By Vishal Sonara || 30 Sep 2017
डॉ भीमराव आंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धम्म का स्वीकार किया था. हमारा धम्म चक्र परिवर्तन दिन भी वो ही दिन है. अभी दशेरा पर जो लोग गलती से घम्म चक्र परीवर्तन दिन को मना रहे है वह गलती कर रहे है और इस बात को सम्राट अशोक से जोड रहे है. सम्राट अशोक ने कब क्या किया उस का कोइ औथेंटीक रेकोर्ड अवेलेबल नही है. आंबेडकर साहब का है. तो हमे ज्यादा जोर कीस दिन पर देना है वह बताने की बात नही है.
1956 मे बाबा साहब कि मृत्यु हुई , वह 1950 से बुद्ध जयंती मनाते आये है. कभी भी उन्होने अशोक विजया दशमी का जीक्र नही कीया है. ना ही अपने धर्म परीवर्तन के वख्त किया है. उन्होने बहोत सी किताबे लीखी , बहोत भाषण दीये अशोक विजयादशमी का जिक्र तक नही है.
23 सीतंबर 1956 को प्रेस ट्रस्ट ओफ ईंडीया को दिए एक ईंटर्व्यु मे आंबेडकर साहब ने बताया था की 14 अक्टूबर 1956 को रविवार और दशेरा के दिन वह धर्म परीवर्तन करने वाले है. उन्होने अशोक विजया दशमी नही बोला और नाही कभी कहा. 15 अक्टुबर के दो कलाक के भाषण मे भी ऐसा कोइ जीक्र तक नही है. जो व्यक्ती इस देश के इतिहास का इतना अभ्यासु रहा है उस से ये बात छुट नही शकती ये बात ध्यान मे रहे.
पहले आंबेड्कर साहब को बुद्ध जयंती पर ही हिंदू धर्म को छोडना था पर जो लगभग हर साल (1956) मे महीने मे आता है. पर कुछ संजोगो के कारण वह उस दिन ना कर सके थे. बाद मे हमारे ज्यादा लोगो को अपना काम धंधा छोड्कर नागपुर जाने मे बहोत कम दिक्कत हो और ज्यादा आर्थीक नुकसान ना हो इस कारण रविवार को पसंद किया गया. और ये एक संजोग ही हो सकता है कि उस दीन दशेरा भी था.
आंबेडकर साहब ने अपने भाषणो और लेखो मे भी नागपुर को क्यो पसंद किया उस पर स्पष्टता की है पर इस दिवस को पसंद करने पर ऐसा कभी नही कहा कि ये अशोक विजया दशमी है उस के कारण इस दिन को पसंद किया गया है.
तिसरे दिन 16 अक्टूबर 1956 मे भी उन्होने इसी प्रकार के एक कार्यक्रम मे हिस्सा लीया और भाषण भी दिया पर वहा पर भी उन्होने ऐसा कोइ जीक्र तक नही किया.
26/27 अक्टूबर 1956 को प्रबुद्ध भारत समाचार पत्र मे 14 अक्टूबर 1956 के दिक्षा कार्यक्रम का विशेषांक प्रसिद्ध किया गया उस अंक मे कार्यक्रम का विस्तार से वर्णन किया गया और फोटोग्राफ्स , मीनट टु मीनट का घटनाक्रम प्राप्त है उस मे भी अशोक विजयादशमी से संबंधीत कोइ भी सुचना मीलती नही है.
दिक्षा लेने के बाद आंबेडकर 52 दिनो तक जिवित थे. इन दिनो के दौरान भी एक बार भी इन्होने ये कहा या लीखा नही है.
ब्राह्मणीकल केलेंडर के अनुसार दशेरा और आंबेडकर का धम्म चक्र परिवर्तन दिन दोनो अलग अलग दिन पर आता है. हमे उन के केलेंडर को फोलो करने कि जरुरत क्या है ये समज मे नही आ रहा है. बाबा साहब हमे ब्राह्मणीकल हथकंडो से छुडाना चाहते थे और हम उन्ही मे उलझे हुए है.
आंबेडकर ने लिखे ग्रंथ बुद्ध और उनका धम्म मे उन्होने प्रस्तावना मे हि लिखा है कि बुद्ध धम्म पर क्लीयर और कंसीस्टंट स्टेट्मेंट के लिये उन्होने ये ग्रंथ लीखा है. उन का लिखा हम पढते नहि है और प्रवर्तमान कथा वार्ता के सहारे लोगो मे जागृती लाने मे हमारा समय और बुद्धीमत्ता वेस्ट कर रहे है.
सम्राट अशोक से कोइ अपत्ती नही है पर उन का इतिहास एक अलग ही परीकल्पना है. उस का सहि आकलन किसी ग्रंथ मे नही है. हम अपने महापुरुषो के कार्य को जानने और सहि परीकल्पित करने के बजाय ऐसी बातो को ले कर बैठ जाते है जिसका भीमराव आंबेडकर के आंदोलन और जीवन के परीपेक्ष मे कोइ महत्व नही होता.
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