July 31, 2017

श्री कोविन्द को देश के पहले दलित राष्ट्रपति और के आर नारायणन को ईसाई चित्रित करने का दुर्भावनापूर्ण प्रयास

By Vishal Sonara || 31 July 2017 at 15:05

भारतीय जनता पार्टी के सपोर्ट से बने भारत के वर्तमान राष्ट्रपती श्री रामनाथ कोविन्द को देश के प्रथम दलित राष्ट्रपती  दीखाने की चाह मे कुछ फेक न्युस साईट्स, मीडिया का कुछ तबक्का और सोशल मीडिया की कुछ टीम सक्रीय हो गई है और ऐसे मेसेज बना कर वोट्सप, फैसबुक ,ट्वीटर और साईट्स के माध्यम से इस गलत खबर को फैला रहे है. 
एक प्रोपेगेंडा वेबसाईट postcard.news ने बाकायदा लीख ही दीया "“Shocking! K.R. Narayanan was first Christian President, not Dalit President” बिना कुछ ज्यादा जाने बीना ऐसी हि खबरे फैलाई जाते है उस वेबसाईड पर. 
outlookindia.com ने भी अपनी वेबसाईट मे खबर लीखी है , उन्होने तो हेड्लाईन मे ही सनसनी फैला दी जो ईस प्रकार है "Was India's First Dalit President K.R. Narayanan Really A Christian?"
केरल की जनम टीवी  चेनल और जन्मभुमी दैनीक (दोनो RSS से संलग्न है) ने ईस खबर की रीपोर्टींग मे बताया की,  "के आर नारायणन अपनी मृत्यु के बाद ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए"  “K R Narayanan was converted into Christianity after his death"

बहोत सारी वेब पोर्टल और कुछेक न्युझ चेनल भी इस मुद्दे को लेकर वादविवाद मे पड गये है. फेसबुक और वोट्सप ये खबर फैलाने का एक बहोत हि सुलभ रास्ता बन चुका है.

के आर नारायण के नाम पर पहले भी ऐसी बाते की जा चुकी है
1997 मे जब उनको राष्ट्रपति बनाने की बात चली थी तब भी बहोत से हिंदुवादी नेता और संगठनो ने ऐसी हरकते की थी. विश्व हिंदु परीषद के नेता अशोक सींघल ने उनको राष्ट्रपती बनाने का विरोध करते हुई कहा था की वो दलित हिंदु सीर्फ कागज पर हि है, उनको राष्ट्रपती बनाना चर्च की साजीश है और उन्होने कभी दलितो के हक की आवाज नही उठाई नाही वो आंबेडकरवादी है और ना ही गांधीवादी. हैरानी की बात तो ये है की विश्व हिंदु परीषद भाजपा की सहयोगी रहि है भाजपा ने भी कांग्रेस के साथ मे रहते हुए के आर नारायण को एक दलित प्रत्याशी के स्वरुप मे समर्थन उस समय भी दीया था फीर भाजपा का ही सहयोगी दल ऐसी बाते कर रहा था. 
के.आर. नारायणन की धार्मीक आस्था और जाती को लेकर जो बहर उस वख्त थी और आज है दोनों ही  उनका अपमान और उनकी शख्शीयत पर दाग लगाने की कोशीष है और ये पुरे देश के लिए शर्मनाक है.

अब जरा रुख करते है वर्तमान कंट्रोवर्सी पर

सत्तापक्ष ने राष्ट्रपती के लीए दलित प्रत्याशी के रुप मे श्री रामनाथ कोविंद को आगे कीया था और सामने विपक्ष ने भी दलित कार्ड खेलकर हार नीश्चीत होते हुए भी मीरा कुमार को खडा कीया था. अब श्री रामनाथ कोविंद राष्ट्रपती बन चुके है पर पहले दलित राष्ट्रपती श्री के आर नारायण है ये बात सत्तापक्ष के आक्रमक समर्थको को पसंद नही है. श्री के आर नारायण को ईसाई चीत्रीत कर के भाजपा समर्थीत राष्ट्रपती को प्रथम दलित राष्ट्रपती साबीत करने की व्यर्थ कोशीष करते रहते है.
सोशल मीडिया पर एक सुव्यवस्थीत तरीके से और कुछेक वेब साईट पर दिल्ही स्थीत एक ईसाई कब्रस्थान मे श्री के आर नारायणन को दफनाया गया है ऐसा दीखा कर उनको ईसाई साबीत करने की साजिश हो रही है.

सच्चाई क्या है???

9 नवंबर, 2005 को नारायणन का निधन हो जाने के बाद, उनको 10 नवंबर को यमुना के तट पर पूरे सैन्य सम्मान और हिंदु रीत रीवाजो के साथ अग्नी दाह दीया गया था. नारायणन का अग्नीदाह उनके भतीजे एस रामचंद्रन ने कीया था. वो स्थल जवाहरलाल नहेरु के स्मारक शांतीवन और लाल बहादुर शाश्त्री के स्मारक विजय घाट के बिच मे स्थीत है. 

समाचार एजेंसी "न्युज 18" ने श्री के आर नारायणन की बेटियां अमृता नारायणन और चित्रा नारायणन से स्पष्टीकरण करने के लिए संपर्क किया, ताकि पता लगाया जा सके कि कब्रिस्तान में मृतक राष्ट्रपति की कब्र कैसे हो सकती है जबकी उनका अंतिम संस्कार हिंदु रीत रीवाजो से किया गया था. उनकी बेटियों ने न्यूज 18 को एक ईमेल उत्तर में कहा कि वह एक हिंदू और सभी धर्मों का सम्मान करते थे. ये हाल की जो कोन्ट्रोवर्सी है वह एक निजी मामला है और इस तरह का विवाद बेमाईने है.

उनकी बेटीओ ने खुद जो बात बताई ये हम आप को हिंदी मे ट्रासलेट कर के बताते है, "अंतिम संस्कार के बाद, उन की अस्थीओ को चार भागों में विभाजीत किया गया था. उसमे से एक भाग को हरिद्वार मे सबसे बड़ी बेटी द्वारा गंगा में विसर्जित कीया गया था. अस्थीओ के दूसरे भाग को उनकी छोटी बेटी के द्वारा केरल में ले जाया गया जहां राज्य सरकार ने केरल की एक पवित्र नदी भरतपुज्जा में उस का विसर्जन कीया. नारायणन के छोटे भाई के आर भास्करन, जो भाजपा के करीबी सहयोगी थे उन्होने अपने हाथो से अस्थीओ को हिंदू संस्कारों के अनुसार विसर्जीत क्या. अस्थीओ के तीसरे भाग को नारायणन के दिवंगत माता-पिता की अस्थीओ के साथ मिलाया गया था. और अंतीम भाग को उनकी विधवा उषा नारायणन, जो की ईसाई धर्म को मानती थी,उन के देहांत के बाद साथ दफनाने के लिए रखा गया था. 2008 में उनके अवसान होने पर, शेष अस्थीओ को पृथ्वीराज रोड कब्रिस्तान में उनकी इच्छा के अनुसार दफ्न किया गया था. यह पूरी तरह से निजी इच्छा थी और उसे इस तरह ही सम्मान किया जाना चाहिए. "

उनकी बेटीओ ने ये पुरा मामला एक बेमतलब की बात है ये साबीत कर दीया. फीर भी अगर कुछ लोग ऐसे प्रेरणादायी व्यक्तीत्व की छबी खराब करने का प्रयास कर रहे है तो लोगो को सचेत हो जाना जरुरी है. 
उन की मंशा सीर्फ ये हि है की  "हमारे वाला दलित आप के वाले दलित से ज्यादा दलित है" और कुछ नही.






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