हमारी धरती मतलब पृथ्वी पहले आगका गोला थी,
ठंडा होने मे उसे लाखो साल लगे। बहोत सारी सायंटीफीक थीयरी है उस मे।
और कई लाख वर्ष बीतने के बाद ईंसान की उत्पत्ति हुई!
पहले का ईंसान आदिमानव कहलाता था।
जो जीवन जीने के लिए सीर्फ और सीर्फ शिकार पर निर्भर रहता था। धीरे धीरे उसने जिंदगी को और मजे से जीने के लिए नयी नयी खोज की।
जंगलोमे गुफाओमे घुमता फीरता आदमी अब घर, नगर, प्रदेश बनाकर एक जगह रहने लगा, और सभ्यता का नीर्माण करने लगा।
उसने अपनी जिवन जीनेकी पद्धति का निर्माण कीया जो आगे चलकर संस्कृति कहलाई।
अलग अलग प्रदेशो के ईंसान ने अपनी अपनी संस्कृति और रोजमर्रा के जीवन को ध्यानमे रखकर नियम बनाए।
उसपर कुछ जाग्रुत व्यक्तिओने अपने सदविचार प्रस्तुत कीये। जैसे की जीसस, मोहम्मस पयगंबर साहब, गौतम बुद्ध और कई लोगो ने वह इंसान ही थे। और इतीहास पर नजर करे तो हमे ये प्रतीत होगा की और भी ऐसे कई लोग होंगे पर आज हम उन के बारे मे जानते नही है उन को भुला दीया गया है या तो उनका नाम गुम कर दीया गया है बौध्धीक आतंकवादीओ के द्वारा।
कुछ चालाक व्यक्तिओने ऐसे सभी नीयमो और सदविचारो को धर्म मे परिवर्तित कर दीया!!!
चालाक ईंसानो की चालाकी सालो बाद धूर्तता मे परिवर्तित होती रही!
धर्म से भगवान, जीसस, अल्लाह और सब मीथको का निर्माण हुआ!
चालाक लोगोने अच्छे लोगोके अच्छे विचारो को और मुल हेतुओ को नस्ट कर दिया। उनका संदेश लुप्त होता गया और इस के कारण आज हम पुरे विश्व मे जो परिस्थिति है उस को देख सकते है।
जीस ईंसान ने अपने व्यवहारु जिवन जीनेके हेतु धर्म का निर्माण कीया था, आज वो उसी धर्म का मानसिक और शारीरिक गुलाम बन गया है।
घर्म पहले जाग्रुत इंसानो के विचार थे दीन प्रतीदीन उसमे नशा जोडा गया और लोगो को अंध बना लीया गया ताकी चालाक लोगो पर कोइ प्रश्न न खडे करे और उनका अपना स्वार्थ सीध्ध होता रहे।
सब अपने अपने हीसाब से धर्म को तोड मरोडने लगे। चालाक लोगो ने अपनी धूर्तता का बखुबी इस्तेमाल कीया और अपनी ख़ुदग़रज़ी ना छोडी। धर्म मे मानने वाले भोले लोगो को इतना अंध बना दीया गया की उस को खुद का धर्म ही अब सबसे श्रेष्ठ लगने लगा।
पुरे विश्व मे इस अंध मानसीकता के कारण बहोत सा खुन बहा है और आज भी हम देख ही रहे है के क्या हालात है।
क्या धर्म अब ईंसान की जरुरत बन गया है?
ईंसान को जीनेके लिए धर्म की कोई जरुरत नहीअगर कुछ अंधे लोगो को हाथी के पास ले जाओ तो वो लोगो के हाथ मे जो आयेगा उसे ही वो हाथी मानने लगेगे। धर्म का भी ऐसा ही है....
मगर धर्मको खुदकी रक्षा के लिए ईंसान की जरुरत है!!!
-विजय जादव
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