By Dilip C Mandal
जातिवाद का विचार अगर कमजोर होता तो देश के तमाम बुद्ध, कबीर, रैदास, नानक, फुले, सावित्रीबाई, साहू, नारायणा गुरु, आंबेडकर, पेरियार, रामस्वरूप वर्मा, जगदेव प्रसाद, कर्पूरी ठाकुर, बीपी मंडल वगैरह के प्रयासों से खत्म हो चुका होता.
आज भी जातिवाद और ब्राह्मण वर्चस्व विकराल रूप में मौजूद है, इसका मतलब है कि जाति का सिद्धांत बेशक गलत हो, लेकिन है बेहद मजबूत.
सही होना और शक्तिशाली होना, दो अलग अलग बातें हैं.
झूठ, मक्कारी और फरेब वाली जाति व्यवस्था के आज भी मौजूद होने को और कैसे समझें?
भारत की 85% आबादी की शक्तिहीनता और देश की बदहाली, गरीबी और अशिक्षा को और कैसे समझें?
जातिवाद का विचार अगर कमजोर होता तो देश के तमाम बुद्ध, कबीर, रैदास, नानक, फुले, सावित्रीबाई, साहू, नारायणा गुरु, आंबेडकर, पेरियार, रामस्वरूप वर्मा, जगदेव प्रसाद, कर्पूरी ठाकुर, बीपी मंडल वगैरह के प्रयासों से खत्म हो चुका होता.
आज भी जातिवाद और ब्राह्मण वर्चस्व विकराल रूप में मौजूद है, इसका मतलब है कि जाति का सिद्धांत बेशक गलत हो, लेकिन है बेहद मजबूत.
सही होना और शक्तिशाली होना, दो अलग अलग बातें हैं.
झूठ, मक्कारी और फरेब वाली जाति व्यवस्था के आज भी मौजूद होने को और कैसे समझें?
भारत की 85% आबादी की शक्तिहीनता और देश की बदहाली, गरीबी और अशिक्षा को और कैसे समझें?
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