो सकता है.  इस बात पर लेनिन को भगत सिंह का आदर्श बता देना मुजे ठीक नही लगता.
भगत सिंह खुद एक मीसाल थे.
अपनी फांसी के एक दिन पहले भगत सिंह ने कहा था की, "मै क्रांति का मुल मंत्र बन गया हुं." ्ये बहोत गहरी बात उन्होने कही थी. वो खुद अपने लिए क्रांति का मुल मंत्र थे. और वो जानते थे की देश के लिए भी वो खुद एक बडी क्रांति है.  लेनिन और भगत सिंह मे गुरु शीष्य जैसा रिश्ता नीकालना भगत सींह के मुल वैचारीक तत्व को खत्म करने जैसा है.

हमारे आदर्श भगत सींह ही है, भगत सिंह के कंधे पर बंदुक रख कर हमे लेनिन को आदर्श मानने के लिए मत समजाओ.  हमे विदेशी विचारधाराओ की कोइ जरुरत नही है.

भगत सिंह को लेनिन के समकक्ष क्रांतिकारी कहना हो तो कह सकते हो पर ये सीखाने की कोशीष मत करो की लेनिन नहि होता तो हमे भगत सिंह नही मिलते.

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