July 13, 2017

रामराज्य मे भी अत्याचार होते रहे है तो अभी क्या नया है???

By Vishal Sonara




उस समय शुद्र (आज के ओबीसी) को अन्याय हुआ आज अवर्णो (आज के ST/SC) पर हो रहा है। नया कुछ नही है, हा अभी संवीधान के कारण कुछ राहत मील रही है ये मानना ही होगा।

आज राम जन्म जयंती के अवसर पर मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के जीवन की ये कथा पढने पर ज्यादा ख्याल आ जायेगा। शम्बूक कथा का वर्णन वाल्मीकि रामायण में उत्तर कांड के 73-76 सर्ग में मिलता हैं। ज्यादातर वाल्मीकि रामायण के संसकरणो मे ये हटा दीया गया है या अर्थ को फेरफार के साथ दीया गया है (२-३ कीताबो मे देख के लगा मुजे) ।
पर लोगो के दीमाग से ये ध्रुणा कैसे मीटा पाओगे जो सदीयो से चली आ रही है???

शुद्र शम्बूक वध : -
एक दिन एक ब्राह्मण का इकलौता लड़का मर गया । उस ब्राह्मण के लड़के के शव को लाकर राजद्वार पर डाल दिया और विलाप करने लगा । उसका आरोप था कि अकाल मृत्यु का कारण राजा का कोई दुष्कृत्य है । ऋषी मुनियों की परिषद् ने इस पर विचार करके निर्णय किया कि राज्य में कहीं कोई अनधिकारी तप कर रहा है क्योंकि :- राजा के दोष से जब प्रजा का विधिवत पालन नहीं होता तभी प्रजावर्ग को विपत्तियों का सामना करना पड़ता है ।

राजा के दुराचारी होने पर ही प्रजा में अकाल मृत्यु होती है । रामचन्द्र जी ने इस विषय पर विचार करने के लिए मंत्रियों को बुलवाया । उनके अतिरिक्त वसिष्ठ नामदेव मार्कण्डेय गौतम नारद और उनके तीनों भाइयों को भी बुलाया । ७३/१

तब नारद ने कहा : राजन ! द्वापर में शुद्र का तप में प्रवृत्त होना महान अधर्म है ( फिर त्रेता में तो उसके तप में प्रवृत्त होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता ) निश्चय ही आपके राज्य की सीमा पर कोई खोटी बुध्दी वाला शुद्र तपस्या कर रहा है। उसी के कारन बालक की मृत्यु हुयी है। अतः आप अपने राज्य में खोज करिये और जहाँ कोई दुष्ट कर्म होता दिखाई दे वहाँ उसे रोकने का यत्न कीजिये । ७४/८ -२८,२९ , ३२

यह सुनते ही रामचन्द्र पुष्पक विमान पर सवार होकर ( वह तो अयोध्या लौटते ही उसके असली स्वामी कुबेर को लौटा दिया था – युद्ध -१२७/६२ )

शम्बूक की खोज में निकल पड़े (७५/५ )
और दक्षिण दिशा में शैवल पर्वत के उत्तर भाग में एक सरोवर पर तपस्या करते हुए एक तपस्वी मिल गया देखकर राजा श्री रघुनाथ जी उग्र तप करते हुए उस तपस्वी के पास जाकर बोले – “उत्तम तप का पालन करने वाले तापस ! तुम धन्य हो । तपस्या में बड़े चढ़े सुदृढ़ पराक्रमी परुष तुम किस जाती में उत्पन्न हुए हो ? में दशरथ कुमार राम तुम्हारा परिचय जानने के लिए ये बातें पूछ रहा हूँ । तुम्हें किस वस्तु के पाने की इच्छा है ? तपस्या द्वारा संतुष्ट हुए इष्टदेव से तुम कौनसा वर पाना चाहते हो – स्वर्ग या कोई दूसरी वस्तु ? कौनसा ऐसा पदार्थ है जिसे पाने के लिए तुम ऐसी कठोर तपस्या कर रहे हो जो दूसरों के लिए दुर्लभ है। ७५-१४-१८ तापस !

जिस वस्तु के लिए तुम तपस्या में लगे हो उसे में सुनना चाहता हूँ । इसके सिवा यह भी बताओ कि तुम ब्राह्मण हो या अजेय क्षत्रिय ? तीसरे वर्ण के वैश्य हो या शुद्र हो ? क्लेशरहित कर्म करने वाले भगवान् राम का यह वचन सुनकर नीचे मस्तक करके लटका हुआ तपस्वी बोला – हे श्रीराम ! में झूठ नहीं बोलूंगा देव लोक को पाने की इच्छा से ही तपस्या में लगा हूँ ! मुझे शुद्र ही जानिए मेरा नाम शम्बूक है ७६,१-२

वह इस प्रकार कह ही रहा था कि रामचंद्र जी ने तलवार निकली और उसका सर काटकर फेंक दिया ७६/४ |

(वाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड, 73-76)

***
मर्यादा पुरुषोत्तम के तथोक्त कुकृत्य से भ्रमित होकर ही आदि शंकराचार्य ने शूद्रों के लिए वेद के अध्यन श्रवणादि का निषेध करते हुए वेद मन्त्रों को श्रवण करने वाले शूद्रों के कानो में सीसा भरने पाठ करने वालों की जिव्हा काट डालने और स्मरण करने वालों के शरीर के टुकड़े कर देने का विधान किया । कालांतर में शंकर का अनुकरण करने वाले रामानुचार्य निम्बाकाचार्य आदि ने इस व्यवस्था का अनुमोदन किया । इन्ही से प्रेरणा पाकर गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में आदेश दिया –

पुजिये विप्र शीलगुणहीना, शुद्र न गुण गण ज्ञान प्रवीना। अरण्य ४०/१

ढोर गंवार शुद्र पशु नारी , ये सब ताडन के अधिकारी। लंका ६१/३

वर्तमान में इस घटना के कारण राम पर शूद्रों पर अत्याचार करने और सीता वनवास के कारण स्त्री जाति पर ही नहीं, निर्दोषों के प्रति अन्याय करने के लांछन लगाये जा रहे हैं । अगर हम इन की ही लीखी कीताबे पढे तो वो सब लांछन गलत भी तो नही लगते...


कौन रहना चाहेगा ऐसे रामराज्य में ?

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