By Vishal Sonara || written on 28 March 2018
एक बार एक गौरक्षा से जुडी संस्था का एक प्रचारक स्वामी विवेकानंद से गौरक्षा के लिए दान लेने के लिए मीला. उन दोनो के संवाद के कुछ अंश :
विवेकानंद : मध्य भारत में एक भयानक अकाल पडा है. भारत सरकार ने नौ लाख भूखे लोगों की मौत का आंकडा दिया है। क्या आपकी संस्था ने अकाल के इस मुश्किल समय में पीडीत लोगों की मदद करने के लिए कुछ किया है?
गौ रक्षक : हम अकाल या अन्य संकटों के दौरान मदद नहीं करते हैं यह संस्था केवल गौ माता के संरक्षण के लिए स्थापित कि गई है.
विवेकानंद : अकाल के दौरान लाखों लोगों की मृत्यु हो गई है और बहोत से हमारे अपने ही भाई बहन मौत के समीप पहुंच गए है, क्या तुम ये नही सोचते की उनको इस आपदा मे खाना पहुंचाकर मदद करनी चाहिए??
गौ रक्षक : नहीं. ये अकाल मनुष्यो के कर्मो के कारण पडा है, उनके पाप के कारण पडा है. "जैसी करनी,वैसी भरनी" प्रकार की घटना है.
(ये सुनकर विवेकानंद को बहोत गुस्सा आया, पर गुस्से पर काबु कर के उन्होने कहा)
विवेकानंद : मुजे उन संस्था और संगठनो के लिए जरा सी भी संवेदना नही है जो अपने ही भाई बहनो को भुख से मरता देखे. ये संस्था पीडीतो को एक मुठ्ठी धान भी न दे रहें हो पर पशु पंखीओ को बचाने के लिए ढेर सारा खाना देने को तैयार हो. मुजे नही लगता कि ऐसी संस्थाओ से समाज का कुछ भला भी होता होगा.
यदि आप कर्म की यह दलील देते हैं कि मनुष्य अपने कर्म के कारण मर रहे हैं, तो वो एक स्थापीत तथ्य बन जाएगा कि इस दुनिया में किसी भी चीज़ के लिए प्रयास या संघर्ष करना बेकार है; और फिर तो आप के पशुओ को बचाने के काम का भी कोइ मतलब नही है.
और आप के कार्य के संदर्भ मे कहना चाहुंगा की ऐसा भी कह सकते है की गाय माता भी अपने कर्मो के कारण कसाई के पास मरने के लिए पहुंच रही है, और हमे भी इस कर्म के मामले मे कुछ नही करना चाहिए.
गौरक्षक ने थोडी व्याकुलता से कहा : हां आप जो भी कह रहे है वो सच है पर शास्त्रों का कहना है कि गाय हमारी माता है.
विवेकानंद (मुस्कराते हुए) : हां , यह गाय हमारी माता है,वो मे समजता हु, गाय के अलावा और कौन ऐसे कुशल बच्चो को जन्म दे सकता है??
इतना कहकर स्वामी विवेकानंद ने उस गौरक्षक को पैसा देने से मना कर दिया और साथ मे ये भी कहा की "मै एक सन्यासी हु, मेरे पास आपको देने के लिए पैसे नही है पर अगर होते भी तो मै उन पैसो से मनुष्यो की सेवा करता . हमे मनुष्यो को सब से पहले बचाना है. सभी को खाना, शीक्षा और आध्यात्म मिलना ही चाहिए. इस के बाद अगर कुछ पैसे बचते है तो मे बाकी कि चीजो पर खर्च कर सकता हुं"
विवेकानंद के नाम पर हमे बहोत सी बाते जानने को मीलती है पर इस प्रकार की क्रांतिकारी बातो का प्रचार रुक सा गया है. और जो विवेकानंद को जानते भी नही ठीकसे वो विवेकानंद के अनुयायी होने की बात कर रहे है . ऐसे लोगो के लिए ये एक प्रयास था.
- विशाल सोनारा
Ref.
Book :Talks with Swami Vivekananda
Published by "Advaika Ashrama"
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